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________________ १९४ अष्टम अध्ययन : सूत्र ७९-८४ दलइत्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए। नायाधम्मकहाओ - सकते हो देवानुप्रिय! मैं पुन: ऐसा नहीं करूंगा--ऐसा कहकर वह प्राञ्जलिपुट हो अर्हन्नक के चरणों में गिर पड़ा और विनयपूर्वक इस अपराध के लिए पुन: पुन: खमाने लगा। अर्हन्नक को दो कुण्डल-युगल दिए। देकर वह जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया। ८०. तए णं से अरहण्णए निरुवसग्गमिति कटु पडिम पारेइ॥ ८०. उपसर्ग निवृत्त हो चुका है'--यह जानकर अर्हन्नक ने प्रतिमा को पूरा किया। ८१. तए णं ते अरहण्णगपामोक्खा संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पोयं लबेंति, लंबेत्ता सगडि-सागडं सज्जेंति, तं गणिमं धरिमं मेज्जं परिच्छेज्जं च सगडि-सागडं संकामेंति, संकामेत्ता सगडि-सागडं जोविंति, जोवित्ता जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडि-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजुयलं च गेण्हंति, गेण्हित्ता (मिहिलाए रायहाणीए?) अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजुयलं च उवणेति।। ८१. वे अर्हन्नक प्रमुख सांयात्रिक पोतवणिक् दक्षिणानुकूल पवन के साथ जहां 'गंभीरक' बन्दरगाह था वहां आए। वहां आकर जहाज की लंगर डाली। लंगर डालकर छोटे-बड़े वाहन तैयार किए। उनमें गणनीय, धरणीय, मेय और परिच्छेद्य रूप क्रयाणक संक्रमित किए। संक्रमित कर उन छोटे-बड़े वाहनों को जोता। जोतकर जहां मिथिला थी वहां आए। वहां आकर मिथिला की राजधानी के बाहर प्रधान उद्यान में छोटे-बड़े वाहन खोले। खोलकर महान अर्थ, महामूल्य और महान अर्हता वाला राजाओं के योग्य विपुल उपहार और दिव्य कुण्डल-युगल लिए। लेकर (मिथिला राजधानी में?) प्रवेश किया। प्रवेश कर जहां कुम्भराजा था, वहां आए। वहां आकर दोनों हथेलियों से निष्पन्न सम्पुट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर महान अर्थवान, महामूल्य और महान अर्हतावाला राजाओं के योग्य विपुल उपहार और दिव्य कुण्डल-युगल राजा को उपहृत किया। ८२. तए णं कुंभए राया तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलंरायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजयलंच पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मल्लि विदेहवररायकन्नं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं मल्लीए विदेहरायकन्नगाए पिणद्धेइ, पिणद्धत्ता पडिविसज्जेइ।। ८२. राजा कुम्भ ने उन सांयात्रिक पोतवणिकों का वह महान अर्थवान महामूल्य और महान अर्हता वाला राजाओं के योग्य विपुल उपहार और वह दिव्य कुण्डल-युगल स्वीकार किया। स्वीकार कर विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली को बुलाया। बुलाकर दिव्य कुण्डल-युगल विदेह की प्रवर राजकन्या मल्ली को पहनाया। पहनाकर उसे प्रतिविसर्जित किया। ८३. तए णं से कुंभए राया ते अरहण्णगपामोक्खे संजत्ता-नावा- वाणियगे विपुलेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता रायमग्गमोगाढे य आवासे वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ।। ८३. उस राजा कुम्भ ने अर्हन्नक प्रमुख सांयात्रिक पोतवणिकों को विपुल वस्त्र, गन्धचूर्ण, माला और अलंकारों से सत्कृत किया। सम्मानित किया। सत्कृत सम्मानित कर उन्हें कर-मुक्त किया। उनको राजमार्ग के समीपवर्ती आवास-स्थान देने की आज्ञा दी और उन्हें प्रतिविसर्जित किया। ८४. तए णं अरहण्णगपामोक्खा संजत्ता-नावावाणियगा जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छंत, उवागच्छित्ता भंडववहरणं करेंति, पडिभडे गेहंति, गेण्हित्ता सगडी-सागडं भरेंति, भरेत्ता जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागति , उवागच्छित्ता पोयवहणं सज्जेंति, सज्जेत्ता भंडं संकामेंति, संकामेत्ता दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव चंपाए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ८४. अर्हन्नक प्रमुख सांयात्रिक पोत-वणिक जहां राजमार्ग के समीपवर्ती आवास थे, वहां आये। वहां आकर वे क्रयाणक का व्यापार करने लगे। दूसरा माल खरीदा। खरीदकर उसे छोटे बड़े वाहनों में भरा। भरकर जहां गम्भीरक' बन्दरगाह था, वहां आये, वहां आकर जहाज को तैयार किया। तैयार कर क्रयाणिक को उसमें संक्रमित किया। संक्रमित दक्षिणानुकूल पवन के साथ जहां चम्पा का बन्दरगाह था, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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