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आमुख
प्रस्तुत अध्ययन में तेतलीपुत्र का आख्यान वर्णित है। इसलिए इसका यह नाम रखा है । इस अध्ययन का प्रतिपाद्य है--दु:ख भी वैराग्य का एक हेतु बनता है। जीवन में दुःख या प्रतिकूलता आने पर व्यक्ति को धर्म के मर्म को समझने का अवसर मिलता है। धर्म का हार्द समझ में आने पर अहंकार और ममकार का विलय हो जाता है। दुःख सुख में बदल जाता है और आनंद की अनुभूति होने लगती है।
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तेलीपुत्र का आख्यान एक रोमांचकारी आख्यान है । प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रकर्ष एवं अपकर्ष की स्थितियां आती हैं। अनुकूलता और प्रतिकूलता की परिस्थिति में, आरोह-अवरोह की स्थिति में व्यक्ति की क्या मनोदशा होती है? उसे कैसी अनुभूति होती है ? किस प्रकार प्रियता अप्रियता में बदल जाती है और उस अवस्था में व्यक्ति का व्यवहार कैसा हो जाता है। प्रस्तुत अध्ययन में इन सब प्रश्नों का बहुत ही मनोवैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण किया गया है।
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व्यक्ति के भीतर जब क्रूरता और महत्वाकांक्षा जाग्रत होती है तब मानवीय संवेदना और करुणा का स्रोत सूख जाता है। राजा कनकरथ राज्यासक्ति में आसक्त होकर अपने पुत्रों को पैदा होते ही विकलांग कर देता पदलिप्सा की आकांक्षा व्यक्ति को कितनी क्रूर बना देती है। यह अध्ययन इसका हृदयविदारक निदर्शन है।
गुणीजनों की संगत से व्यक्ति को सही मार्गदर्शन मिल जाता है। पतन उत्थान में बदल जाता है और जीवन क्रम उत्कर्ष को प्राप्त करता है । तेलीपुर में सुव्रता आर्या का आगमन पोट्टिला के लिए वरदान बन गया और उसके जीवन में एक नया मोड़ आ गया। पोहिला का यह वृतान्त अन्तः चेतना को झकझोरने वाला है।
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देवता के द्वारा तेतलीपुत्र को संबोध देना संबोध के समय अप्रिय वातावरण का निर्माण करना व उस समय की मनोदशा का चित्रण भी बड़ा रोचक और उत्सुकता पैदा करने वाला है।
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