SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नायाधम्मकहाओ पहागाइपहागं विज्जाहर चारणे जंभए व देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पास, पासित्ता बाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुहइ, पच्ची हित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविणं अभिगमेणं अभिगच्छइ । (तं जहा - १. सचित्ताणं दव्याणं विसरणवाए २. अमिता दव्वाणं अविउसरणयाए ३. एगसाहिय उत्तरासंगकरणेणं ४. चक्खुफासे अंजलिपग्गणं ५. मणसो एगत्तीकरणेणं । ) जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिण पयाहिणं करेड़, करेत्ता वंद नमसइ वंदित्ता नमसत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स नन्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पंजलिउडे अभिमु विणणं पज्जुवासइ ॥ धम्मदेसणा-पदं १००. तए णं समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ जह जीवा बज्झति मुच्चति जहा य सकितिस्सति । धम्मकहा भाणियव्वा जाव परिसा पडिगया ।। मेहस्स पव्वज्जासंकम्प-पदं १०१. तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आपाहिण पवाहिणं करेह, करेत्ता बंद नमंसह वंदित्ता नमसत्ता एवं वयासी- सदहामि णं भंते! निग्गंध पावयणं । पत्तियामि णं भंते! निग्धं पावयणं । रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । अन्भुद्वेमि णं भंते! निग्गंध पावपण । एवमेवं भंते! तहमेयं भते! अवितहमेयं भते! इच्छियमेयं भंते! पहिच्छियमेयं भंते! इच्छप-पडिडियमेयं भंते! से जहेयं तुब्भे वह नगरि देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपृच्छामि । तओ पच्छा मुडे भक्त्तिा गं अगाराओ अणमारियं पव्वइस्सामि । अहासुहं देवाणुपिया! मा परिबंध करेहि ।। ३१ मेहस्स अम्मापिऊणं निवेदण-पदं १०२. तए णं से मेहे कुमारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणामेव उवागच्छइ, Jain Education International प्रथम अध्ययन : सूत्र ९९-१०२ आया । आकर श्रमण भगवान महावीर के वहां छत्रों, अतिछत्रों, पताकाओं और अतिपताकाओं तथा विद्याधर, चारण और जृम्भक देवों को आते-जाते हुए देखा देखकर वह चार घंटाओं 1 वाले अश्वरथ से नीचे उतरा। उतरकर पांच प्रकार के अभिगमों से" श्रमण भगवान महावीर के पास गया । जैसे -- १. सचित्त द्रव्यों को छोड़ना २. अचित्त द्रव्यों को छोड़ना ३. एक शाटक वाला उत्तरासंग करना ४ दृष्टिपात होते ही बद्धाञ्जलि होना ५. मन को एकाग्र करना । जहां श्रमण भगवान महावीर थे, वहां आया। आकर दायीं ओर से प्रारम्भ कर तीन बार प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा कर वन्दना नमस्कार किया । वन्दना नमस्कार कर श्रमण भगवान महावीर के न अति निकट, न अति दूर, शुश्रूषा और नमस्कार करते हुए सम्मुख रहकर विनय पूर्वक बद्धांजलि पर्युपासना करने लगा। धर्म देशना पद १००. श्रमण भगवान महावीर ने कुमार मेघ और उस विशाल परिषद् में विचित्र धर्म का प्रतिबोध दिया जिन कारणों से जीव बद्ध होते हैं. मुक्त होते हैं और जिन कारणों से संक्लेश को प्राप्त होते हैं यह धर्मकथा औपपातिक के अनुसार वर्णनीय है यावत परिषद् चली गयी। मेघ का प्रव्रज्या संकल्प-पद १०१. श्रमण भगवान महावीर के पास धर्म सुनकर, अवधारण कर तुष्ट होकर कुमार मेघ ने श्रमण भगवान महावीर को दायीं ओर से प्रारम्भ कर तीन बार प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा कर वन्दना नमस्कार किया । वन्दना नमस्कार कर इस प्रकार कहा- भन्ते ! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर श्रद्धा करता हूं । भन्ते मैं निर्ग्रन्य-प्रवचन पर प्रतीति करता हूं। भन्ते ! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर रुचि करता हूं। भन्ते मैं निन्ध-प्रवचन (की आराधना) में अभ्युत्थान करता हूं यह ऐसा ही है भन्ते ! यह तथा (संवादितापूर्ण) है भन्ते ! यह अवितथ है भन्ते ! यह इष्ट है भन्ते ! यह प्रतीप्सित ( प्राप्त करने के लिए इष्ट) है भन्ते ! यह इष्ट, प्रतीप्सित, दोनों है भन्ते ! जैसा तुम कह रहे हो। लेता हूं। पूछ केवल एक बार देवानुप्रिय ! मैं अपने माता-पिता से उसके पश्चात् मुण्ड हो, अगार से अनगारता में प्रव्रजित होऊंगा। भगवान ने कहा -- जैसा सुख हो देवानुप्रिय ! प्रतिबन्ध मत करो । मेघ का माता-पिता से निवेदन - पद १०२. कुमार मेघ ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना नमस्कार किया । वन्दना - नमस्कार कर जहां चार घण्टाओं वाला अश्वरथ था, वहां For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy