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२६, ३३ वृक्ष और उसके अवयवों के बारे में बोलने का विवेक ।
३४, ३५ औषधि (अनाज) के बारे में बोलने का विवेक ।
३६-३६ संखडि ( जीमनवार), चोर और नदी के बारे में बोलने का विवेक ।
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,, ४०, ४२, ४१ सावद्य प्रवृत्ति के सम्बन्ध में बोलने का विवेक ।
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४४
६ शंकित भाषा का प्रतिषेध ।
१० निःशंकित भाषा बोलने का विधान ।
११, १२, १३ पुरुष और हिंसात्मक सत्य भाषा का निषेध ।
११४ तुच्छ और अपमानजनक सम्बोधन का निषेध |
१५ पारिवारिक ममत्व-सूचक शब्दों से स्त्रियों को सम्बोधित करने का निषेध ।
१६ गौरव वाचक या चाटुता सूचक शब्दों से स्त्रियों को सम्बोधित करने का निषेध ।
१७ नाम और गोत्र द्वारा स्त्रियों को सम्बोधित करने का विधान ।
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१८ पारिवारिक ममत्व-सूचक शब्दों से पुरुषों को सम्बोधित करने का निषेध ।
१६ गौरव - वाचक या चाटुता सूचक शब्दों से पुरुषों को सम्बोधित करने का निषेध ।
२० नाम और गोत्र द्वारा पुरुषों को सम्बोधित करने का विधान ।
२१ स्त्री या पुरुष का सन्देह होने पर तत्सम्बन्धित जातिवाचक शब्दों द्वारा निर्देश करने का विधान ।
२२ अप्रीतिकर और उपघातकर वचन द्वारा सम्बोधित करने का निषेध ।
२३ शारीरिक अवस्थाओं के निर्देशन के उपयुक्त शब्दों के प्रयोग का विधान ।
२४, २५ गाय और बैल के बारे में बोलने का विवेक ।
अष्टम अध्ययन : आचार-प्रणिधि ( आचार का प्रणिधान)
श्लोक
४३ विक्रय आदि के सम्बन्ध में वस्तुओं के उत्कर्ष सूचक शब्दों के प्रयोग का निषेध ।
२४४ चिन्तनपूर्वक भाषा बोलने का उपदेश ।
४५,४६ लेने, बेचने की परामर्शदात्री भाषा के प्रयोग का निषेध |
४७ असंयति को गमनागमन आदि प्रवृत्तियों का आदेश देने वाली भाषा के प्रयोग का निषेध ।
४८ असाधु को साधु कहने का निषेध ।
दसवेआलियं ( दशवेकालिक)
४६ गुण सम्पन्न संयति को ही साधु कहने का विधान ।
५० किसी की जय-पराजय के बारे में अभिलाषात्मक भाषा बोलने का निषेध 1
५१ पवन आदि होने या न होने के बारे में अभिलाषात्मक भाषा बोलने का निषेध |
५२, ५३ मेघ, आकाश और राजा के बारे में बोलने का विवेक !
२४ सावयानुमोदनी आदि विशेषणयुक्त भाषा बोलने का निषेध ५५, ५६ भाषा विषयक विधि-निषेध ।
५७ परीक्ष्यभाषी और उसको प्राप्त होने वाले फल का निरूपण ।
१ आचार - प्रणिधि के प्ररूपण की प्रतिज्ञा । २ जीव के भेदों का निरूपण ।
३-१२ षड्जीवनिकाय की यतना-विधि का निरूपण ।
१३-१६ आठ सूक्ष्म स्थानों का निरूपण और उनकी यतना का उपदेश ।
१७, १८ प्रतिलेखन और प्रतिष्ठापन का विवेक ।
१६ गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होने के बाद के कर्त्तव्य का उपदेश ।
२०.२१ दृष्ट औरत के प्रयोग का विवेक और गृहियोग - गृहस्थ की घरेलू प्रवृत्तियों में भाग लेने का निषेध ।
२२ गृहस्थ को भिक्षा की सरसता, नीरसता तथा प्राप्ति और अप्राप्ति के निर्देश करने का निषेध । २३ भोजनगृद्धी और अप्रासु भोजन का निषेध
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