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छज्जीवणिया (षड्जीवनिका )
नवीयावज्जा अन्नं फुमंतं वा वीयंत या न समजणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिथिहेणं मणेर्ण वायाए काएणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्नं न समणुजानामि ।
तस्स भंते । पडियकमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।
वा
२२- से भिक्खू वा भिक्खुणी संजयविरयपरिपच्चक्खाय पावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ श सुत्ते वा जागरमाणे वा से बीएस वा बीय पहिए वा रुवाए
तस्स भंते! पविकमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं बोसिरामि ।
११३
अन्यं वा व्यन्तं वा न समजा नीयात् यावत्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन मनसा वाचा कायेन न करोमि न कारयामि कुर्वन्त मध्यन्यं न समनुजानामि ।
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तस्य भदन्त ! प्रतिकामामि निन्दामि आत्मानं सृजामि ||२१||
वा जाएस वा जायपइट्टिएकोप्रतिनिधितेषु वा न गच्छेत्
बा हरिए वा हरियपइटिए वा छिन्ने वा हिन्नपइट्टिएस वा सच्चित्तकोलप डिनिस्सिएसु वा न गच्छेज्जा न चिट्ठेज्जा न निसीएज्जा न तुपज्जा अन्नं न गच्छावेज्जा न चिट्ठाबेज्जा न निसियावरजा न तुट्टामा अन्नं गच्छतं वा चिठ्ठतं वा निसीयंतं वा तुयट्टतं वा न समगुजारना जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारयेमि करतं पि अन्नं न समजाणामि ।
स भिक्षु भिक्षुको वा संयत-विरतप्रतिहत प्रत्याख्यात पापकर्मा दिवा वा रात्रौ वा एकको वा परिषद्गतो वा सुप्तो वा जाड़ा बीनेषु वा बोजप्रतिष्ठितेषु पा युवा प्रतिष्ठितेषु वा जातेषु वा जातप्रतिष्ठितेषु वा हारेतेषु वा हरितप्रतिष्ठितेषु वा छिन्नेषु वा छिन्नप्रतिष्ठितेषु वा सचित्त
न
तित् न निवदेन त्वग्स अम्यं न गमपेत् न स्थापयेत् न निषादयेत् न त्वग्वर्तयेत् अन्यं
या तिष्ठन्तं वा नियन्तं वा स्वगतं मानं वाम समनुजानीयात् यावज्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन- -मनसा वाचा कायेन न करोमि न कारयामि कुर्वन्तमप्यन्यं न समनु
जानामि ।
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तस्य भदन्त ! प्रतिक्रामामि निन्दामि आत्मानं व्युत्सृजामि ॥२२॥
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अध्ययन ४ : सूत्र २२
वाले या हा करने वाले का अनुमोदन न करे, यावज्जीवन के लिए, तीन करण तीन योग से मन से, वचन से, काया सेन करूंगा, न कराऊँगा और करने वाले का अनुमोदन भी नहीं करूंगा।
भंते ! मैं अतीत के वायु-समारम्भ से निवृत्त होता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, ग करता हूँ और आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूँ ।
२२ -- संयत विरत प्रतिहत प्रत्याख्यातपापकर्मा भिक्षु अपना भिक्षुणी, दिन में या रात में, एकान्त में या परिषद् में, सोते या जानते बीजों पर बीजों पर रखी हुई वस्तुओं पर, स्फुटित बीजों पर,१९ स्फुटित बीजों पर रखी हुई वस्तुओं पर पत्ते आने की अवस्था वाली वनस्पति पर, ११° पत्ते आने की अवस्था वाली वनस्पति पर स्थित वस्तुओं पर हरि पर, हरित पर रखी हुई वस्तुओं पर छिन्न वनस्पति के अंगों पर ११३ छिन्न वनस्पति के अंगों पर रखी हुई वस्तुओं पर सचित को अण्डों एवं काट-कीटसे पुक्त काण्ड आदि पर ११२ न चले न खड़ा रहे, न बैठे, न सोये; ११३ दूसरों को न चलाए, न खड़ा करे, न बैठाए, न सुलाए चलने खड़ा रहने बैठने या सोने वाले का अनुमोदन न करे, यावज्जीवन के लिए, तीन करण, तीन योग सेमन से, वचन से, काया से -न करूँगा न कराऊँगा और करने वाले का अनुमोदन भी नहीं करूँगा ।
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भंते! मैं अतीत के वनस्पति-समारम्भ से निवृत होता है, उसकी निन्दा करता है, गर्दा करता हूँ और आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूँ ।
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