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दसवैआलियं (दशवकालिक)
३३२ अध्ययन ६ : श्लोक ६८ टि० १०८ १०८. सौधर्मावतंसक आदि विमानों को ( विमाणाइ घ):
वैमानिक देवों के निवास स्थान 'विमान' कहलाते हैं । सम्यग्-ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करने वाले उत्कृष्टतः अनुत्तर विमान तक चले जाते हैं।
१-हा० टी०प० २०७ : 'विमानानि' सौधर्मावतंसकादीनि । २–अ० चू० पृ० १५८ : विमाणाणि उक्कोसेण अणुत्तरादीणि ।
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