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आमुख
जयन्ती ने भगवान महावीर से पूछा- भते! जीव भारी कैसे होता है? भगवान ने कहा जयन्ती ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य रूप उद्धारह पापस्थानों के सेवन से जीव भारी होता है प्राणातिपात आदि के विरमण से जीव हल्का होता है।
भार व्यक्ति को नीचे ले जाता है। जो हल्का होता है, वह ऊपर आ जाता है। आचार्य भिक्षु ने इसी तथ्य को उदाहरण से समझाते हुए कहा -- ढब्बुशाही पैसा' पानी में डालो, वह डूब जाएगा । उस पैसे की कटोरी बनाओ, वह तर जाएगी। पैसे को कटोरी का नया आयाम मिला, वह तर गया। चित्त जैसे-जैसे भारी होता है, अधोगामी हो जाता है । चित्त को नया आयाम देकर उसे हल्का बना दें। वह ऊपर आ जाएगा। हल्कापन अधोगामी चित्त को ऊर्ध्वगामी बना देता है।
प्रस्तुत अध्ययन 'तुम्ब' का प्रतिपाद्य भी यही है । सूत्रकार ने उदाहरण की भाषा में कहा--तुम्बा हल्का होता है । कोई व्यक्ति यदि उस तुम्बे को डाभ और कुश से आवेष्टित कर उस पर मिट्टी का लेप लगाए और उसे धूप में सुखाए तो वह कुछ भारी हो जाएगा। पानी में डालते ही डूब जाएगा ।
जल में प्रक्षिप्त तुम्बा जब आर्द्रता को प्राप्त करता है, मिट्टी के लेप उतरने लगते हैं। क्रमशः आठों लेपों के आर्द्र, कुधित और परिशटित हो जाने पर वह पूर्णतया हल्का होकर पुन: पानी की सतह पर आ जाता है । जीव अट्ठारह पापों से विरत होकर क्रमशः आठों कर्मप्रकृतियों को क्षीण कर देता है एक क्षण आता है वह पूर्णतया कर्ममुक्त होकर लोक के अग्रभाग पर प्रतिष्ठित हो जाता है।
प्रस्तुत विवेचन का निष्कर्ष यही है हल्के बनो। ऊर्ध्वारोहण की बहुत बड़ी बाधा है कर्मों का भारीपन भोगासक्ति व्यक्ति भारी बनाती है । भोगासक्त व्यक्ति संसार में परिभ्रमण करता है । जो भोग से त्याग की ओर प्रस्थान कर देता है, वह हल्का होकर ऊर्ध्वारोहण कर लेता है। भोगासक्ति से ऊपर उठना ही अध्यात्म का प्रशस्त मार्ग है।
१. ढब्बुशाही पैसा -- अस्सी तोलों का एक सेर। एक सेर के बीस ढब्बुशाही पैसे होते हैं। एक पैसा लगभग ५० ग्राम का समझना चाहिए।
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