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________________ टिप्पण : अध्ययन ४: असंस्कृत १. सांधा नहीं जा सकता (असंखयं) ४. पापकारी प्रवृत्तियों से (पावकम्मे हि) जिसका संस्कार किया जा सके, सांधा जा सके, बढ़ाया जा चूर्णि में पाप-कर्म का अर्थ-हिंसा, अनृत, चोरी, अब्रह्मचर्य, सके, उसको संस्कृत कहा जाता है। जीवन असंस्कृत होता है- परिग्रह आदि कर्म—किया है। शान्त्याचार्य ने इसका अर्थ 'पाप न उसको सांधा जा सकता है और न बढ़ाया जा सकता है। यह के उपादान-भूत अनुष्ठान" और नेमिचन्द्र ने 'कृषि, वाणिज्य जीवन की सचाई है। नेमिचन्द्र ने यहां एक प्राचीन श्लोक उद्धृत आदि अनुष्ठान'५ किया है। किया है ५. मूर्छा के पाश से (पास) 'वासाइंदो व तिन्नि व, वाहिज्जइ जरघरं पिसीडेवि। चूर्णि और बृहद्वृत्ति में 'पास' का मुख्य अर्थ...पश्य सा का वि नत्थि नीई, सीडिज्जइ जीवियं जीए।' 'देख' किया गया है। बृहद्वृत्ति में इसका वैकल्पिक अर्थ 'पाश' सड़े-गले घर की मरम्मत कर दो-चार वर्ष उसमें रहा जा भी है। नेमिचन्द्र ने इसे 'पाश' शब्द माना है। उन्होंने दो सकता है। किंतु ऐसा कोई साधन नहीं है, जिससे टूटे हुए प्राचीन श्लोक उद्धृत किए हैंजीवन को सांधा जा सके। वारी गयाण जाल तिमीण हरिणाण वग्गुरा चेव। २. प्रमाद मत करो (मा पमायए) पासा य सउणयाणं, गराण बंधत्थमित्थीओ।।। इसका अर्थ है-जीवन असंस्कृत है और आयुष्य अल्प उन्नयमाणा अक्खलिय-परक्कमा पंडिया कई जे य। है। प्रस्तुत श्लोक की रचना में 'मप्पमाउयं' का लिपि-विपर्यय के महिलाहिं अंगुलीए, नच्चाविज्जति ते वि नरा।।२।। कारण ‘मा पमायए' बना है, अथवा 'मा पमायए' ही मूल पाठ हाथी के लिए वारि-शृंखला, मछलियों के लिए जाल, है, यह अन्वेषणीय है। प्रकरण की दृष्टि से 'मप्पमाउयं' पाट हिरणों के लिए वागुरा और पक्षियों के लिए पाश जैसे बन्धन है, अधिक प्रासंगिक है। उसी प्रकार मनुष्यों के लिए स्त्रियां बन्धन हैं। उन्नत और ३. बुढ़ापा आने पर (जरोवणीयस्स) अस्खलित पराक्रम वाले पण्डित और कवि भी महिलाओं की जो व्यक्ति ऐसा सोचते हैं कि धर्म तो बुढ़ापे में कर लेंगे, अंगुलियों के संकेत पर नाचते हैं। वे भ्रम में जीते हैं। उन्हें सोचना चाहिए ६. वैर से बंधे हुए व्यक्ति (वेराणुबुद्धा) 'जया य रूवलावण्णं सोहग्गं च विणासए। 'वेरे वज्जे य कम्मे य'-इस वचन के अनुसार वैर के जरा विडंबए देह, तया को सरणं मवे?' दो अर्थ होते हैं--वज और कर्म। यहां इसका अर्थ कर्म है। 'बुढ़ापा रूप, लावण्य और सौभाग्य को नष्ट कर देता है। शान्त्याचार्य के अनुसार 'वेराणुबद्ध' का अर्थ 'कर्म से बद्ध" वह शरीर की विडंबना करता है। तब भला वह शरण कैसे हो और नेमिचन्द्र के अनुसार 'पाप से बद्ध" होता है। सकता है?' ७. सेंध लगाते हुए (संधिमुहे) 'रसायणं निसेवति, मंस मज्जरसं तहा। इसका शाब्दिक अर्थ है-सेंध के द्वार पर।३० चूर्णिकार मुंजंति सरसाहार, जरा तहवि न नस्सए।' और टीकाकारों ने अनेक प्रकार की सेंध बतलाई हैं--कलशाकृति, लोग रसायनों का सेवन करते हैं ; मद्य, मांस, रस, सरस नंद्यावर्ताकृति, पद्माकृति, पुरुषाकृति आदि-आदि।" आहार आदि खाते हैं, फिर भी बुढ़ापा नहीं रुकता। शूद्रक द्वारा लिखित संस्कृत नाटक 'मृच्छकटिक' (३।१३) १. सुखबोधा, पत्र ७८ । ७. सुखबोधा, पत्र ८० : पाशा इव पाशाः । २. सुखबोधा, पत्र ७६ ८. बृहद्वृत्ति, पत्र २०६ : वैरं-कर्म...तेन अनुबद्धाः-सततमनुगताः । उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० ११० : पातयते तमिति पापं, क्रियत इति कर्म, ६. सुखबोधा, पत्र ८०: वैरानुबद्धाः—पापेन सततमनुगताः । कर्माणि हिंसानृतरतेयाब्रह्मपरिग्रहादीनि। १०. बृहद्वृत्ति, पत्र २०७ : संधिः-क्षत्रं तस्य मुखमिव मुख-द्वारं तस्मिन। ४. बृहद्वृत्ति, पत्र २०६ : 'पापकर्मभिः' इति पापोपादानहेतुभिरनुष्ठानैः। ११. (क) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृष्ट १११ : खत्ताणि य अणेगागाराणि ५. सुखबोथा, पत्र ८०: पापकर्मभिः' कृषिवाणिज्यादिभिः अनुष्ठानैः । कलसागिति-णंदियावत्त-संहितं (ताणि) पयुमामि (सुमागि) ति ६. (क) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० ११० : पस्सत्ति श्रोतुरामंत्रणम् । पुरिसाकिति वा। (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र २०६ : 'पश्य' अवलोकय...यदि था पाशा इव पाशा। (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र २०७। (ग) सुखबोधा, पत्र ८१। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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