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प्रस्तुत अध्ययन में माकन्दी सार्थवाह के पुत्र -- जिनपालित और जिनरक्षित के चरित्र का निरूपण है । प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनुकूल व प्रतिकूल दोनों तरह के प्रसंग आते रहते हैं । प्रतिकूलता में अविचल रहने वाला कभी-कभी अनुकूलता में विचलित हो जाता है । रत्नद्वीपदेवी ने बहुत सारे प्रतिकूल उपसर्गों से उन माकन्दिक - पुत्रों को विचलित -- विपरिणामित करने का प्रयास किया। उसका वह प्रयास विफल रहा। उसने अनुकूल उपसर्गों का आलम्बन लिया। रत्नद्वीप देवी के मधुर व कामोत्तेजक वचनों से जिनरक्षित का मन पिघल गया। भयोत्पादक तर्जना से अभीत रहने वाला जिनरक्षित कामाशंसा से विचलित हो गया । इसलिए उसे अकालमृत्यु से मरना पड़ा।
आमुख
जिनपालित अपने संकल्प पर दृढ़ रहा । उसके वज्र सदृश संकल्प को रत्नद्वीपदेवी के कामबाण भी बींध नहीं सके। वह सकुशल अपने घर लौट आया।
इस दृष्टान्त के द्वारा संबोध दिया गया है कि मुनि के जीवन में अनुकूल व प्रतिकूल दोनों प्रकार के उपसर्ग आते हैं । प्रतिकूल उपसर्गों की अपेक्षा अनुकूल उपसर्गों को सहन करना अधिक कठिन होता है। जो मुनि दीक्षित होकर अनुकूल उपसर्गों पर विजय पा लेते हैं, लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं। अनुकूल उपसर्गों पर विजय न पाने वाले विचलित हो जाते हैं ।
जिनरक्षित ने रत्नद्वीपदेवी का करुण विलाप सुना। उसके मन में उसके प्रति करुणा का भाव उदित हुआ । यहां उल्लेखनीय है कि जिनरक्षित की वह करुणा किसी धार्मिक प्रेरणा से उद्भूत नहीं थी । वह वस्तुतः मोहावेशजन्य थी । अतः धार्मिक दृष्टि से उसे उपादेय नहीं कहा जा सकता ।
प्राचीन काल में समुद्र यात्राओं का बहुत प्रचलन था । लोग अर्थार्जन के उद्देश्य से लम्बी-लम्बी समुद्रयात्राएं किया करते थे। प्रस्तुत अध्ययन में माकन्दिक पुत्रों की समुद्रयात्रा का सरस प्रतिपादन है। सूत्रकार ने समुद्रयात्रा के दौरान कालिक वात (तूफान ) से प्रकम्पित नौका के लिए अनेक सजीव व हृदयग्राही उपमाओं का प्रयोग किया है।
प्रस्तुत अध्ययन के अंत में निगमन-गाथाओं के द्वारा दृष्टान्त का सार तत्त्व निरूपित किया गया है । इस दृष्टि से निम्नोक्त तालिका द्रष्टव्य है-
रत्नद्वीपदेवी
लाभार्थी वणिक्
वधस्थान में अवस्थित पुरुष
भयभीत व्यापारी
शैलकयक्ष द्वारा व्यापारियों का निस्तार
समुद्र पार कर घर पहुंचना
जिनरक्षित
जिनपालित
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अविरति
सुखार्थी जीव
धर्मकी मुि
संसार के दुःखों से भीत प्राणी
जिनप्रज्ञप्त धर्म द्वारा प्राणियों का निस्तार
संसार समुद्र को पारकर निर्वाण को प्राप्त करना
चरित्रभ्रष्ट व्यक्ति ।
चरित्रसंपन्न मुनि ।
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