SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खुड्डियायारकहा ( क्षुल्लिकाचार-कथा) 8 अध्ययन ३ : श्लोक १५ टि० ६६ की उपाधियों से रहित हो मुक्त होता है। जघन्यतः एक भव में और उत्कृष्टतः सात-आठ भव ग्रहण कर मुक्त होता है । इस क्रम का उल्लेख आगमों में अनेक स्थलों पर हुआ है। इस अध्ययन के श्लोक १३ और १५ की तुलना उत्तराध्ययन के निम्नलिखित श्लोकों से होती है : खवेत्ता पुत्मकम्माई, संजमेण तवेण य । सव्वदुक्खपहीणट्ठा, पक्कमन्ति महेसिणो ॥ खवित्ता पुव्वकम्माइं, संजमेण तवेण य । जयघोस विजयधोसा, सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ।। १-(क) अ० चू० पृ० ६४ : कदाति अणंतरे उक्कोसेण सत्त-टुभवग्गहणेसु सुकुलपच्चायाता बोधिमुबलभित्ता। (ख) जि० चू० पृ० ११७ : केइ पुण तेण भवग्गहणेण सिझति, 'तत्थ जे तेणेव भवग्गणेण न सिझंति ते वेमाणिएसु उववज्जंति, तत्तोवि य चइऊणं धम्मचरणकाले पुवकयसाबसेसेणं सुकुलेसु पच्चायंति, तओ पुणोवि जिणपण्णत्तं धम्म पडिवज्जिऊण जहण्णेण एगेण भवग्ग हणेणं उक्कोसेणं सहिं भवग्गहणेहि 'जाणि तेसि तत्थ सावसेसाणि कम्माणि ताणि संजमतवेहि खविऊणं जहा ते तवनियमेहि कम्मखवणटुब्भुज्जुत्ता अओ ते सिद्धिमग्गमणुपत्ता " जाइजरामरण रोगादीहि सव्वप्पगारेणवि विप्पमुक्कत्ति । (ग) हा० टी०प० ११६ । २-उत्त० ३.१४-२०। ३-वही, २८.३६ । ४-वही, २५.४३ । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy