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________________ नायाधम्मकहाओ भगवओ रायगिहे समवसरण-पदं ३७. तेण कालेणं तेण समएणं अहं गोयमा! गुणसिलए समोसढे । परिसा निग्गया ।। -- ३८. तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो व्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण्णं एवमाइक्स एवं खलु समणे भगवं महावीरे इहेब गुणसिलए चेइए समोसटे । तं गच्छामो देवाप्पिया । समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो । एयं णे इहभवे परभवे य हियाए सुहाए समाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ ।। ददुरस्त समवसरणं पइ गमण-पदं ३९. तए णं तस्स ददुरस्त बहुजणस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकष्पे समुप्पज्जित्था -- एवं खलु समणे भगवं महावीरे समोसढे । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि-- एवं सपेहेइ, सपेहेत्ता नंदाओ पोक्खरिणीओ सणियं सणियं पच्चुत्तरेह, जेणेव रायमो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता ताए उक्किट्ठाए दद्दुरगईए वीईवयमाणे - वीईवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।। ४०. इमं च णं सेणिए राया भंभसारे व्हाए जाव सब्वालंकारविभूसिए हत्यिसंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छलेणं धरिज्जमागेणं सेयवरचामरेहि व उद्घव्यमाणेहिं महपाहयगय रह भड चडगर- (कलियाए ? ) चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरितुटे मम पायवंदए हव्वमागच्छइ ।। दद्दुरस्त मच्चु - पदं ४१. तए णं से ददुरे सेणियस्स रण्णो एगेणं आसकिसोरएणं वामपाणं अक्कंते समाणे अंतनिग्घाइए कए यावि होत्या ।। २७१ ४२. तए णं से ददुरे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कट्टु एगतमवक्कमइ, करयलपरिगहियं सिरसावत्तं मत्वए अंजलिं कट्टु एवं वयासी--नमोत्पु णं अरहंताणं जान सिद्धिगइनामपेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव सिद्धिगइनामघेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स | पुव्विपि य णं मए समणस्स भगवजो महावीरस्स अंतिए पूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए, थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चवखाए, पूलए मेहुणे पच्चक्लाए, बूलए परिहे Jain Education International तेरहवां अध्ययन : सूत्र ३७-४२ भगवान का राजगृह में समवसरण पद ३७. गौतम ! उस काल और उस समय मैं गुणशिलक चैत्य में हुआ। जन-समूह ने निर्गमन किया। समवत ३८. नन्दा पुष्करिणी पर स्नान करता हुआ, पानी पीता हुआ और पानी ले जाता हुआ जन-समूह परस्पर इस प्रकार कह रहा था -- श्रमण भगवान महावीर यहीं गुणशिलक चैत्य में समवतृत हैं। इसलिए देवानुप्रियो ! हम चलें। श्रमण भगवान महावीर को वंदना करें, नमस्कार करें। उनका सत्कार करें, सम्मान करें। वे कल्याण-कारक, मंगलमय धर्मदेव और ज्ञानमय हैं, अतः उनकी पर्युपासना करें। यह हमारे इस भव और परभव-- दोनों में हित, सुख, क्षेम, निःश्रेयस और आनुगामिकता के लिए होगा। F दर्दुर का समवसरण की ओर गमन-पद ३९. जन-समूह से यह अर्थ सुनकर, अवधारण कर उस दर्दुर के मन में इस प्रकार का आन्तरिक चिन्तित अभिलषित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ-- श्रमण भगवान महावीर समवसृत हुए हैं। अतः मैं जाऊं और श्रमण भगवान महावीर को वन्दना करूं--ऐसी संप्रेक्षा की। सप्रेक्षा कर नन्दा पुष्करिणी से धीरे-धीरे बाहर निकला। जहां राजमार्ग था वहां आया। वहां आकर वह उस उत्कृष्ट दर्दुर गति से चलता चलता जहां मैं था वहां मेरे पास आने का संकल्प किया। ४०. श्रेणिक राजा भंभासार स्नान कर यावत् सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित हो, प्रवर हस्ति-स्कन्ध पर आरूढ़ हो, कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त छत्र धारण कर, प्रवर श्वेत चामर डुलाते हुए अश्व, गज, रथ तथा पदाति सैनिकों की नाना टुकड़ियों से यात् चतुरंगिणी सेना के साथ, उससे परिवृत हो मेरे पाद-वन्दन के लिए शीघ्रता से आया। दर्दुर का मृत्यु-पद ४१. वह दर्दुर, राजा श्रेणिक के एक अश्व- किशोर के बांए पांव से आक्रान्त होने पर भीतर तक आहत हो गया। For Private & Personal Use Only ४२. वह दर्दुर शक्ति - हीन, बल-हीन, वीर्य-हीन तथा पुरुषाकार और पराक्रम से हीन हो गया। यह शरीर अधारणीय है--ऐसा सोचकर वह एकान्त में गया। वहां जाकर दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार कहा- नमस्कार हो, धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धि गति नामक स्थान को संप्राप्त अर्हत भगवान को नमस्कार हो सिद्धि गति नामक स्थान को संप्राप्त करने वाले श्रमण भगवान महावीर को । 1 www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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