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भूमिका
जायेगा तो जिनवाणी का सर्वथा अभाव हो जायगा। अतः उन्होंने श्री पुष्पदन्त और श्री भूतवलि सदृश मेवावी ऋषियों को बुलाकर गिरिनार की चन्द्रगुफा में उसे लिपिबद्ध करा दिया। उन दोनों ऋषिवरों ने उस लिपिबद्ध श्रुतज्ञान को ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी के दिन सर्व संघ के समक्ष उपस्थित किया था। वह पवित्र दिन 'श्रुत पंचमी' पर्व के नाम से प्रसिद्ध है और साहित्योद्धार का प्रेरक कारण बन गया है।
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भी आगमों का विच्छेद और ह्रास हुआ है फिर भी कुछ आगम आज भी उपलब्ध हैं। उनके विच्छेद और ह्रास का क्रम इस प्रकार है
केवली:
१ सुधर्मा
चौदह पूर्वीः--
१ प्रभव २ शय्यंभव ३ यशोभद्र ४ संभूतविजय ५ भद्रबाहु -(वीर निर्वाण-१५०-१७०) ६ स्थूलभद्र' ( वीर निर्वाण १७०-२१५)}
सूत्रतः चौदहपूर्वी
अर्थत: दसपूर्वी दसपूर्वोः -
१ महागिरी २ सुहस्ती ३ गुणसुन्दर ४ श्यामाचार्य ५ स्कंदिलाचार्य ६ रेवतीमित्र ७ श्रीधर्म ८ भद्रगुप्त ६ श्रीगुप्त
१० विजयसूरि तोसलिपुत्र आचार्य के शिष्य श्री आर्यरक्षित नौ पूर्व तथा दसवें पूर्व के २४ यविक के ज्ञाता थे। आर्यरक्षित के वंशज आर्यनं दिल (वि० ५९७) भी है। पूर्वी थे ऐसा उल्लेख मिलता है। आर्यरक्षित के शिष्य दुर्ब लिका पुष्यमित्र नौ पूर्वी थे।
.. धवला टीका भा० १, भूमिका पृ० १३-३२ ।
(क) चौदह पूर्वी की तरह १३, १२, ११, पूर्वी की परम्परा रही हो-ऐसा इतिहास नहीं मिलता। सम्भव है ये चारों पूर्व एक साथ ही पढ़ाये जाते रहे हों। आचार्य द्रोण ने ओधनियुक्ति की टीका (पत्र ३) में यह उल्लेख किया है कि १४ पूर्वी के बाद १० पूर्वी ही होते हैं। (ख) चतुःशरण गाथा ३३ की वृत्ति में ऐसा उल्लेख है कि ये चारों पूर्व (११ से १४) एक साथ व्युच्छिन्न होते हैं -अन्त्यानि
चत्वारि पूर्वाणि प्रायः समुदितान्येव व्युच्छिद्यन्ते इति चतुर्दशपूर्व्यन्तरं दशपूविणोऽभिहिताः । ३. प्रभावक चरित्र-'आर्यरक्षित' श्लोक ८२-८४ । ४. प्रबन्ध पर्यालोचन पृ० २२ । ५. प्रभावक चरित्र --'आर्यनन्विल'।
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