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________________ नायाधम्मकहाओ २२३ अष्टम अध्ययन : टिप्पण २२-२८ _ विब्बोक--दर्पवश प्रिय-वस्तुओं के प्रति होने वाला अनादर का शत्रुसेना के विनाश के कारण हत एवं मान-मर्दन के कारण मथित भाव। होता है। विलास का मतान्तर सम्मत वैकल्पिक अर्थ प्रस्तुत करते हुए जब सेना के प्रमुख सुभट योद्धा वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं या वृत्तिकार लिखते हैं--स्थान, आसन, गमन तथा हाथों, भोहों, आंखों और रणभूमि से भाग जाते हैं तब सेना के चिह्न स्वरूप ध्वज और पताकाएं नीचे अन्य प्रवृत्ति के माध्यम से जो श्लिष्ट भावों की अभिव्यक्ति होती है, वह गिर जाती हैं अथवा अपनी पराजय स्वीकार करने की सूचना देने के लिए सारा विलास' है। वे झुका दी जाती हैं। ध्वजा और पताका का अन्तर सूत्र-१२४ सेना की विभिन्न टुकड़ियों की अलग पहचान के लिए गरुड़ आदि २३. लज्जित, वीडित और अपमानित (लज्जिए-विलिए-वेडे) विविध चिह्नों से अंकित झंडे ध्वज कहलाते हैं। लज्जित, व्रीडित और वेड्ड--ये तीनों शब्द पर्यायवाची हैं, फिर भी हाथियों के ऊपर फहराने वाली पताकाएं होती हैं। लज्जा के उत्तरोत्तर प्रकर्ष के वाचक हैं। वेड देशी शब्द है। सूत्र-१४५ सूत्र-१६७ २४. उत्तर (पामोक्खं) २७. संचार रहित, उच्चार रहित (निस्संचारं निरुच्चार) प्रश्न का उत्तर, समाधान। उत्तराध्ययन में भी 'उत्तर' के नगर के मुख्य द्वार और पार्श्व द्वार से नागरिकों का गमनागमन अर्थ में 'पामोक्ख' शब्द का प्रयोग है। रोक देना निस्संचार है और नगर के प्राकार के ऊपर से गमनागमन को प्रमोक्ष शब्द का प्रयोग प्रधानत: दो अर्थों में होता है--१. मोक्ष' रोक देना निरुच्चार है।३० २. उत्तर (समाधान) सूत्र १८० सूत्र १४६ २८. आसक्त, अनुरक्त, गृद्ध, मुग्ध और अध्युपपन्न (सज्जह रज्जह २५. निंदा, कुत्सा और गर्दा की (निन्दति, खिसंति गरिहति) गिज्झह मुज्झह अज्झोववज्जह) मन से कुत्सा करना निंदा, आपस में एक दूसरे पर दोषारोपण सामान्यत: उक्त शब्द एकार्थक ही हैं, फिर भी इनमें अवस्थाकृत करना कुत्सा और सबंधित व्यक्ति के सामने ही उसका दोषोद्घाटन करना भेद है। गर्दा है। सज्ज--आसक्त होना, निशीथ चूर्णि के अनुसार निष्ठुर और स्नेह रहित वचन खिसा है।" रज्ज--अनुरक्त होना, गृद्ध--प्राप्त भोगों में अतृप्त रहना, सूत्र-१६५ मुग्ध--भोगों में दोष जानते हुए भी उनमें मूढ रहना। २६. प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त हय-महिय-पवरवीर-धाइय-विवडियचिंध अध्युपपन्न--अप्राप्त भोगों की प्राप्ति के लिए एकाग्रचित्त धम-पडागं-वाक्य शत्रु सेना को पछाड़ देने के अर्थ में एक मुहावरा-सा रहना । प्रयुक्त हुआ है। निशीथ चूर्णिकार ने भी इन शब्दों को एकार्थक माना है, फिर १. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१५०--विब्बोकलक्षणं चेदम्-- ८. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१५५--हयमहियपवरवीर-घाइय-विवडिय-चिंधद्धयइष्टानामर्थानां प्राप्तावभिमानगर्भ-सम्भूतः । पड़ागे-त्ति-हत:--सैन्यस्य हतत्वात्, मथितो-मानस्य निर्मथनात्, स्त्रीणामनादरकृतो विब्बोको नाम विज्ञेयः ।। प्रवरवीरा-भटा घातिता--विनाशिता यस्स स तथा। २. वही-अन्यत्वेवं विलासमाहुः-- ९. वही--चिह्रध्वजा:-चिह्नभूतगरुङ-सिंहधरा वलकध्वजादय: पताकाश्च स्थानासनगमनानां हस्तभूनेत्रकर्मणां चैव। हस्तिनामुपरिवर्तिन्यः। उत्पद्यते विशेषो य: श्लिष्टोऽसौ विलास: स्यात् ।। १०. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१५६--'निस्संचार' ति-द्वारापद्वारैः जनप्रवेशनिमिवर्जितं ३. वही--लज्जितो वीडितो व्यईः इत्येते त्रयोऽपि पर्यायशब्दा: लज्जाप्रकर्षाभि- यथा भवति, 'निरुच्चारं'-प्राकारस्योर्ध्व जनप्रवेशनिर्गमवर्जितं यथा भवति धानायोक्ताः। अथवा उच्चार:-पुरीष तद्विसर्गार्थं यज्जनानां बहिनिर्गमनं तदपि स ४. आयारो ५/३६--बन्धपमोक्खो तुज्झ अज्झत्थेव। एवेति तेन वर्जितम्। ५. उत्तरज्झयाणाणि २५/१३ तस्सऽक्खेवपमोक्खं । ११. वही--सज्जत-संगं कुरुत, रज्यत--रागं कुरुत, गिज्झह-गृध्यत गृद्धि ६. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१५५--निन्दन्ति-मनसा कुत्सन्ति, खिंसति-परस्परस्याग्रत: प्राप्तभोगेष्वतृप्तिलक्षणां कुरुत, मुज्झह-मुह्यत मोहं तद्दोषदर्शन मूढत्वं तद्दोषकीतनन, गर्हन्ते-तत्समक्षमेव। कुरुत अज्झोववज्जह-अध्युपद्धं तदप्राप्तप्रापणायाध्युपपत्ति- तदेकाग्रता७. निशीथ भाष्य-भाग ३, पृ. ६--निठुरं णिण्हेहवयणं खिंसा। लक्षणां कुरुत। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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