SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ प्रथम अध्ययन : सूत्र ३९-४५ नायाधम्मकहाओ पडिचारियाणं सेणियस्स निवेदण-पदं परिचारिकाओं द्वारा श्रेणिक को निवेदन-पद ३९. तए णं ताओ अंगपडिचारियाओ अभिंतरियाओ दासचेडियाओ ३९. धारिणी देवी द्वारा अनादृत और उपेक्षित होने पर उनकी वे अंग धारिणीए देवीए अणाढाइज्जमाणीओ अपरिजाणिज्जमाणीओ तहेव परिचारिकाएं और अन्तरंग दास-चेटियां सहसा संभ्रान्त हो उठीं। वे संभंताओ समाणीओ धारिणीए देवीए अंतियाओ पडिनिक्खमंति, धारिणी देवी के आवास से बाहर निकलीं। निकलकर जहां श्रेणिक पडिनिक्खमित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता राजा था वहां आई। आकर दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं वाली अंजलि को सिर के सम्मुख धुमाकर मस्तक पर टिका कर विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी--एवं खलु सामी! 'जय-विजय' की ध्वनि से राजा श्रेणिक का वर्धापन किया। वर्धापन किंपि अज्ज धारिणी देवी ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव कर वे इस प्रकार बोली--स्वामिन्! आज धारिणी देवी रुग्ण, रुग्ण अट्टज्झाणोवगया झियायइ। शरीर वाली यावत् आर्तध्यान में डूबी हुई कुछ चिन्ता मग्न हो रही है। सेणियस्स चिंताकारणपुच्छा-पदं ४०. तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडिचारियाणं अंतिए एयमद्वं सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणिं देविं ओलुग्गं ओलुग्गसरीरं जाव अट्टज्झाणोवगयं झियायमाणिं पासइ, पासित्ता एवंवयासी-किण्णं तुम देवाणुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया झियायसि? श्रेणिक द्वारा चिन्ता का कारण पृच्छा-पद ४०. उन अंग परिचारिकाओं से यह बात सुनकर, अवधारण कर राजा श्रेणिक सहसा संभ्रान्त हो उठा। वह शीघ्रता, त्वरता, चपलता और उतावलेपन से जहां धारिणीदेवी थी, वहां आया। वहां आकर धारिणी देवी को रुग्ण, रुग्ण शरीर वाली यावत् आर्तध्यान में डूबी हुई, चिन्तामग्न देखा। देखकर वह इस प्रकार बोला--देवानुप्रिये! तुम रुग्ण, रुग्ण शरीर वाली यावत् आर्तध्यान में डूबी हुई चिन्ता मग्न क्यों हो रही हो? ४१. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाणइ जाव तुसिणीया संचिट्ठइ।। ४१. राजा श्रेणिक द्वारा ऐसा कहने पर धारिणी देवी ने न उसको आदर दिया और न उसकी बात पर ध्यान दिया यावत् वह मौन रही। ४२. तए णं से सेणिए राया धारिणि देविं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-किण्णं तुमं देवाणुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया झियायसि? ४२. राजा श्रेणिक ने दुबारा-तिबारा भी धारिणी देवी से यही कहा--देवानुप्रिये! तुम रुग्ण, रुग्ण शरीर वाली यावत् आर्तध्यान में डूबी हुई चिन्तामग्न क्यों हो रही हो? ४३. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाणइ तुसिणीया संचिट्ठइ।। ४३. तब राजा श्रेणिक द्वारा यह बात दुहराए-तिहराए जाने पर भी धारिणी देवी ने न उसको आदर दिया और न उसकी बात पर ध्यान दिया। वह मौत रही। ४४. तए णं से सेणिए राया धारिणिं देविं सवह-सावियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी--किण्णं देवाणुप्पिए! अहमेयस्स अट्ठस्स अणरिहे सवणयाए? तो णं तुम ममं अयमेयारूवं मणोमाणसियं दुक्खं रहस्सीकरेसि ।। ४४. राजा श्रेणिक ने धारिणी देवी को सौगंध दिलाई। सौगंध दिलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रिये! क्या मैं इस बात को सुनने के योग्य नहीं हूं जो तुम मन के अन्तराल में छिपे इस विशिष्ट प्रकार के दुःख को मुझसे छिपाती हो? धारिणीए चिंताकारणनिवेदण-पदं ४५. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा सवह-साविया समाणी सेणियं रायं एवं वयासी--एवं खलु सामी! मम तस्स उरालस्स जाव महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे धारिणी द्वारा चिन्ता-कारण-निवेदन-पद ४५. राजा श्रेणिक द्वारा शपथ पूर्वक सौगंध दिलाने पर धारिणी देवी ने राजा श्रेणिक से इस प्रकार कहा--स्वामिन्! उस उदार यावत् हाथी का महास्वप्न देखने के पश्चात् तीसरे महीने के कुछ दिन बीत जाने Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy