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________________ २२१ अष्टम अध्ययन : टिप्पण ७-१५ नायाधम्मकहाओ ७. अवक्रान्ति (वक्कंतीए) प्रस्तुत सूत्र में अवक्रान्ति के तीन प्रकारों का निरूपण है१. आहार अवक्रान्ति--मनुष्य भवयोग्य आहर का ग्रहण । २. भव अवक्रान्ति--मनुष्य भवयोग्य गति का संग्रहण । ३. शरीर अवक्रान्ति--मनुष्य के योग्य औदारिक शरीर का ग्रहण। वृत्तिकार ने--'वक्कंतीए' का संस्कृत रूपान्तर अपक्रान्ति मानकर उसका अर्थ परित्याग किया है। वैकल्पिक अर्थ में व्युत्क्रान्ति शब्द मानकर उसकी व्याख्या उत्पत्ति के रूप में भी की है। वक्कंती का संस्कृत रूप अवक्रान्ति होना चाहिए। अशुचि--अस्पृश्य होने के कारण अपवित्र । विलीन--जुगुप्सा-उत्पादक। विकृत--विकारयुक्त। बीभत्स--जिसे देखते ही मन में ग्लानि पैदा हो।' सूत्र-५९ १२. जन्म दिवस के दिन (संवच्छरपडिलेहणगंसि) जन्म दिन से लेकर पूरे वर्ष की प्रतिलेखना की जाए, उसे संवत्सर प्रतिलेखन दिन कहा जाता है। अर्थात् जिस दिन अमुक व्यक्ति की आयु का अमुक संख्या वाला (जैसे सातवां, आठवां) संवत्सर पूरा हो गया है--ऐसा निरूपण कर महोत्सवपूर्वक संवत्सर की प्रत्युपेक्षा की जाती है, उस दिन को संवत्सर प्रतिलेखन दिन कहा जाता है। वर्ष की संख्या का ज्ञान स्मरण में रहे, इसलिए प्रतिवर्ष एक गांठ बांध दी जाती थी। इसीलिए जन्मदिन के अर्थ में वर्षगांठ शब्द रूढ हो गया। सूत्र-३० ८. पुष्प समूह से (मल्लेणं) ___ माल्य का अर्थ कुसुमसमूह है। जातिवाचक होने से एक वचन का प्रयोग है। जिससे माला बने, जो माला के काम आए, वह माल्य सूत्र-६२ १३. श्रीदामकाण्ड माला पर प्रमुदित होकर (सिरिदामगंडजणियहासे) हास का संस्कृत रूप हर्ष बनता है। वृत्तिकार के अनुसार हर्ष के ९. श्री दामकाण्ड नाम की माला को (सिरिदामगंड) सिरिदामगंड के संस्कृत रूप दो बनते हैं--श्रीदामकाण्ड और श्रीदामगण्ड। श्रीदामकाण्ड का अर्थ है--विशिष्ट शोभा सम्पन्न मालाओं का समूह । श्रीदामगण्ड का अर्थ है--विशिष्ट शोभा सम्पन्न मालाओं से निर्मित एक दण्ड। यह एक विशिष्ट प्रकार की माला होती है जो अनेक सुन्दर मालाओं को मिलाकर बनाई जाती है। प्रस्तुत सन्दर्भ में प्रमोद अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है।" सूत्र-६४ १४. सांयांत्रिक पोतवणिक (संजत्ता-नावावाणियगा) सांयात्रिक का अर्थ है--मिलजल कर-समह के साथ यात्रा-देशान्तर गमन करने वाले। पोतवणिक् का अर्थ है--जहाजों द्वारा समुद्र पार जाकर व्यापार करने वाले--समुद्री यात्री।' सूत्र-४२ १०. विनष्ट ( विट्ठ) प्रस्तुत प्रसंग में विनष्ट का अर्थ पूर्ण नष्ट हो जाना नहीं है किन्तु विकृत हो जाने के कारण उसके मूल रूप का बदल जाना है।' ११. अशुचि.......बीभत्स (असुइ......बीभत्स) अशुचि, विलीन, विकृत और बीभत्स ये चारों ही शब्द निर्दिष्ट वस्तु नापट वस्तु के प्रति घृणा प्रदर्शित करने वाले हैं। फिर भी इनमें अवस्थाकृत भेद है-- १. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१३२--आहारापक्रान्त्या--देवाहारपरित्यागेन, भवापकान्त्या-- देवगतित्यागेन, शरीरापक्रान्त्या--वैक्रियशरीरत्यागेन; अथवाआहारव्युत्क्रान्त्या--अपूर्वाहारोत्पादेन मनुष्योचिताहारग्रहणेणेत्यर्थः, एवमन्यदपि पदद्वयमिति, गर्भतया व्युत्क्रान्त:--उत्पन्नः। २. वही--मालाभ्यो हितं माल्य-कुसुमं जातावेकवचनम्। ३. वही--श्रीदाम्नां-शोभावन्मालानां काण्डं समूह: श्रीदामकण्डम्, अथवा ___गण्डो-दण्डः ......... । श्रीदाम्नां गण्ड: श्रीदामगण्डः । ४. वही, पत्र-१३६--विनष्टं-उच्छूनत्वादिभिर्विकारैः स्वरूपादपेतम्। ५. वही--अशुचि--अपवित्रमस्पृश्यत्वात्, विलीनं-जुगुप्सासमुत्पादकत्वात्, विकृतं- विकारत्वात्, बीभत्सं-द्रष्टुमयोग्यत्वात् । सूत्र-६८ १५. पुष्य नक्षत्र (पूसो) पुष्य नक्षत्र को यात्रा में सिद्धिदायक माना जाता है। वैसे बारहवां चन्द्र घातक-विनाशक माना जाता है, किन्तु बारहवें चन्द्र के साथ यदि पुष्य नक्षत्र का योग हो तो वह सर्वार्थसाधक होता है। ६. वही, पत्र-१३८-संवच्छरपडिलेणगंसि त्ति--जन्मदिनादारभ्य संवत्सरः प्रत्युपेक्ष्यते-एतावतिथ: संवत्सरोद्य पूर्ण इत्येवं निरूप्यते महोत्सवपूर्वक यत्र दिने तत् संवत्सर-प्रत्युपेक्षणक, यत्र वर्ष वर्ष प्रति संख्याज्ञानार्थ ग्रन्थिबन्धः क्रियते, यदिदानीं वर्षग्रन्थिरिति रूढम्। ७. वही--सिरिदामगंड-जणियहासेत्ति--श्रीदामकाण्डेन जनितो-हर्ष:- प्रमोदोऽनुरागो यस्य स। ८. वही, पत्र-१४२--संजत्ता णावावाणियगा-संगता यात्रा-देशान्तरगमनं संयात्रा, तत्प्रधाना नौवाणिजका:-पोतवणिज: संयात्रानौवाणिजकाः। ९. वही, पत्र-१४३--पुष्यो नक्षत्रविशेष: चन्द्रमसा इहावसरे इति गम्यते, पुष्यनक्षत्रं हि यात्रायां सिद्धिकरं यदाह--अपि द्वादशमे चन्द्रे पुष्य:सर्वार्थसाधनः । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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