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________________ सोलहवां अध्ययन सूत्र ३७-४५ सूमालियाए सागरेण सद्धिं विवाह पदं ३७. तए णं सा सूमालिया दारिया उम्मुक्कबालभावा विण्णयपरिणयमेत्ता जोब्वणगमणुपत्ता स्वेण य जोब्बणेण व लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किदुसरीरा जाया यानि होत्या ।। ३८. तत्थ णं चंपाए नयरीए जिणदत्ते नामं सत्थवाहे -- अड्ढे ।। ३९. तस्स णं जिणदत्तस्स भद्दा भारिया - सूमाला इट्ठा माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरइ ।। ४०. तस्स णं जिणदत्तस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सागरए नाम दारए - सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे ।। ३१० ४१. तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ सयाओ गिहाओ पडिनिक्समइ, पडिनिक्वमित्ता सागरदत्तस्त सत्यहवाहस्स अदूरसामतेणं बीईवयइ । इमं च णं सूमालिया दारिया व्हाया बेडिया चवकवालसंपरिवुडा उप्पिं आगासतलंगसि कणग-तिंदूसएणं कीलमाणीकीलमाणी विहरड़ ।। ४२. तए गं से जिणदत्ते सत्यवाहे सूमालियं दारियं पास, पासित्ता सूमालियाए दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य जायविम्हए कोडुबियपुरिसे सहावे सहावेत्ता, एवं क्यासी--एस णं देवागुप्पिया! कस्स दारिया ? किं वा नामधेज्जं से? ४३. तए णं से कोटुंबियपुरिसा जिणदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वृत्ता समाणा हट्टा करयलपरिग्गहियं सिरसावतं मत्यए अंजलिं कट्टु एवं वयासी -- एस णं देवाणुप्पिया! सागरदत्तस्स सत्यवा घूया भद्दाए भारियाए अत्तया सूमालिया नामं दारिया - सुकुमालपाणिपाया जाव रूपेण य जोम्बणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा ।। ४४. तए णं जिणवत्ते सत्यवाहे तेसिं कोडुबियाणं अंतिए एवम सोच्चा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता हाए मित्त-नाइ परिवुडे चंपाए नवरीए मजांमज्झेणं जेणेव सागरदत्तस्त गिहे तेणेव उवागए । ४५. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जिणदत्तं सत्यवाहं एज्जमाणं पासइ, पासिता आसणाओ अब्भुट्ठेइ अब्भुट्टेत्ता आसणेणं उवनिमंते, उवनिमंतेत्ता आसत्थं वीसत्थं सुहासणवरगयं एवं पाली -भण देवाणुप्पिया! किमागमणपओवणं? Jain Education International नायाधम्मकाओ सुकुमालिका का सागर के साथ विवाह पद ३६. वह सुकुमातिका बालिका शैशव को लांघकर विज्ञ और कला की पारगामी बन यौवन को प्राप्त हो, रूप, यौवन और लावण्य से उत्कृष्ट और उत्कृष्ट शरीर वाली हुई । ३८. उस चम्पा नगरी में जिनदत्त नाम का एक आढ्य सार्थवाह था । ३९. उस जिनदत्त सार्थवाह के भद्रा नाम की भार्या थी वह सुकुमार और इष्ट थी। वह मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों का अनुभव करती हुई विहार करती थी । ४०. उस जिनदत्त का पुत्र और भद्रा भार्या का आत्मज सागर नाम का बालक था। वह सुकुमार हाथ- पावों वाला यावत् सुरूप था। ४१. किसी समय जिनदत्त सार्थवाह ने अपने घर से निष्क्रमण किया। निष्क्रमण कर सागरदत्त सार्थवाह के घर के आसपास से होकर गया। उधर वह सुकुमालिका बालिका स्नान कर दासियों के समूह मे परिवृत हो ऊपर खुले में सोने की गेंद से क्रीड़ा करती हुई विहार कर रही थी। ४२. जिनदत्त सार्थवाह ने सुकुमालिका बालिका को देखा। देखकर उसने सुकुमालिका बालिका के रूप, यौवन और लावण्य पर अनुरक्त होकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा -- देवानुप्रियो ! यह बालिका किसकी है? इसका नाम क्या है? ४३. जिनदत्त सार्थवाह के ऐसा कहने पर हृष्ट-पुष्ट हुए कौटुम्बिक पुरुष दोनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुट आकार वाली अञ्जलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार बोले- देवानुप्रिय! यह सागरदत्त सार्थवाह की पुत्री भद्रा भार्या की आत्मजा सुकुमालिका नाम की बालिका है। यह सुकुमार हाथ-पावों वाली यावत् रूप, यौवन और लावण्य से उत्कृष्ट है। ४४. उन कौटुम्बिक पुरुषों से यह अर्थ सुनकर जिनदत्त सार्थवाह, जहां अपना घर था, वहां आया। वहां आकर स्नान कर मित्र, ज्ञाति से परिवृत हो, चम्पानगरी के बीचोंबीच होता हुआ, जहां सागरदत्त घर था, वहां आया। ४५. सागरदत्त सार्थवाह ने जिनदत्त सार्थवाह को आते हुए देखा देखकर वह आसन से उठा । उठकर (जिनदत्त को) आसन से उपनिमन्त्रित किया। उपनिमन्त्रित कर आश्वस्त विश्वस्त हो प्रवर सुखासन में बैठ इस प्रकार कहा- कहो देवानुप्रिय! किस प्रयोजन से आगमन हुआ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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