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नवमं अज्झयणं नवम अध्ययन
विषयसमाही (चउत्थो उद्देसो) विनय समाधि (चतुर्थ उद्देशक )
मूल
सुयं मे आउ तेगं भगवया एवमक्याय इह खलु येरेहिं भगवंतेहि चत्तारि विषयसमाहिद्वाणां पन्नत्ता । सू० १
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कयरे खलु ते येरेहि भगवंतेहि चत्तारि विणयसमा हिट्ठाणा पन्नत्ता । सू० २
इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहि चत्तारि विणयसमाहिट्टाणा पन्नता तंजहा
(१) विषयसमाही (२) सुवसमाही (३) तवसमाही (४) आयारसमाही
१- विणए सुए अ आयारे नि अभिरामयंति जे भवति
तवे
पंडिया | अप्पाणं
जिइंदिया ॥ सू० ३
चउव्विहा खलु विषयसमाही भवइ त जहा - ( १ ) अणुसासिज्जतो सुस्सूसइ (२) सम्मं संपडिवज्जइ ( ३ ) वेयमाराहय ( ४ ) न य भवइ अत्तसंपग्गहिए । चत्थं पयं भवइ ।
भवइ य इत्थ सिलोगो
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संस्कृत छाया
श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवर्तयाम् इह खलु स्थविरं भगवद्भिश्चत्वारि विनय-समाधि स्थानानि प्रज्ञप्तानि ॥१॥
कतराणि चतु तानि परिंग वश्चित्वारि विनय-समाधिस्थानानि
प्रज्ञप्तानि ||२||
इमानि तु तानि स्थविरं भंगवद्भिश्चत्वारि विनय-समाधिस्थानानि प्रशप्तानि यथा (१) विनय-समाधिः, (२) भुत-समाधि (२) तयः समाधिः, ( ४ ) आचार - समाधिः ।
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विनये ते पस आचारे नित्यं पण्डिताः । अभिरामवात्मानं
ये भवन्ति जितेन्द्रियाः ॥ १ ॥
चतुविधः खलु विनय-समाधिर्भवति । तद्यथा - ( १ ) अनुशास्यमानः शुश्रूषते (२) सम्यक् सम्प्रतिपद्यते, (३) वेदमाराय यति (४) न च भवति सम्प्रगृहीतात्माचतुर्थ पदं भवति ।
भवति चात्र श्लोक:
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हिन्दी अनुवाद
आयुष्मन् | मैंने सुना है उन भगवान् (प्रज्ञापक आचार्य प्रभवस्वामी) ने इस प्रकार कहा- इस निर्ग्रन्थ-प्रवचन में स्थविर भगवान् ने विनय-समाधि के चार स्थानों का प्रज्ञापन किया है।
वे विनय-समाधि के चार स्थान कौन से हैं जिनका स्थविर भगवान् ने प्रज्ञापन किया हैं ?
वे विनय-समाधि के चार प्रकार ये हैं, जिनका स्थविर भगवान् ने प्रज्ञापन किया है, जैसे बिनय-समाधि, श्रुत-समाधि तपसमाधि और आचार-समाधि |
१ जो जितेन्द्रिय होते हैं वे पण्डित पुरुष अपनी आत्मा को सदा विनय, श्रुत, तप और आचार में लीन किए रहते हैं ।
विनय-समाधि के चार प्रकार हैं, जैसे(१) शिष्य आचार्य के अनुशासन को सुनना चाहता है" ।
( २ ) अनुशासन को सम्यग् रूप से स्वीकार करता है ।
(३) वेद (ज्ञान) की आराधना करता है अथवा (अनुशासन के अनुकूल आचरण कर आचार्य की वाणी को सफल बनाता है) ।
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