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________________ सोलहवां अध्ययन : सूत्र ७९-८७ ३१६ नायाधम्मकहाओ ७९. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे सूमालियं दारियं ण्हायं जाव ७९. सागरदत्त सार्थवाह ने कुमारी सुकुमालिका को नहलाकर यावत् सब सव्वालंकारविभूसियं करेत्ता तं दमगपुरिसं एवं वयासी--एस णं प्रकार के अलंकारों से विभूषित कर उस द्रमक पुरुष से इस प्रकार देवाणुप्पिया! मम धूया इट्टा कंता पिया मणुण्णा मणामा । एवं कहा--देवानुप्रिय! यह मेरी पुत्री मुझे इष्ट, कमनीय, प्रिय, मनोज्ञ और णं अहं तव भारियत्ताए दलयामि, भद्दियाए भद्दओ भवेज्जासि ।। मनोगत है। इसे मैं तेरी भार्या के रूप में प्रदान करता हूं। इस भाग्यशालिनी के योग से तूं भी भाग्यशाली बन। दमगस्स पलायण-पदं ८०. तए णं से दमगपुरिसे सागरदत्तस्स एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सूमालियाए दारियाए सद्धिं वासघरं अणुपविसइ, सूमालियाए दारियाए सद्धिं तलिमंसि निवज्जइ।। द्रमक का पलायन-पद ८०. उस द्रमक पुरुष ने सागरदत्त के इस अर्थ को स्वीकार किया। स्वीकार कर उसने कुमारी सुकुमालिका के साथ वासघर में प्रवेश किया और कुमारी सुकुमालिका के साथ शय्या पर सोया। ८१. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए इमेयारूवं अंगफासं पडिसवेदेइ, से जहानामए--असिपत्ते इ वा जाव एत्तो अमणामतरागं चेव अंगफासं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ।। ८१. उस द्रमक पुरुष ने सुकमालिका के अंग-स्पर्श का ऐसा प्रतिसंवेदन किया, जैसे-असिपत्र हो यावत् उसके अंग-स्पर्श का इससे भी अमनोगततर प्रतिसंवेदन करता हुआ विहार करने लगा। ८२. तए णं से दमगपुरिसे समालियाए दारियाए अंगफासं असहमाणे अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ।। ८२. वह द्रमक पुरुष सुकुमालिका के अंग-स्पर्श को सहन न करता हुआ विवशता से मुहूर्त भर वहां ठहरा। ८३. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए दारियाए पासाओ उठेइ, उठूत्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिजंसि निवज्जइ।। ८३. वह द्रमक पुरुष कुमारी सुकुमालिका को सुखपूर्वक सोयी हुई जानकर कुमारी सुकुमालिका के पास से उठा। उठकर जहां उसका अपना शयनीय था, वहां आया। आकर अपने शयनीय पर सो गया। ८४. तए णं सा सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया पइमणुरत्ता पइं पासे अपासमाणी तलिमाओ उढेइ, उद्देत्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दमगपुरिसस्स पासे णुवज्जइ।। ८४. उसके मुहूर्त भर पश्चात् कुमारी सुकुमालिका जागी। पतिव्रता, पति के प्रति अनुरक्ता उस सुकुमालिका ने जब पति को अपने पास नहीं देखा तो वह शय्या से उठी। उठकर जहां पति का शयनीय था, वहां आयी। वहां आकर द्रमक पुरुष के पास सो गई। ८५. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए दारियाए दोच्चंपि इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ जाव अकामए अवसवसे मुहुत्तमेतं संचिट्ठइ।। ८५. उस द्रमक पुरुष ने दूसरी बार भी कुमारी सुकुमालिका के अंग-स्पर्श का ऐसा ही प्रतिसंवेदन किया यावत् वह अनचाहे ही विवशता से वहां मुहूर्त भर ठहरा। ८६. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सयणिज्जाओ अब्भुटेइ, अब्भुतॄत्ता वासघराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता खंडमल्लगं खंडघडगं च गहाय मारामुक्के विव काए जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए। ८६. वह द्रमक पुरुष कुमारी सुकुमालिका को सुखपूर्वक निकलकर सोयी हुई जानकर शयनीय से उठा। उठकर वासघर से निकला, फूटा हुआ भिक्षापात्र और फूटा हुआ घड़ा लेकर वधस्थान से मुक्त कौवे की भांति जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया। सूमालियाए पुणोचिंता-पदं ८७. तए णं सा सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणुरत्ता पइं पासे अपासमाणी सयणिज्जाओ उढेइ, दमगपुरिसस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं वयासी--गए णं से सुकुमालिका का पुन: चिन्ता-पद ८७. मुहूर्त भर पश्चात् सुकुमालिका जागी। पतिव्रता, पति के प्रति अनुरक्ता उस सुकुमालिका ने जब पति को अपने पास नहीं देखा, तो वह शय्या से उठी। द्रमक पुरुष की चारों ओर खोज करते-करते उसने वासघर का द्वार खुला देखा। यह देखकर वह इस प्रकार Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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