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________________ नायाधम्मकहाओ २६७ तेरहवां अध्ययन : सूत्र २०-२४ तत्थ णं बहूणि आसणाणि य सयणाणि य अत्थुय-पच्चत्युयाई वहां बहुत सारे आसन और शयन बिछे रहते थे। चिट्ठति। __ वहां भृति, भोजन और वेतन पर काम करने वाले बहुत-से नट, तत्थ णं बहवे नडा य नट्टा य जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग- नर्तक, कोड़ी से जूआ खेलने वाले, पहलवान, मुष्टि युद्ध करने वाले, कहग-पवग-लासग-आइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुंबवीणिया शुभाशुभ बताने वाले, बड़े बांस पर चढ़कर खेल करने वाले, चित्रपट य दिन्नभइ-भत्त-वेयणा तालायरकम्मं करेमाणा-करेमाणा दिखाकर आजीविका करने वाले (मंखलि), तूण (मशक के आकार का विहरंति। वाद्य) वादक, तम्बूरा-वादक, तालाचर कम (नाट्यकर्म) करने वाले रायगिहविणिग्गओ एत्थ णं बहुजणो तेसु पुव्वन्नत्थेसु रहते थे। आसण-सयणेसु सण्णिसण्णो य संतुयट्टो य सुयमाणो य पेच्छमाणो वहां राजगृह से विनिर्गत जन-समूह उन पूर्वन्यस्त आसनों और य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ।। शयनीयों पर बैठता, सोता, सुनता, देखता और चित्रसभा को सराहता हुआ सुखपूर्वक विहार करता। महाणससाला-पदं २१. तएणं नदे मणियारसेट्ठी दाहिणिल्ले वणसडे एगं महं महाणससालं कारावेइ--अणेगखंभसयसण्णिविटुंजाव पडिरूवं । तत्थ णं बहवे पुरिसा दिन्नभइ-भत्त-वेयणा विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेंति, बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं परिभाएमाणा-परिभाएमाणा विहरति ।। महानसशाला-पद २१. नन्द मणिकार श्रेष्ठी ने दक्षिण दिशा वाले वन-खण्ड में एक महान महानसशाला बनवायी। वह अनेक शत खम्भों पर सन्निविष्ट यावत् असाधारण थी। वहां भृति, भोजन और वेतन पर काम करने वाले बहुत से पुरुष विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करते और बहुत से श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण और वनीपकों को वितरित करते रहते। तिगिच्छियसाला-पदं २२. तण णं नदे मणियारसेट्ठी पच्चत्थिमिल्ले वणसडे एगं महं तिगिच्छियसालं कारावेइ--अणेगखंभसयण्णिविटुंजाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य दिन्नभइ-भत्त-वेयणा बहूणं वाहियाण य गिलायाण य रोगियाण य दुब्बलाण य तेइच्छकम्म करेमाणा-करेमाणा विहरति । अण्णे य एत्थ बहवे पुरिसा दिन्नभइ-भत्त-वेयणा तेसिं बहूणं वाहियाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं पडियारकम्म करेमाणा विहरंति॥ चिकित्साशाला-पद २२. नन्द मणिकार श्रेष्ठी ने पश्चिम वाले वन-खण्ड में एक विशाल चिकित्साशाला बनवायी। वह अनेक शत खम्भों पर सन्निविष्ट यावत् असाधारण थी। वहां भृति, भोजन और वेतन पर काम करने वाले बहुत वैद्य, वैद्य-पुत्र, चिकित्सा-शास्त्रज्ञ, चिकित्सा-शास्त्रज्ञ-पुत्र, कुशल-कुशल-पुत्र बहुत से व्याधितों, ग्लानों, रोगियों और दुर्बलों की चिकित्सा करते रहते थे। वहां भृति, भोजन और वेतन पर काम करने वाले अन्य बहुत से परिचारक पुरुष उन व्याधितों, ग्लानों, रोगियों और दुर्बलों की औषध, भैषज्य एवं भक्त-पान से परिचर्या करते रहते थे। अलंकारियसभा-पदं २३. तए णं नदे मणियारसेट्ठी उत्तरिल्ले वणसडे एगं महं अलंकारियसभं कारावेइ--अणेगखंभसयसण्णिविटुं जाव पडिरूवं । तत्थ णं बहवे अलंकारिय-मणुस्सा दिन्नभइ-भत्त-वेयणा बहूणं समणाण य अणाहाण य गिलाणाण य रोगियाण य दब्बलाण य अलंकारियकम्म करेमाणा- करेमाणा विहरति ।। आलंकारिकसभा-पद २३. नन्द मणिकार श्रेष्ठी ने उत्तर वाले वन-खण्ड में एक महान आलंकारिक सभा' बनवायी। वह अनेक शत खम्भों पर सन्निविष्ट यावत् असाधारण थी। वहां भृति, भोजन और वेतन पर काम करने वाले बहुत से आलंकारिक-पुरुष बहुत से श्रमणों, अनाथों, ग्लानों, रोगियों और दुर्बलों का अलंकरण करते रहते थे। नंदस्स पसंसा-पदं २४. तए णं तीए नंदाए पोक्खरिणीए बहवे सणाहा य अणाहा य पंथिया य पहिया य करोडिया य तणहारा य पत्तहारा य कट्ठहारा नन्द का प्रशंसा-पद २४. उस नन्दा पुष्करिणी में अनेक सनाथ, अनाथ, पान्थ, पथिक, कापालिक, तृणहारक, पत्रहारक, काष्ठहारक व्यक्ति आते। उनमें से Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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