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पिंडेसणा (पिण्डेषणा )
३५ असण
दवीए भायणेण
दिज्जमाणं न इच्छेज्जा पच्छाकम्मं जहि भवे ।
३६ - संसण
हत्थेण
दवीए भायणेण वा । दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा ज तत्बेसणियं
भवे ॥
३७ – दोहं तु भुजमाणाणं
. १४०
एगो तत्थ
निमंतए ।
दिज्जमाणं न
इच्छेज्जा
छंद
से
पहिए ||
३९ गुब्विणीए
विविहं
भुज्जमाणं
भुत्तसे
हत्येण
१४३.
२८-- दोन्हं तु भुजमाणाणं
दोवि तत्थ निमंतए । दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा
जं
तत्थेसणियं भवे ॥
४० सिया
वा ।
य
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४१-तं भवे
संजयाण
देतियं
न मे कप्पड़
समणट्ठाए
गुब्विणी कालमासिणी । उडिया वा निसीएन्जा निसन्ना
वा
पुण्हुए ॥
उवन्नरथं
पाणभीषणं ।
विवज्जेज्जा
पच्छिए ॥
भत्तपाणं तु अकप्पियं ।
पडियाइक्वे तारिस ॥ १४व
१८५
असंसृष्टेन हस्तेन
दर्या भाजनेन वा ।
दीयमानं येत्
पश्चात्कर्म यत्र भवेत् ॥ ३५ ॥
संसृष्टेन हस्तेन,
दर्या भाजनेन वा ।
दीयमानं प्रतीच्छेत्, यत्तत्रेषणीयं भवेत् ॥३६॥
द्वयोस्तु भुञ्जानयोः,
एकस्तत्र निमन्त्रयेत् ।
दीयमानं न इच्छेत्,
धन्यं तस्य प्रतिलेखयेत् ॥ ३७॥
द्वयोस्तु भुञ्जानयोः
द्वावपि तत्र निमन्त्रयेवाताम् ।
दीयमानं प्रतीच्छे
यत्तत्रैषणीयं भवेत् ॥ ३८॥
विण्या उपन्यस्तं,
विविधं पान-भोजनम्।
भूश्यमानं विवर्जयेत्
भक्त प्रती ॥३
स्याच्च श्रमणार्थ,
विधी कासमासिनी ।
उत्थिता वा निषीदेत्
निषण्णा वा पुनरुतिष्ठेत् ॥४०॥
तद्भवेद् भक्त पानं तु, संयतानामकल्पिकम् । ददर्ती प्रत्याचक्षत
न मे कल्पते तादृशम् ॥ ४१ ॥
अध्ययन ५ ( प्र० उ०) श्लोक ३५-४१
३५] जहाँ पश्चात् कर्म का प्रस
हो वहीं असंसृष्ट १३९ ( भक्त-पान से अलिप्त ) हाथ, कड़छी और बर्तन से दिया जाने वाला आहार मुनि न ले ।
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१३९
३६ संष्ट (भक्त-मान से लिप्त ) हाथ, कड़छी और बर्तन से दिया जाने वाला आहार, जो वहाँ एषणीय हो, मुनि ले ले ।
३७ - दो स्वामी या भोक्ता हों १४१ और एक निमन्त्रित करे तो मुनि वह दिया जाने वाला आहार न ले । दूसरे के अभिप्राय को देखे १४२ – उसे देना अप्रिय लगता हो तो न ले और प्रिय लगता हो तो ले ले 1
३८ - दो स्वामी या भोक्ता हों और दोनों ही निमन्त्रित करें तो मुनि उस दीयमान आहार को, यदि वह एनीय हो तो ले ले।
३६ - गर्भवती स्त्री के लिए बना हुआ विविध प्रकार का भक्त पान वह खा रही हो तो मुनि उसका विवर्जन करे, १४४ खाने के बाद बचा हो वह ले ले
1
४०-४१ काल मासवती १४५ दभिणी खड़ी हो और श्रमण को भिक्षा देने के लिए कदाचित् बैठ जाए अथवा बैठी हो और खड़ी हो जाए तो उसके द्वारा दिया जाने वाला भक्त - पान संयमियों के लिए अकल्प्य होता है इसलिए मुनि देती हुई स्त्री को प्रतिषेध करे - इस प्रकार का आहार में नहीं ले
सकता ।
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