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________________ १९६ अष्टम अध्ययन : सूत्र ९०-९६ रुप्पि-राय-पदं ९०. तेणं कालेणं तेणं समएण कुणाला नाम जणवए होत्था। तत्थ णं सावत्थी नाम नयरी होत्था। तत्थ णं रुप्पी कुणालाहिवई नाम राया होत्था। तस्स णं रुप्पिस्स धूया धारिणीए देवीए अत्तया सुबाहू नाम दारिया होत्था-सुकुमाल-पाणिपाया रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था। नायाधम्मकहाओ रुक्मि-राज-पद ९०. उस काल और उस समय कुणाला नाम का जनपद था। वहां श्रावस्ती नाम की नगरी थी। वहां कुणाला का अधिपति रुक्मी नाम का राजा था। उस रुक्मी राजा की पुत्री धारिणी देवी की आत्मजा सुबाहु नाम की बालिका थी। उसके हाथ, पांव सुकुमार थे। वह रूप, यौवन और लावण्य से उत्कृष्ट एवं उत्कृष्ट शरीर वाली थी। ९१. तीसे णं सुबाहूए दारियाए अण्णया चाउम्मासिय-मज्जणए ९१. किसी समय उस सुबाहु बालिका का चातुर्मासिक-मज्जन (महोत्सव) जाए यावि होत्था॥ उपस्थित हुआ। ९२. तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहूए दारियाए चाउम्मासिय- ९२. उस कुणाला के अधिपति रुक्मी ने सुबाहु बालिका का चातुर्मासिक-मज्जन मज्जणयं उवट्ठियं जाणइ, जाणित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दाक्ता (महोत्सव) उपस्थित हुआ जाना। जानकर उसने कौटुम्बिक पुरुषों एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! सुबाहूए दारियाए कल्लं को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! कल सुबाहु चाउम्मासिय-मज्जणए भविस्सइ, तं तुन्भेणं रायमग्गमोगादसि बालिका का चातुर्मासिक-मज्जन होगा। अत: तुम राजमार्ग के समीपवर्ती चउक्कसि जल-थलय-दसद्धवण्णं मल्लं साहरह जाव एणं महं चौक में जल और स्थल में खिलने वाला पंचरंगा पुष्प-समूह लाओ सिरिदामगंडं गंधद्धणिं मुयंतं उल्लोयंसि ओलएह । ते वि तहेव यावत् घ्राण को तृप्ति देने वाले गन्धमय परमाणुओं को बिखेरती एक ओलयंति।। महान श्रीदामकाण्ड माला चन्दोवे के नीचे लटकाओ। उन्होंने भी वैसे ही लटकाया। ९३. तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुवण्णगार-सेणिं सद्दावेइ, सद्दाक्ता एवं वयासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायमग्गमोगाढंसि पुप्फमंडवंसि नाणाविहपंचवण्णेहिं तंदुलेहिं नगरं आलिहह, तस्स बहुमझदेसभाए पट्टयं रएह, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव पच्चप्पिणति॥ ९३. उस कुणाला के अधिपति रुक्मी ने स्वर्णकार-श्रेणि को बुलाया। उसे बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! शीघ्र ही राजमार्ग के समीपवर्ती पुष्प-मंडप में नाना प्रकार के पंचवर्ण तन्डुलों से नगर का आलेखन करो। उसके बीचोंबीच एक पट्ट की रचना करो। इस आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो। उन्होंने भी वैसे ही प्रत्यर्पित किया। ९४. तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई हत्थिखंधवरगए चाउरंगिणीए सेणाए महया भड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते अंतेउरपरियाल-संपरिवुडे सुबाहुं दारियं पुरओ कटु जेणेव रायमग्गे जेणेव पुप्फमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्यि-खंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता पुष्फमंडवे अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे।। ९४. वह कुणाला का अधिपति रुक्मी प्रवर हस्तिस्कन्ध पर आरूढ़ हो, चतुरंगिणी सेना, महान सुभटों की विभिन्न टुकड़ियों और मार्ग बताने वाले राजपुरुषों से परिक्षिप्त और अन्त:पुर परिवार से संपरिवृत हो, सुबाहु बालिका को आगे कर, जहां राजमार्ग था, जहां पुष्पमंडप था, वहां आया। वहां आकर हस्तिस्कन्ध से उतरा। उतरकर पुष्प-मंडप में प्रविष्ट हुआ। प्रविष्ट होकर पूर्वाभिमुख हो प्रवर-सिंहासन पर आसीन हो गया। ९५. तए णं ताओ अंतेउरियाओ सुबाहुं दारियं पट्टयंसि दुरुहेंति, ९५. उन अन्त:पुर की महिलाओं ने सुबाहु बालिका को पट्ट पर बिठाया। दुरुहेत्ता सेयापीयएहिं कलसेहिंण्हाणेति, ण्हाणेत्ता सव्वालंकारविभूसियं बिठाकर उसे चांदी-सोने के कलशों से नहलाया। नहलाकर सब करेंति, करेत्ता पिउणो पायवंदियं उवणेति ।। प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया। विभूषित कर पाद-वंदन (प्रणाम) के लिए पिता के पास ले गईं। ९६. तए णं सुबाहू दारिया जेणेव रुप्पी राया तेणेव उवागच्छइ, ९६. वह सुबाहु बालिका जहां राजा रुक्मी था, वहां आई। वहां आकर उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ।। उसने पिता के चरण-ग्रहण किए। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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