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टिप्पण
सूत्र - २
१. आराधक, विराधक (आराहना / विराहगा)।
मोक्ष मार्ग के तीन अंग हैं--ज्ञान, दर्शन और चारित्र । इन तीनों की स्वीकृत साधना का अनुपालन करने वाला आराधक और इनका अतिक्रमण करने वाला विराधक कहलाता है।"
२. द्वीप से उत्पन्न होने वाली (दीविच्चगा)
द्वीप से उठने वाली हवा' वनस्पति जगत के लिए बहुत अनुकूल रहती है। प्रस्तुत सूत्र में उसके चार प्रकार बतलाए गए हैं--पुरेवाया, पच्छावाया, मंदावाया और महावाया।
३. पूर्वी हवा (पुरेवाया)
इसका शाब्दिक अर्थ है पूर्वदिशा की हवा, किन्तु वृत्तिकार ने मुख्य अर्थ किया है कुछ स्नेह युक्त पवन, नम हवा । '
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१. ज्ञातावृत्ति, पत्र - १७९ -- आराधका ज्ञानादिमोक्षमार्गस्य विराधका - अपि तस्यैव ।
२. वहीदीविच्चाप्या द्वीपसम्भवा ।
३. वही -- ईषत् पुरोवाता:-मनाक् सस्नेहवाता इत्यर्थः, पूर्वदिक्-सम्बन्धिनो वा ।
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४. पश्चिमी हवा (पच्छावाया)
वृत्तिकार ने इसकी व्याख्या दो प्रकार से की है- पथ्यावाता और पश्चात् वाता। सामान्यतः यह हवा वनस्पति के लिए हितकर होती है।
राजस्थानी भाषा में पूर्वी और पश्चिमी हवा के लिए क्रमश: पुरवाई और परवाई अथवा पुरवा और परवा शब्दों का प्रयोग होता है।
५. मंद हवा (मंदावाया ) मंद मंद पवन ।
६. महावात (महावाया )
महावात का अर्थ है -- उद्दण्डवात । आंधी,
तूफान
४. वही पथ्या वाता वनस्पतीनां सामान्येन हिता वायवः पश्चाद्वाता वा । ५. वही - - मन्दा :- शनै: सञ्चारिणः ।
६. वही - महावाता: उद्दण्डवाताः ।
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