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________________ आमुख प्रस्तुत अध्ययन में आकीर्ण अश्वों के उदाहरण से मूर्च्छा और अमूर्च्छा का प्रतिपादन किया गया है। इसलिए इस अध्ययन का नाम आकीर्ण है। यह अध्ययन प्राचीन काल की समुद्र यात्रा की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसमें वणिक, नौका के उपकरण और नौका चलाने की विधि आदि का सजीव वर्णन है। ऋग्वेद में व्यापारियों के लिए वणिज् शब्द का प्रयोग किया गया है। वैदिक युग में व्यापारी अपना माल बेचने के लिए लम्बी यात्राएं करते थे। मौर्य युग में व्यापार की समुचित व्यवस्था प्रणाली थी। व्यापार के अध्यक्ष को पण्याध्यक्ष कहा जाता था। उसका कार्य था जल व स्थल मार्गों से आने वाले माल की मांग, खपत और व्यापार से सम्बन्धित अन्य सभी कार्यों का सम्पादन करना । । ऋग्वेद में समुद्र के रत्न, मोती का व्यापार और समुद्र व्यापार के लाभ का विस्तार से वर्णन है संहिताओं में भी समुद्र यात्रा का वर्णन है। इनके अनुसार समुद्री व्यापार नाव से चलता था। बहुधा नौ शब्द का व्यवहार नदियों में चलने वाली छोटी नाव व समुद्र में चलने वाले बेड़े-बड़ी नाव के लिए होता था। व्यापार के सम्बंध में जैन साहित्य में विशेष विवरण है। सार्थवाह नामक पुस्तक में भी उसका उल्लेख है। शाह की इस पुस्तक में ज्ञातधर्मकथा के आकीर्ण कथानक का भी संकेत है। कालिक द्वीप में व्यापारियों को सोने, चांदी की खदाने हीरे और रत्न मिले। वहां के धारीदार घोड़े ( जेब्रे ) बहुत विचित्र थे । मोतीचंद शाह के अनुसार कालिक द्वीप वर्तमान में पूर्वी अफ्रीका का क्षेत्र रह होगा। 7 प्रस्तुत अध्ययन में अश्वों के माध्यम से आसक्ति और अनासक्ति के परिणाम को बताया गया है जो साधक मूर्च्छित अश्वों की तरह इन्द्रिय विषयों में आसक्त होते हैं वे दुःखी हो जाते हैं जो साधक अमूर्च्छित अश्वों की तरह इन्द्रिय विषयों का संयम करते हैं वे जरा और मृत्यु से रहित आनंददायक निर्वाण को प्राप्त करते हैं। | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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