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नायाधम्मकहाओ
दोवर्ड कहाणग-पदं
१२०. तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचाले जणवसु कंपिल्तपुरे नाम नपरे होत्या वण्णओ ।।
१२१. तत्थ णं दुवए नामं राया होत्था-वण्णओ ।। १२२. तस्स णं चुलणी देवी । धद्वज्जुणे कुमारे जुवराया ।।
१२३. तए णं सा सूमालिया देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिक्लएणं भवक्त्रएणं अनंतरं चयं चत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारडे वासे पंचालेसु जणवएस कंपिल्लपुरे नयरे दुक्यस्त रण्णो चुतणीए देवीए कुच्छिसि दारिवत्ताए पच्चायाया ।।
१२४. तए णं सा चुतणी देवी नवहं मासाणं बहुपडिपुण्गाणं अद्रुमाण व राइदियाणं बीइक्कंताणं सुकुमाल पाणिपाय जाव दारियं पयाया ।।
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१२५. तए गं तीसे दारियाए निव्यत्तवारसाहियाए इमं एयारूवं नाम - जम्हा गं एसा दारिया दुपयरस रण्णो घूया नुतणीए देवीए अत्तया, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामघेज्जे दोवई ।।
१२७. तए णं सा दोवई दारिया पंचधाईपरिग्गहिया जाव गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपगलया निवाय निव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवद ।।
१२८. तए णं सा दोवई रायवरकण्णा उम्मुक्कबालभावा विण्णय परिणयमेत्ता जोम्यगगमणुपत्ता रूवेण य जोब्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्या ।।
१२९. तए णं तं दोवनं रायवरकण्णं अण्णया कयाइ अंतेउरियाओ • हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता दुवयस्स रण्णो पायवंदियं पेसेंति ।।
१२६. तए णं तीसे अम्मापियरो इमं एवारूवं गोण्णं गुणनिफन्नं १२६. उसके माता-पिता ने इस प्रकार यह गुणानुरूप गुण-निष्पन्न नाम नामघेज्जं करेंति - दोवई - दोवई ।।
रखा -- द्रौपदी... .. द्रौपदी।
१३०. तए णं सा दोवई रायवरकण्णा जेणेव दुवए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दुवयस्स रण्णो पायग्गहणं करेइ ।।
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दोवईए सयंवर संकप-पदं
१३१. तए णं से दुवए राया दोवइं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता
सोलहवां अध्ययन सूत्र १२०-१३१
द्रौपदी का कथानक - पद
१२०. उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप-द्वीप, भारतवर्ष और पाञ्चाल जनपद में काम्पिल्यपुर नाम का नगर था- वर्णक ।
१२९. वहां द्रुपद नाम का राजा था - वर्णक ।
१२२. उसके चुलनी देवी थी। धृष्टद्युम्न कुमार युवराज था ।
१२३. वह सुकुमालिका देवी आयुक्षय, स्थितिक्षय और भवक्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्युत होकर, इसी जम्बूद्वीप द्वीप, भारतवर्ष और पांचाल जनपद में काम्पिल्यपुर नगर में राजा द्रुपद की रानी चुलनी की कुक्षि में बालिका के रूप में उपपन्न हुई।
१२४. उस चुलनी देवी ने पूरे नौ मास और साढ़े सात दिन बीत जाने पर, एक सुकुमार हाथ पावों वाली यावत् बालिका को जन्म दिया।
१२५. जब वह बालिका बारह दिन की हुई तब उसका यह नाम रखा क्योंकि हमारी यह बालिका राजा दुपद की पुत्री और चुलनी देवी की आत्मजा है, अतः हमारी इस बालिका का नाम द्रौपदी हो ।
१२७. वह द्रौपदी बालिका पांच धाय-माताओं से परिगृहीत यावत् निर्वात और निर्व्यापाल गिरिकन्दरा में आतीन चम्पकलता की भांति सुखपूर्वक बढ़ रही थी।
१२८. वह प्रवर राजकन्या द्रौपदी शैशव को लांघकर विज्ञ और कला में पारगामी बन यौवन को प्राप्त हो, रूप यौवन और लावण्य से उत्कृष्ट और उत्कृष्ट शरीर वाली हुई।
१२९. किसी समय अन्त: पुर की महिलाओं ने उस प्रवर राजकन्या द्रौपदी को नहलाकर यावत् सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया। विभूषित कर राजा द्रुपद के कक्ष में) पाद वन्दन के लिए भेजा।
१३०. वह प्रवर राजकन्या द्रौपदी, जहां द्रुपद राजा था, वहां आयी। वहां आकर उसने द्रुपद राजा के चरण छुए।
द्रौपदी का स्वयंवर संकल्प-पद
१३१. उस राजा द्रुपद ने बालिका द्रौपदी को गोद में बिठाया। बिठाकर
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