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________________ 21 13 " " " 11 " 11 11 "3 11 " 11 31 , २६, ३३ वृक्ष और उसके अवयवों के बारे में बोलने का विवेक । ३४, ३५ औषधि (अनाज) के बारे में बोलने का विवेक । ३६-३६ संखडि ( जीमनवार), चोर और नदी के बारे में बोलने का विवेक । 12 ,, ४०, ४२, ४१ सावद्य प्रवृत्ति के सम्बन्ध में बोलने का विवेक । " 31 33 31 " 33 31 " 17 "3 37 11 12 " ४४ ६ शंकित भाषा का प्रतिषेध । १० निःशंकित भाषा बोलने का विधान । ११, १२, १३ पुरुष और हिंसात्मक सत्य भाषा का निषेध । ११४ तुच्छ और अपमानजनक सम्बोधन का निषेध | १५ पारिवारिक ममत्व-सूचक शब्दों से स्त्रियों को सम्बोधित करने का निषेध । १६ गौरव वाचक या चाटुता सूचक शब्दों से स्त्रियों को सम्बोधित करने का निषेध । १७ नाम और गोत्र द्वारा स्त्रियों को सम्बोधित करने का विधान । Jain Education International १८ पारिवारिक ममत्व-सूचक शब्दों से पुरुषों को सम्बोधित करने का निषेध । १६ गौरव - वाचक या चाटुता सूचक शब्दों से पुरुषों को सम्बोधित करने का निषेध । २० नाम और गोत्र द्वारा पुरुषों को सम्बोधित करने का विधान । २१ स्त्री या पुरुष का सन्देह होने पर तत्सम्बन्धित जातिवाचक शब्दों द्वारा निर्देश करने का विधान । २२ अप्रीतिकर और उपघातकर वचन द्वारा सम्बोधित करने का निषेध । २३ शारीरिक अवस्थाओं के निर्देशन के उपयुक्त शब्दों के प्रयोग का विधान । २४, २५ गाय और बैल के बारे में बोलने का विवेक । अष्टम अध्ययन : आचार-प्रणिधि ( आचार का प्रणिधान) श्लोक ४३ विक्रय आदि के सम्बन्ध में वस्तुओं के उत्कर्ष सूचक शब्दों के प्रयोग का निषेध । २४४ चिन्तनपूर्वक भाषा बोलने का उपदेश । ४५,४६ लेने, बेचने की परामर्शदात्री भाषा के प्रयोग का निषेध | ४७ असंयति को गमनागमन आदि प्रवृत्तियों का आदेश देने वाली भाषा के प्रयोग का निषेध । ४८ असाधु को साधु कहने का निषेध । दसवेआलियं ( दशवेकालिक) ४६ गुण सम्पन्न संयति को ही साधु कहने का विधान । ५० किसी की जय-पराजय के बारे में अभिलाषात्मक भाषा बोलने का निषेध 1 ५१ पवन आदि होने या न होने के बारे में अभिलाषात्मक भाषा बोलने का निषेध | ५२, ५३ मेघ, आकाश और राजा के बारे में बोलने का विवेक ! २४ सावयानुमोदनी आदि विशेषणयुक्त भाषा बोलने का निषेध ५५, ५६ भाषा विषयक विधि-निषेध । ५७ परीक्ष्यभाषी और उसको प्राप्त होने वाले फल का निरूपण । १ आचार - प्रणिधि के प्ररूपण की प्रतिज्ञा । २ जीव के भेदों का निरूपण । ३-१२ षड्जीवनिकाय की यतना-विधि का निरूपण । १३-१६ आठ सूक्ष्म स्थानों का निरूपण और उनकी यतना का उपदेश । १७, १८ प्रतिलेखन और प्रतिष्ठापन का विवेक । १६ गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होने के बाद के कर्त्तव्य का उपदेश । २०.२१ दृष्ट औरत के प्रयोग का विवेक और गृहियोग - गृहस्थ की घरेलू प्रवृत्तियों में भाग लेने का निषेध । २२ गृहस्थ को भिक्षा की सरसता, नीरसता तथा प्राप्ति और अप्राप्ति के निर्देश करने का निषेध । २३ भोजनगृद्धी और अप्रासु भोजन का निषेध For Private & Personal Use Only ३६६ www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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