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________________ भूमिका ३५ सर्वाधिक प्रयत्न किया है। संस्कृत-छाया में मुनि सुमेरमल (लाडनूं) का योग है। मुनि सुमन तथा कहीं-कहीं हनराज और बसंत भी प्रतिलिपि करने में मुनि नथमल के सहयोगी रहे हैं । श्रीचन्दजी रामपुरिया ने इस कार्य में अपने तीव्र अंध्यवसाय का नियोजन कर रखा है। मदनचन्दजी गोठी भी इस कार्य में सहयोगी रहे हैं। इस प्रकार अनेक साधु-साध्वियों व श्रावकों के सहयोग से प्रस्तुत ग्रन्थ सम्पन्न हुआ है। ____ दशवकालिक सूत्र के सर्वाङ्गीण सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को ही मिलना चाहिए, क्योंकि इस कार्य में अहर्निश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, इसीसे यह कार्य सम्पन्न हो सका है अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता। इनकी दृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है, साथ ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्प पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है । विनय-शीलता, श्रम परायणता और गुरु के प्रति सम्पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है । यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है। इनको कार्या-क्षमता और कर्तव्यपरता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है । अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे शिष्य साधु-साध्वियों के निःस्वार्थ, बिनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। मुनि पुण्यविजयजी का समय-समय पर सहयोग और परामर्श मिला है उसके लिए हम उनके कृतज्ञ हैं । उनका यह संकेत भी मिला था कि आगम कार्य यदि अहमदाबाद में किया जाये तो साधन-सामग्री की सुविधा हो सकती है। हमारा साधु-साध्वी वर्ग और श्रावक-समाज भी चिरकाल से दशवकालिक की प्रतीक्षा में है। प्रारम्भिक कार्य होने के कारण कुछ समय अधिक लगा फिर भी हमें संतोष है कि इसे पढ़कर उसकी प्रतीक्षा संतुष्टि में परिणत होगी। आजकल जन-साधारण में ठोस साहित्य पढ़ने की अभिरुचि कम है । उसका एक कारण उपयुक्त साहित्य की दुर्लभता भी है । मुझे विश्वास है कि चिरकालीन साधना के पश्चात् पठनीय सामग्री सुलभ हो रही है, उससे भी जन-जन लाभान्वित होगा। इस कार्य-संकलन में जिनका भी प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग रहा, उन सबके प्रति मैं विनम्र भाव से आभार व्यक्त करता हूँ। भिक्षु-बोधि स्थल राजसमन्द वि. सं. २०१६ फाल्गुन शुक्ला तृतीया आचार्य तुलसी Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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