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________________ तेरहवां अध्ययन : सूत्र २४-२८ २६८ नायाधम्मकहाओ य--अप्पेगइया पहायंति अप्पेगइया पाणियं पियंति अप्पेगइया कुछ स्नान करते, कुछ पानी पीते, कुछ पानी ले जाते और कुछ वहां पाणियं संवहति अप्पेगइया विसज्जियसेय-जल्ल-मल-परिस्सम- पसीना, जल्ल, मल, परिश्रम, नींद और भूख-प्यास का अपनयन कर निद्द-खुप्पिवासा सुहंसुहेणं विहरति । सुखपूर्वक क्रीड़ा करते। रायगिहविणिग्गओ वि यत्थ बहुजणो किं ते जलरमण राजगृह नगर से विनिर्गत जन-समूह भी अनेक शकुनि-समूहों विविहमज्जण-कयलिलयाहरय-कुसुम-सत्थरय-अणेगसउणगण- द्वारा कृत मधुर कलरव से संकुल उन जल-क्रीड़ा-गृहों, स्नान-गृहों, कयरिभियसंकुलेसु सुहंसुहेणं अभिरममाणो-अभिरममाणो कदली-गृहों, लता-गृहों और पुष्प-शय्याओं में सुख-पूर्वक अभिरमण विहरइ॥ करता हुआ अभिरमण करता हुआ विहार करने लगा। २५. तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो २५. नन्दा पुष्करिणी में स्नान करता हुआ, पानी पीता हुआ और पानी ले य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण्णं एवं वयासी--धण्णे णं जाता हुआ जन-समूह परस्पर इस प्रकार कहतादेवाणुप्पिया! नदे मणियारसेट्ठी, कयत्थे णं देवाणुप्पिया! नदे धन्य है देवानुप्रियो! नन्द मणिकार श्रेष्ठी, मणियारसेट्ठी, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया! नदे मणियारसेट्ठी, कृतार्थ है देवानुप्रियो! नन्द मणिकार श्रेष्ठी, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया! नदे मणियारेसेट्ठी, कया णं लोया! कृतलक्षण है देवानुप्रियो! नन्द मणिकार श्रेष्ठी, सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले (नंदस्स मणियारस्स?) ? कृतपुण्य है देवानुप्रियो! नन्द मणिकार श्रेष्ठी। जस्स णं इमेयारूवा नंदा पोक्खरिणी चाउक्कोणा जाव पडिरूवा लोगों! मनुष्य-जन्म और जीवन का फल किसने प्राप्त किया है? जाव रायगिहविणिग्गओ जत्थ बहुजणो आसणेसु य सयणेसु य (नन्द मणिकार ने?) जिसने इस विशिष्ट प्रकार की चतुष्कोण यावत् सण्णिसण्णो य संतुयट्टो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं असाधारण नन्दा पुष्करिणी बनवाई, यावत् राजगृह से विनिर्गत विहरइ । तं धन्ने णं देवाणुप्पिया! नदे मणियारसेट्ठी, कयत्थे जन-समूह वहां आसनों और शयनीयों पर बैठता हुआ, सोता हुआ, णं देवाणुप्पिया! नदे मणियारसेट्ठी, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया! देखता हुआ और सराहता हुआ सुखपूर्वक विहार करता। नदे मणियारसेट्ठी, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया! नदे मणियारसेट्ठी, इसलिए धन्य है देवानुप्रियो! नन्द मणिकार श्रेष्ठी, कया णं लोया! सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले नंदस्स कृतार्थ है देवानुप्रियो! नन्द मणिकार श्रेष्ठी, मणियारस्स? कृतलक्षण है देवानुप्रियो। नन्द मणिकार श्रेष्ठी, कृतपुण्य है देवानुप्रियो! नन्द मणिकार श्रेष्ठी। लोगों ! मनुष्य जन्म और जीवन का फल किसने प्राप्त किया है, नंद मणिकार ने? २६. तए णं रायगिहे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह- २६. राजगृह में दोराहों, तिराहों, चौराहों, चौकों, चतुर्मुखों, राजमार्गों और महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ मार्गों में जन-समूह परस्पर इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापना और एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ--धन्ने णं देवाणुप्पिया! नदे मणियारसेट्ठी प्ररूपणा करता--धन्य है देवानुप्रियो! नन्द मणिकार श्रेष्ठी...वर्णन सो चेव गमओ जाव सुहंसुहेणं विहरइ।। पूर्ववत् यावत् सुखपूर्वक विहार करता। २७. तए णं से नदे मणियारसेट्ठी बहुजणस्स अंतिए एयमहूँ सोच्चा २७. वह नन्द मणिकार श्रेष्ठी जन-समूह से यह अर्थ सुनकर, अवधारण निसम्म हट्ठतुढे धाराहत-कलंबगं विव समूसवियरोमकूवे परं कर, हृष्ट तुष्ट होता। उसके रोमकूप धारा से आहत कदम्ब-कुसुम सायासोक्खमणुभवमाणे विहरइ।। की भांति उच्छ्वसित हो उठते। वह परम साता और सुख का अनुभव करता हुआ विहार करने लगा। नंदस्स रोगुप्पत्ति-पदं २८. तए णं तस्स नंदस्स मणियारसेविस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउन्भूया । तं जहा-- गाहा-- सासे कासे जरे दाहे, कुच्छिसूले भगंदरे । अरिसा अजीरए, दिट्ठी-मुद्धसूले अकारए ।। अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू दउदरे कोढे ।।१।। नन्द के शरीर में रोगोत्पत्ति-पद २८. एक समय उस नन्द मणिकार श्रेष्ठी के शरीर में सोलह रोगातंक प्रादुर्भूत हुए। जैसे-- गाथा-- श्वास, कास, ज्वर, दाह, उदर-शूल, भगंदर, अर्श, अजीर्ण, दृष्टि-शूल, शिरःशूल, अरुचि, अक्षि-वेदना, कर्ण-वेदना, कण्डू, जलोदर और कुष्ठ। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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