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नायाधम्मकहाओ
जियसत्तु - राय-पदं
१३८. तेण कालेन तेणं समएणं पंचाले जणवए। कंपिल्लपुरे नपरे । जियसत्तू नामं राया पंचालाहिवई । तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे होत्या ॥
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१३९. तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा नामं परिव्वाइया-रिउव्वेययज्जुब्वेद सामवेद - अहब्वणवेद- इतिहासपंचमाणं निघंटुछद्वाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउन्हं वेदाणं सारगा जाव बंभण्णए व सत्येसु सुपरिणिट्ठिया यावि होत्या ।।
१४०. तए णं सा बोक्सा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव सत्यवाहपभिईण पुरओ दाणधम्मं च सोपधम्मं च तित्याभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदसेमाणी विहर।।
' १४१. तए णं सा चोक्खा अण्णया कयाइं तिदंडं च कुंडियं च जाव घाउरताओयु म्ह, हित्ता परिव्वाद्गाक्सहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पविरल-परिव्वाइया - सद्धिं संपरिवुडा मिहिलं रायहाणिं मज्झमज्झेणं जेणेव कुभगस्स रण्णो भवणे जेणेव कन्नतेउरे जेणेव मल्ली विदेहरायवरकन्ना तेणेव उवागच्छछ, उवागच्छित्ता उदयपरिकोसियाए दम्भोवरिपच्चत्पुयाए भिसियाए निसीय, निसीइता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरओ दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्याभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी पदेमाणी उपदमाणी विहरह ।।
१४२. तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्तं परिव्वाइयं एवं वयासी -- तुब्भण्णं चोक्खे! किंमूलए धम्मे पण्णत्ते ?
१४३. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लिं विदेहरायवरकन्नं एवं क्यासी- अहं णं देवापिए सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते । जं
अहं किंचि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए य सुई भवद । एवं खतु अम्हे जलाभिसेय पूयष्याणो अविग्घेण सम्म मच्छामो ।।
१४४. तए गं मल्ली विदेहरायवरकन्ना पोक्खं परिव्वाइयं एवं क्यासी-चोक्खे! से जहानामए केंद्र पुरिसे रुहिरकयं वत्यं रुहिरेणं चैव धोवेज्जा, अस्थि णं चोक्खे! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेण धोव्वमाणस्स काइ सोही ?
नो इट्टे समट्टे ।
एवामेव चोक्खे! तुब्भण्णं पाणाइवाएणं जाव मिच्छादंसण
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अष्टम अध्ययन : सूत्र १३८-१४४
जितशत्रुराज पद
१३८. उस काल और उस समय पाञ्चाल जनपद । काम्पिल्यपुर नगर । पाञ्चाल का अधिपति जितशत्रु नाम का राजा था उस जितशत्रु राजा के अन्तःपुर में धारिणी प्रमुख हजार देवियां थी।
१३९. उस मिथिला में चोक्षा नाम की परिव्राजिका थी। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद-ये चार वेद, पांचवां इतिहास और छठा निघण्टु इनकी सांगोपांग रहस्य सहित सारक (प्रवर्तक) यावत् ब्राह्मण नय संबंधी ग्रन्थों में निष्णात थी ।
१४०. वह चोक्षा परिव्राजिका मिथिला में बहुत से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के सामने दान धर्म, शौच धर्म और तीर्थाभिषेक का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण और उपदर्शन करती हुई विहार करती थी ।
१४१. किसी समय चोक्षा परिव्राजिका ने त्रिदण्ड, कुण्डिका आदि उपकरण लिए यावत् गेरुए वस्त्रों को धारण किया। धारण कर परिव्राजिकामठ से निष्क्रमण किया। वहां से निष्क्रमण कर कुछ परिव्राजिकाओं के साथ, उनसे परिवृत हो, वह मिथिला राजधानी के बीचोंबीच होती हुई जहां राजा कुम्भ का भवन था, जहां कन्याओं का अन्तःपुर था, जहां विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली थी, वहां आयी। वहां आकर वह जल-सिक्त डाभ पर बिछी वृषिका पर बैठ गई। बैठकर विदेश की प्रवर राजकन्या मल्ली के सामने दान धर्म, शौच धर्म और तीर्थाभिषेक का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण और उपदर्शन करती हुई विहार करने लगी।
१४२. विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली ने परिव्राजिका चौक्षा से इस प्रकार कहा- पोक्षे! तुम्हारे धर्म का मूल क्या है?
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१४३. चोक्षा परिव्राजिका ने विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली से इस प्रकार कहादेवानुप्रिय! हमारे शौचमूलक धर्म प्रज्ञप्त है हमारी जो कोई वस्तु अशुचि होती है, वह उदक और मिट्टी से शुचि हो जाती है। इस प्रकार हम जलाभिषेक से पवित्र आत्मा बन निर्विघ्न स्वर्ग जाते हैं।
१४४ विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली ने परिव्राजिका चोक्षा से इस प्रकार कहा -- चोक्षे! जैसे कोई पुरुष खून से सने वस्त्र को खून से ही धोए तो बोले! उस खून से सने और खून से ही धुले वस्त्र की कोई शुद्धि होती है?
यह अर्थ समर्थ नहीं है।
इस प्रकार चोक्षे! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से
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