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________________ चोद्दसमं अज्झयणं : चौदहवां अध्ययन तेयली : तेतली उक्खे व-पदं १. जइ णं भते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, चोद्दसमस्स णं भते! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? उत्क्षे प पद १. भन्ते! यदि धर्म के आदिकर्ता, सिद्धि गति संप्राप्त यावत् श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता के तेरहवें अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है, तो उन्होंने ज्ञाता के चौदहवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? २. एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं तेयलिपुरं नाम नयरं। पमयवणे उज्जाणे । कणगरहे राया। २. जम्बू ! उस काल और उस समय तेतलीपुर नाम का नगर, प्रमदवन उद्यान और कनकरथ राजा था। ३. तस्स णं कणगरहस्स पउमावई देवी।। ३. उस कनकरथ के पद्मावती देवी थी। ४. तस्स णं कणगरहस्स तेयलिपुत्ते नाम अमच्चे--‘साम-दंड- भेय-उवप्पयाण-नीति-सुपउत्त-नयविहण्णू विहरइ ।। ४. उस कनकरथ के तेतलीपुत्र नाम का अमात्य था। वह साम, दण्ड, भेद और उपप्रदान आदि नीतियों तथा सुप्रयुक्त नयविधियों का ज्ञाता था। ५. तत्थ णं तेयलिपुरे कलादे नामं मूसियारदारए होत्था--अड्ढे जाव अपरिभूए॥ ५. तेतलीपुर में कलाद नाम का स्वर्णकार-पुत्र था। वह आढ्य यावत् अपराजित था। ६. तस्स णं भद्दा नाम भारिया ।। ६. उसके भद्रा नाम की भार्या थी। ७. तस्स णं कलायस्स मूसियारदारगस्स घूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला नामंदारिया होत्था--रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा॥ ७. उस स्वर्णकार-पुत्र कलाद की पुत्री, भद्रा की आत्मजा पोट्टिला नाम की बालिका थी। वह रूप , यौवन और लावण्य से उत्कृष्ट तथा उत्कृष्ट शरीर वाली थी। पोट्टिलाए कीडा-पदं ८.तए णं सा पोट्टिला दारिया अण्णया कयाइ ण्हाया सव्वालंकार- विभूसिया चेडिया-चक्कवाल-संपरिवुडा-उप्पिं पासायवरगया आगासतलगंसि कणगतिंदूसएणं कोलमाणी-कीलमाणी विहरइ।। पोट्टिला का कीड़ा-पद ८. किसी समय वह पोट्टिला बालिका स्नान कर, सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित और दासियों के समूह से परिवृत हो प्रवर प्रासाद के ऊपर खुले आकाश में सोने की गेंद से क्रीड़ा करती हुई विहार कर रही थी। तेयलिपुत्तस्स आसत्ति-पदं ९. इमं च णं तेयलिपुत्ते अमच्चे ण्हाए आसखंधवरगए महया भड-चडगर-आसवाहणियाए निज्जायमाणे कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ।। तेतलीपुत्र का आसक्ति-पद ९. अमात्य तेतलीपुत्र स्नान कर, प्रवर अश्व-स्कन्ध पर आरूढ़ हो, महान सुभटों की विभिन्न टुकड़ियों के साथ, अश्व वाहिनिका (क्रीड़ा) के लिए निर्याण करता हुआ स्वर्णकार-पुत्र कलाद के घर के आसपास से होकर गुजरा। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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