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दसवेआलियं ( दशवकालिक)
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अध्ययन ६ (द्वि० उ०) : श्लोक ७-१३
७-तहेव
लोगंसि दीसंति छाया
अविणीयप्पा नरनारिओ।
दुहमेहता विगलितेंदिया ॥
तथवाऽविनीतात्मानः, लोके नरनार्यः। दृश्यन्ते दुःखमेधमाना:, 'छाता' विकलितेन्द्रियाः ॥७॥
७-८-लोक में जो पुरुष और स्त्री अविनीत होते हैं, क्षत-विक्षत या दुर्बल', इन्द्रिय-विकल, दण्ड और शस्त्र से जर्जर, असभ्य वचनों के द्वारा तिरस्कृत, करुण, परवश, भूख और प्यास से पीड़ित होकर दुःख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं।
८-दंडसत्यपरिजण्णा असम्भवयणेहि
विवन्नछंदा खुप्पिवासाए परिगया ॥
दण्डशस्त्राभ्यां परिजीर्णाः, असभ्यवचनैश्च । करुणा विपन्नच्छन्दसः, क्षुत्पिपासया परिगताः ॥८॥
कलुणा
६-तहेव
लोगसि दीसंति इडि ढ पत्ता
सुविणीयप्पा नरनारिओ। सुहमेहता सहारामा महायसा ॥
तथैव सुविनीतात्मान:, लोके नरनार्यः । दृश्यन्ते सुखमेधमानाः, ऋद्धि प्राप्ता महायशस: ॥६
---लोक में जो पुरुष या स्त्री सुविनीत होते हैं, वे ऋद्धि और महान् यश को पाकर सुख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं।
१०-तहेव अविणोयप्पा
देवा जक्खा य गुज्झगा। दीसंति दुहमेहता आभिओगमुवट्रिया ॥
तथवाऽविनीतात्मान:, देवा यक्षाश्च गुह्यकाः। दृश्यन्ते दुःखमेधमाना:, आभियोग्यमुपस्थिताः ॥१०॥
१०--जो देव, यक्ष और गुह्यक (भवनबासी देव ) अविनीत होते हैं, वे सेवाकाल में दुःख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं ।
११-तहेव सुविणोयप्पा
देवा जक्खा य गुज्झगा। दीसंति
सुहमेहता इडिड पत्ता महायसा ॥
तथैव सुविनीतात्मानः, देवा यक्षाश्च गुह्यका:। दृश्यन्ते सुखमेधमाना: ऋद्धि प्राप्ता महायशसः ॥११॥
११-जो देव, यक्ष और गुह्यक सुविनीत होते हैं, वे ऋद्धि और महान् यश को पाकर सुख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं।
१२-जे आयरियउवज्झायाण
सुस्सूसावयणंकरा । तेसि सिक्खा पवड्ढंति जलसित्ता इव पायवा ॥
ये आचार्योपाध्याययोः, शुश्रूषावचनकरा:। तेषां शिक्षा: प्रवर्धन्ते, जलसिक्ता इव पादपाः ।।१२।।
१२---जो मुनि आचार्य और उपाध्याय की शुश्रूषा और आज्ञा-पालन करते हैं, उनकी शिक्षा" उसी प्रकार बढ़ती है, जैसे जल से सींचे हुए वृक्ष ।
१३--अप्पणट्ठा परट्ठा वा
सिप्पा उणियाणि य। गिहिणो उवभोगट्ठा इहलोगस्स 'कारणा ॥
आत्मार्थं परार्थ वा, शिल्पानि नैपुण्यानि च । गहिण उपभोगार्थ, इहलोकस्य कारणाय ॥१३॥
१३-१४ - जो गही अपने या दूसरों के लिए, लौकिक उपभोग के निमित शिल्प" और नैपुण्य'२ सीखते हैं---
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