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________________ सोलहवां अध्ययन : सूत्र १६५-१७१ १६५. तए णं ताई वासुदेवपामोक्खाई बहूणि रायसहस्साणि महवा महया सदेगं उम्पोसेमाणाई उम्पोसेमाणाई एवं वयति-सुवरियं खलु भो! दोवईए रायवरकण्णाए त्ति कट्टु सयंवरमंडवाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सया सया आवासा तेणेव उवागच्छति ।। १६६. तए गंधणे कुमारे पंच पंडवे दोवई च रायवरकण्णं चाउग्घंटं आसरहं दुरुहावेइ, दुरुहाक्ता कपिल्लपुरं नयरं मज्झमज्झेणं उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं भवणं अणुपविसइ ।। ३३२ पाणिग्गहण-पदं १६७. तए णं से दुवए राया पंच पंढवे दोवई व रायवरकण्णं पट्ट दुरुहावे, दुरुहावेत्ता सेवापीयएहिं कलसेहिं मज्जावेद, मज्जावेता अग्गिहोमं करावे, पंचण्डं पंडवाणं दोवईए य पाणिग्गहणं कारावेइ ।। १६८. तए गं से दुवए राया दोवईए रायवरकण्णाए इमं एमारूवं पीइदाणं दलपतं जहा- अड्ड हिरण्णकोडोओ जाव पेसणकारीओ दासचेडीओ, अण्णं च विपुलं घण-कणग- रयण-मणि-मोतियसंख सिलप्पवात रत्तरयण संत सार-सावएज्जं अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं - दलयइ ।। १६९. तए णं से दुवए राया ताइं वासुदेवपामोक्खाइं बहूई रायसहस्साई विपुलेणं असण पाण- स्लाइम साइमेणं पुप्फ-वत्य-गंधमल्लालंकारेण सक्कारेइ सम्माणेड़, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। पंडुरायस्स निमंत्रण-पदं १७०. तए णं से पंडू राया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं क्यासी एवं खलु देवाणुपिया हत्यिणाउरे नयरे पंच पंडवाण दोवईए य देवी कल्लाणकारे भविस्सह । तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया! म अहिमाणा अकालपरिहीणं चैव समोसरह ।। १७१. तए णं ते वासुदेवपामोक्ला बहवे रायसहस्सा पत्तेय पत्तेयं व्हाया सण्णद्ध बद्ध-वम्मिय - कवया हत्थिखंधवरगया जाव जेणेव हत्यिणाउरे नयरे तेणेव पहारेत्य गमणाए । Jain Education International नायाधम्मकाओ १६५. वे वासुदेव प्रमुख अनेक हजार राजा उच्च स्वर से उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार बोले- राजगण! प्रवर राजकन्या द्रौपदी ने सम्यक् वरण किया है-- यह कहते हुए वे स्वयंवर मण्डप से निकल गए। निकलकर जहां अपने-अपने आवास थे, वहां आए। १६६. धृष्टद्युम्न कुमार ने पांचों पाण्डवों को तथा द्रौपदी को चार घंटों वाले अश्व-रथ पर आरूढ़ किया। आरूढ़कर काम्पिल्यपुर नगर के बीचोंबीच होता हुआ आया । आकर अपने भवन में प्रवेश किया। पाणिग्रहण पद १६७. द्रुपद राजा ने प्रवर राजकन्या द्रौपदी को पट्ट पर बिठाया । बिठाकर रजत-स्वर्णमय कलशों से नहलाया। नहलाकर अग्नि- होम करवाया तथा पांचों पाण्डवों और द्रौपदी का पाणिग्रहण करवाया। - १६८. द्रुपद राजा ने प्रवर राजकन्या द्रौपदी को इस प्रकार प्रीतिदान दिया, जैसे - आठ हिरण्य कोटि यावत् प्रेव्यकर्म करने वाली सेविकाएं। इसके अतिरिक्त अन्य भी बहुत सारा धन, कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न तथा श्रेष्ठ सुगन्धित द्रव्य एवं दान, भोग आदि के लिए स्वापतेय दिया, जो सात पीढ़ी तक प्रचुर मात्रा में दान करने, प्रचुर मात्रा में भोगने और प्रचुर मात्रा में बांटने में पर्याप्त था। १६९. उस पद राजा ने उन वासुदेव प्रमुख अनेक हजार राजाओं को विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य तथा पुष्प, वस्त्र, गन्धचूर्ण, माला और अलंकारों से सत्कृत किया सम्मानित किया। सत्कृत- सम्मानित कर प्रतिविसर्जित किया । पाण्डुराज का निमन्त्रण-पद १७०. उस पाण्डु राजा ने वासुदेव प्रमुख उन अनेक हजार राजाओं को सटे हुए दस नखों वाली दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! हस्तिनापुर नगर में पांचों पाण्डवों और द्रौपदी देवी का कल्याणकारी उत्सव होगा। अतः देवानुप्रियो ! तुम मुझ पर अनुग्रह कर यथासमय वहां पहुंचो १७१. उन वासुदेव प्रमुख अनेक हजार राजाओं ने पृथक्-पृथक् स्नान कर, सन्नद्ध-बद्ध हो कवच पहन, प्रवर हस्तिस्कन्ध पर आरूढ़ हो यावत् जहां हस्तिनापुर नगर था उधर प्रस्थान किया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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