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________________ छज्जीवणिया ( षड्जीवनिका ) १४२ सूत्र १३ : अध्ययन ४ : सूत्र १३-१४ टि० ५२-५७ ५२. अदत्तादान का ( अदिन्नादाणाओ ) : बिना दिया हुआ लेने की बुद्धि से दूसरे के द्वारा परिगृहीत अथवा अपरिगृहीत तृण, काष्ठ आदि द्रव्य- मात्र का ग्रहण करना अदत्तादान है' । ५३. गाँव में अरण्य में ( गामे वा नगरे वा रणे वा ) : ये शब्द क्षेत्र के द्योतक हैं। इन शब्दों के प्रयोग का भावार्थ है-- किसी भी जगह, किसी भी क्षेत्र में ग्रस्त करे, उसे ग्राम कहते हैं । जहाँ कर न हो उसे नकर-नगर कहते हैं । कानन आदि को अरण्य कहते हैं । ५४. अल्प या बहुत ( अप्पं वा बहं वा ) अल्प के दो भेद होते हैं- ( १ ) मूल्य में अल्प - जैसे जिसका काष्ठ। इसी तरह 'बहुत' के भी दो भेद होते हैं- (१) मूल्य में बहुत ५५. सूक्ष्म या स्थूल ( अणुं वा थूलं वा ) : सूक्ष्म जैसे—मूलक की पत्ती अथवा काष्ठ की चिरपट आदि । स्थूल - जैसे - सुवर्ण का टुकड़ा अथवा उपकरण आदि । ५६. सचित या अचित्त ( चितमंतं वा अचित्तमंतं वा ) चेतन अथवा अचेतन । पदार्थ तीन तरह के होते हैं : चेतन, अचेतन और मिश्र । चेतन -- जैसे मनुष्यादि । अचेतन - जैसे कार्षापण आदि । मिश्र - जैसे अलङ्कारों से विभूषित मनुष्यादि । जो बुद्धि आदि गुणों को मूल्य एक कौड़ी हो । ( २ ) परिणाम में अल्प - जैसे एक एरण्डसे वैदूर्य ( २ ) परिमाण में बहुत जैसे तीन-चार वंदूयं । सूत्र १४ : ५७. देव "तिर्यञ्च सम्बन्धी मैथुन ( मेहूणं दिव्वं वा तिरियखजोगियं वा ) ये शब्द द्रव्य के द्योतक हैं। मैथुन दो तरह का होता है (१) रूप में (२) रूपसहित द्रव्य में रूप में अर्थात् निर्जीव वस्तुओं के १ (क) अ० ० ० ८३ परेहि परिग्यहितस्स वा अपरिग्वहितस्स या अणगुष्णातस्स गहणण विष्णादाणं । (ख) जि० चू० पृ० १४६ : सीसो भणइ - तं अदिण्णादाणं केरिसं भवइ ?, आयरिओ भणइ- -ज अदिण्णादाणबुद्धीए परेहि परिस्ति या अपरिगहियस्स वा तपकट्ठाइदच्चजातस्स गहणं करेइ तमदिष्यादागं भवइ । २- हा० टी० प० १४७ : प्रसति बुद्ध यादीन् गुणानिति ग्रामः । ३ - हा० टी० प० १४७: नास्मिन् करो विद्यत इति नकरम् । Jain Education International ४- हा० टी० प० १४७ अरण्णं काननादि । ५.- (क) अ० चू० पृ० ८३ : अप्पं परिमाणतो मुल्लतो वा; परिमाणतो जहा एगा सुवण्णा गुंजा, मुल्लतो कवड्डितामुल्भं वत्युं । वहं परिमाणतो मुस्लो वा परिमाणतो सहस्तपमाणं मुल्तो एक्कं वेदतिं । (ख) जि० चू० पू० १४६ : अप्पं परिमाणओ य मुल्लओय, तत्थ परिमाणओ जहा एवं एरंडकट्ठ एवमादि, मुल्लओ जस्स एगो कब वृणी वा अप्यमुलं, यह नाम परिमाणओ मुखओ व परिमाणओ जहा तिमि बारिधि बरा लिया मुल्लओ एगमवि वेरुलियं महामोल्लं । (ग) हा० डी० १० १४७ अमूर्त एरण्डकाष्ठादि वह बच्चादि । ६ (क) ० ० ० ३ अगादि भूतं कोपरगादी। (ख) नि० ० ० १४६ अलगपत्ताही अहवाल वा एवमादि पूलं सुबखोटी बेलिया या उबगरण (ग) हा० टी० प० १४७: अणु-प्रमाणतो वज्रादि स्थूलम् - एरण्डकाष्ठादि । (क) अ० ० ० ८३ वित्तमंत गवादि अचितमंत करियावा । : । (ख) जि० चू० पृ० १४६ : सव्वंपेयं सचित्तं वा होज्जा अचित्तं वा होज्जा मिस्लयं वा, तत्थ सचित्तं मणुयादि अचित्तं काहाव नादि मीस ते चैव मणुपाद विभूसिया | अलंकिय (ग) हा० टी० प० १४७ चेतनाचेतनमित्यर्थः । : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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