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________________ दसवेआलियं (दशवकालिक) ___४०४ अध्ययन ८ : श्लोक ४० टि० १०७ १. रात्निक-पूर्वदीक्षित २. समव्रत-सहदीक्षित ३. ऊनरात्निक–पश्चात्दीक्षित श्रमण वसुनन्दी ने मूलाचार की टीका में 'रादिणिय' और 'ऊन रादिणिय' के संस्कृत रूप रात्निक और ऊनरात्निक किए हैं। १०७. ध्रुवशीलता की ( धुवसीलयं ख): ध्रुवशीलता का अर्थ पूर्णिकार और टीकाकार ने अष्टादश-सहस्र-शीलान किया है । वह इस प्रकार है : जे णो करंति मणसा, णिज्जियआहारसन्ना सोइंदिये। पुढविकायारंभ, खंतिजुत्त ते मुणी वंदे ॥१॥ यह एक गाथा है। दूसरी गाथा में 'खंति' के स्थान पर मुत्ति' शब्द आएगा शेष ज्यों का त्यों रहेगा। तीसरे में 'अज्जव' आएगा । इस प्रकार १० गाथाओं में दश धर्मों के नाम क्रमश: आएंगे। फिर ग्यारहवीं गाथा में 'पुढवि' के स्थान पर 'आउ' शब्द आएगा। पुढवि के साथ १० धर्मों का परिवर्तन हुआ था उसी प्रकार 'आउ' शब्द के साथ भी होगा। फिर 'आउ' के स्थान पर क्रमशः 'तेउ', 'वाउ', 'वणस्सई', 'बेइंदिय', 'तेइंदिय', 'चतुरिंदिय', 'पंचेंदिय' और 'अजीव' ये दश शब्द आएंगे। प्रत्येक के साथ दश धर्मों का परिवर्तन होने से (१०x१०) एक सौ गाथाएँ हो जाएँगी। १०१ गाथा में 'सोइंदिय' के स्थान पर 'चक्खुरिदिय' शब्द आएगा। इस प्रकार पाँच इन्द्रियों की (१००४५) पांच सौ गाथाएं होंगी। फिर ५०१ में 'आहारसन्ना' के स्थान पर 'भयसन्ना' फिर 'मेहुणसन्ना' और 'परिग्गहसन्ना' शब्द आएँगे। एक संज्ञा के ५०० होने से ४ संज्ञा के (५००x४) २००० होंगे। फिर 'मणसा' शब्द का परिवर्तन होगा। 'मणसा' के स्थान पर 'वयसा' फिर 'कायसा आएगा। एक-एक का २००० होने से तीन कायों के (२०००४३) ६००० होंगे । फिर 'करंति' शब्द में परिवर्तन होगा। 'करंति' के स्थान पर 'कारयंति' और 'समणुजाणति' शब्द आएँगे । एक-एक के ६००० होने से तीनों के (६०००४३) १८,००० हो जाएँगे। संक्षेप में यों कह सकते हैं --दश धर्म क्रमश: बदलते रहेंगे। प्रत्येक धर्म १८०० बार आएगा। १० धर्मों के बाद 'पुढविकाय' में परिवर्तन आएगा। प्रत्येक दशक के बाद ये दश काय बदलते रहेंगे। प्रत्येक काय १८० बार आएगा । फिर 'सोइंदिय' शब्द बदल जाएगा। प्रत्येक सौ के बाद 'इंदिय' परिवर्तन होगा। प्रत्येक इंदिय ३६ बार आएगा। फिर 'आहारसन्ना' में परिवर्तन होगा। चारों संज्ञाएँ क्रमश: बदलती जाएंगी। प्रत्येक ५०० के बाद संज्ञा बदलेगी, प्रत्येक संज्ञा ६ बार आएगी। फिर 'मणसा' शब्द में परिवर्तन होगा। तीन काय क्रमश: बदलती रहेंगी। प्रत्येक दो हजार के बाद काय का परिवर्तन होगा। प्रत्येक काय ३ बार आएगा। फिर 'करंति' में परिवर्तन होगा। प्रत्येक ६००० के बाद तीनों करण का परिवर्तन होगा। प्रत्येक करण एक-एक बार आएगा। इस प्रकार एक गाथा के १८,००० गाथाएँ बन जाएँगी। ये अठारह हजार शील के अंग हैं। इन्हें रथ से निम्न प्रकार उपमित किया जाता है : १-(क) जि० चू० पृ० २८७ : धुवसीलयं णाम अट्टारससीलंगसहस्साणि । (ख) हा० टी०प० २३५ : 'ध्र वशीलताम्' अष्टादशशीलाङ्गसहस्रपालनरूपाम् । Jain Education Intemational Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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