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________________ टिप्पण अध्ययन ३: चतुरंगीय १. इस संसार में.....दुर्लभ है (दुल्लहाणीह) वर्ष बीत गए। अभिषेक का बारहवां वर्ष । कार्पटिक ने उपाय नियुक्तिकार ने मनुष्यत्व की दुर्लभता के प्रसंग में बारह सोचा। वह ध्वजवाहकों के साथ चल पड़ा। राजा ने उसे पहचान दुर्लभ वस्तुओं का उल्लेख किया है।' लिया। राजा ने उसको अपने पास बुलाकर कहा-जो इच्छा हो १. मनुष्य जन्म ७. आयुष्य वह मांगो। कार्पटिक बोला-राजन्! मैं पहले दिन आपके प्रासाद २. आर्यक्षेत्र ८. उज्ज्वल भविष्य में भोजन करूं, फिर बारी-बारी से आपके समस्त राज्य के सभी ३. आर्यजाति ६. धर्म की श्रवण संभ्रांत कुलों में भोजन प्राप्त कर, पुनः आपके प्रासाद में भोजन ४. आर्यकुल १०. धर्म की अवधारणा करूं--यह वरदान दें। राजा बोला-यह क्यों! तुम चाहो तो मैं ५. शरीर की सर्वांग संपूर्णता ११. श्रद्धा तुम्हें गांव दे सकता हूं, धन दे सकता हूं। तुम्हें ऐसा बना सकता ६. आरोग्य १२. संयम हूं कि तुम जीवन भर हाथी के होदे पर सुखपूर्वक घूमते रहो। चूर्णिकार ने संयम में असटकरण निश्चल आचरण को कापटिक बोला-मुझे इन सब प्रपंचों से क्या! राजा ने तथास्तु बारहवां माना है। कहा। चूर्णिकार और बृहद्वृत्तिकार ने इस प्रसंग में नियुक्ति के अब वह बारी-बारी से नगर के घरों में जीमने लगा। उस पाठान्तर का उल्लेख किया है। उसके अनुसार ये ग्यारह वस्तएं नगर में अनेक कुलकोटियां थीं। क्या वह अपने जीवन-काल में दुर्लभ हैं उस नगर के घरों का अन्त पा सकेगा? कभी नहीं। फिर संपूर्ण १. इन्द्रियलब्धि-पांच इन्द्रियों की प्राप्ति। भारत वर्ष की बात ही क्या! २. निर्वर्तना-इन्द्रियों की पूर्ण रचना। संभव है किसी उपाय या देवयोग से वह संपूर्ण भारतवर्ष ३. पर्याप्ति--पूर्ण पर्याप्तियों की प्राप्ति। के घरों का पार पा जाए, किन्तु मनुष्य जन्म को पुनः प्राप्त ४. निरुपहतता-जन्म के समय अंग-विकलता से रहित। करना दुष्कर है। ५. क्षेम-संपन्न देश की प्राप्ति। (२) पाशक-एक व्यक्ति ने स्वर्ण अर्जित करने की एक ६. ध्राण-सुभिक्ष क्षेत्र अथवा वैभवशाली क्षेत्र की प्राप्ति। युक्ति निकाली। उसने जुए का एक प्रकार निकाला और यंत्रमय ७. आरोग्य। पाशकों का निर्माण किया। एक व्यक्ति को दीनारों से भरा थाल ८. श्रद्धा। देकर घोषणा करवाई कि जो मुझे इस जुए में जीत लेगा, मैं ६. ग्राहक शिक्षक गुरु की प्राप्ति । दीनारों से भरा थाल उसे दे दूंगा। यदि वह व्यक्ति मुझे नहीं जीत १०. उपयोग-स्वाध्याय आदि में जागरूकता। सका तो उसे एक दीनार देना होगा। यंत्रमय पाशक होने के ११. अर्थ-धर्म विषयक जिज्ञासा। कारण कोई उसे जीत न सका और धीरे-धीरे उसने स्वर्ण के २. मनुष्यत्व (माणुसत्तं) अनेक दीनार अर्जित कर लिए। मनुष्य जन्म की दुर्लभता को स्पष्ट करने के लिए दस कदाचित् कोई व्यक्ति उसको जीत भी ले, पर मनुष्य जन्म दृष्टांत दिए गए हैं। उनका संक्षेप इस प्रकार है सहजता से प्राप्त नहीं कर सकता। (१) चोल्लक-बारी-बारी से भोजन। (३) धान्य-धान्य के विविध प्रकारों को मिश्रित कर ब्रह्मदत्त का एक कार्पटिक सेवक था। उसने राजा को ढेर लगा दिया। उसमें एक प्रस्थ सरसों के दाने मिला दिए। अनेक बार विपत्तियों से बचाया था। वह सदा उनका सहायक एक वृद्धा उन सरसों के दानों को बीनने बैठी। क्या वह उस बना रहा। ब्रह्मदत्त राजा बन गया। पर इस बेचारे को कहीं सरसों के दानों को पृथक् कर पाएगी? देवयोग से पृथक् कर आश्रय नहीं मिला। राजा से अब मिलना दुष्कर हो गया। बारह भी ले, फिर भी जीव को पुनः मनुष्य जन्म मिलना दुष्कर है। १. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा १५८ : माणुस्स खित्त जाई कुल रूवारोग्ग आउयं बुद्धी। सवणुग्गह सद्धा संजमो अ लोगंमि दुलहाई।। २. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ. ६४ : संजमो तमि य असढकरणं। ३. (क) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ. ६४ : अथवा अन्नपरिवाडीए गाहा....। (ख) बृहवृत्ति, पत्र १४६ : केचिदेतत् स्थाने पठन्तिइन्दियलद्धी निववत्तणा य पज्जत्ति निरुवहय खेमं। धाणारोग्गं सद्धा गाहण उवओग अट्ठो य।। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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