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________________ पिंडेसणा ( पिण्डैषणा) २८३ अध्ययन ५ (द्वि० उ०) श्लोक २३-२४ टि०४३-४७ श्लोक २३ : ४३. कैथ' ( कविट्ठ क): कैथ एक प्रकार का कंटीला पेड़ है जिसमें बेल के आकार के कसैले और खट्टे फल लगते हैं। ४४. बिजौरा ( माउलिगं क ): बीजपूर, मातुलुंग, रुचक, फलपूरक इसके पर्यायवाची नाम हैं। ४५. मूला और मूले के गोल टुकड़े ( मूलगं मूलगत्तियं ख) : 'मूलक' शब्द के द्वारा पत्र-सहित-मूली' और 'मूलक कत्तिका' के द्वारा पत्र-रहित-मूली का ग्रहण किया है । चूणि के अनुसार यह पाठ 'मूलकत्तिया'--'मूलकत्तिका' और टीका के अनुसार 'मूलवत्तिया' 'मूलवत्तिका' है। सुश्रुत (४.६.२५७) में कच्ची मूली के अर्थ में 'मूलक-पोतिका' शब्द प्रयुक्त हुप्रा है । संभव है उसी के स्थान में 'मूलबत्तिय' का प्रयोग हुआ हो । श्लोक २४: ४६. फलचूर्ण, बीज चूर्ण ( फलमंथूणि क; बीयमंथूणि ख ) : बेर आदि फलों के चूर्ण को 'फलमन्यु' कहते हैं और जौ, उड़द, मूंग आदि बीजों के चूर्ण को 'बीजमन्थु' कहते हैं । आयार घूला में उदुम्बर, न्यग्रोध (बरगद), प्लक्ष (पाकड़), अश्वत्थ आदि के मन्थुओं का उल्लेख है । देखिए 'मंथु' (५.१.६८) की टिप्पण संख्या २२८ । ४७. बहेड़ा ( बिहेलगं" ): अर्जन वृक्ष की जाति का एक बड़ा और ऊँचा वृक्ष, जिसके फल दवा के काम में आते हैं। त्रिफला में से एक फल । १-(क) अ० चू० पृ० १३० : कवित्थफलं 'कविट्ठ'। (ख) हा० टी० प० १८५ : 'कपित्थं' कपित्थफलम् । २-(क) अ० चू० पृ० १३० : बीजपूरगं मातुलिगं । (ख) जि० चू० पृ० १९८ : कविट्ठमालिंगाणि पसिद्धाणि । (ग) हा० टी० ५० १८५ : मातुलिङ्गच' बीजपूरकम् । ३--शा० नि० भू०५७८ । ४-जि० चू० पृ० १६८ : मूलओ सपत्तपलासो। ५-अ० चू० पृ० १३० : मूलगकंदगचक्कलिया। (ख) जि. चू० पृ० १९८ : मूलकत्तिया-मूलकंदा चित्तलिया भण्णइ : (ग) हा० टी०प०१८५ : 'मूलवत्तिका' मुलकन्दचक्कलिम। ६-(क) जि० चू०प०१९८ । (ख) हा० टी०प०१८५। ७- (क) जि० चू० पृ० १६८ : मंथू --बदरचुष्णो भण्णइ, फलमथू बदरओंबरादोणं भण्णइ । (ख) हा० टी० ५० १८६ : 'फलमन्थून्' बदरचूर्णान् । ८-(क) जि० चू० पृ० १६८ : 'बीयमंथू' जवमासमुग्गादीणि । (ख) हा० टी० ५० १८६ : 'बीजमन्थून' यवादिचूर्णान् । -- आ० चू० १११११ : उबरमंथु वा, नग्गोहमंथु वा, पिलुखुमं, वा, आसोत्थमंथु वा, अन्नयरं वा, तहप्पगारं मंथुजाय । १०-(क) अ०० १० १३० : 'विभेलगं' भूतरुक्खफलं, तस्समाणजातीतं हरिंडगाति वा । (ख) जि० चू०१० १९८: बिहेलगरुक्खस्स फलं बिहेलगं । (ग) हा० टी०प० १८६ : 'बिभीतक' बिभीतकफलम् । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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