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________________ सूत्र ६ १. करणीय कार्यों को (किच्चाई करणिज्जाई) कृत्य और करणीय इनकी व्याख्या वृत्तिकार ने दो प्रकार से की है-९. विशेषण - विशेष्य के रूप में इनका अर्थ होता है--कृत्यकरणीय कर्त्तव्य प्रयोजन । २. दोनों पदों को स्वतन्त्र मानकर कृत्य और करणीय का किया गया है वहां कृत्य का अर्थ है --नित्य सम्पादित किए जाने वाले कार्य और करणीय का अर्थ है-कदाचित् सम्पादित किए जाने वाले कार्य।" टिप्पण सूत्र ७ २. प्रतिज्ञा ( संगारं) संगार यह देशी शब्द है। इसका अर्थ होता है--संकेत। संस्कृत शब्दकोश में 'संगर' शब्द प्रतिज्ञा के अर्थ में है। प्रस्तुत प्रकरण में यही अर्थ संगत है। सूत्र ८ ३. पौसठ कलाओं में (चउसद्विकला ) चौसठ कला-स्त्रियों के लिए उपयोगी गीत, नृत्य आदि विद्या शाखाएं। वात्स्यायन सूत्र में इनका विस्तार से उल्लेख है। ऐसा वृत्तिकार ने भी निर्देश दिया है। ४. कर्णीरथ - वाहन विशेष (कण्णीरह) कर्णीरथ के दो अर्थ है- १. वह रथ जिसे कहार कंधे पर ढोवें। २. स्त्रियों के चढ़ने के लिए पर्दा लगा हुआ रथ । " कर्णीरथ किन्ही वैभवशाली व्यक्तियों के पास ही हुआ करता था । उस समय नगर वधुओं को भी राजकीय सम्मान प्राप्त होता था और कर्णीरथ उन्हें राजाओं द्वारा अनुज्ञात होते थे । १. ज्ञातावृति पत्र- ९७ किच्चाई करणीपाई ति कर्तव्यानि पनि प्रयोजनानीत्यर्थः अथवा कृत्यानि -- नैत्यिकानि करणीयानि -- कादाचित्कानि । २. वही, पत्र - ९८ - संगार' त्ति--संकेतं । -- ३. अभिधान चिन्तामणि २ / १९२ ४. ज्ञातावृत्ति, पत्र- ९९-चतुः षष्टिकत्ता गीतनृत्यादिकाः स्त्रीजनोचिता वात्स्यायनाप्रसिद्धाः । ५. अभिधान चिन्तामणि ३ / ४१७ ६. जावृत्ति, पत्र- ९९ कर्णीरथो हि ऋद्धिमतां केषाधिदेव भवतीति सोपि तस्या अस्तीत्यतिशयप्रतिपादनार्थोऽपि शब्दः । Jain Education International ७. वही लघुकरणं गमनादिकाशीप्रक्रिया दक्षत्वमित्यर्थः तेन युक्ता ये -- सूत्र १० ५. शीघ्र गतिक्रिया की दक्षता से युक्त (लहुकरणजुत्तजोइयं ) लघुकरण का अर्थ है शीघ्रता से संपादित की जाने वाली गमन आदि क्रिया । दक्षता से युक्त पुरुषों द्वारा जोते गये रथ को लघुकरण युक्त योजित कहा गया है। सूत्र २१ ६. प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त संकिए, कंखिए, वितिगिच्छे, भेद समापन्ने, कलुससमापन्ने -- ये पांच शब्द संदिग्ध चेतना की अभिव्यक्ति देने वाले हैं। शक्ति--यह कार्य होगा या नहीं इस प्रकार के विकल्पों से युक्त चेतना वाला। कांक्षित - विवक्षित फल कब मिलेगा - इस प्रकार की आकांक्षा उत्सुक्ता युक्त चेतनावाला। विचिकित्सत अमुक निष्पत्ति का उपयोग मैं कर सकूंगा अथवा नहीं - इस प्रकार की शंकित चेतना वाला। भेद समापन्न--भेद समापन्न का अर्थ है दुविधापूर्ण मनः स्थिति वाला । उसका चित्त वस्तु के सद्भाव अथवा असद्भाव विषयक विकल्पों से व्याकुलित रहता है। कलुषसमापन्नमति की मलिनता को प्राप्त।" सूत्र २२ ७. सारहीन (पोच्चडे) यह देशी शब्द है। इसका अर्थ है सारहीन हो जाना। राजस्थानी भाषा में सड़े-गले के अर्थ में प्रयुक्त होने वाला 'पोचा' या 'पोच जाना' इसी 'पोच्चड' शब्द का प्रतिनिधित्व करता है । सूत्र २४ ८. पांच महाव्रतों व षड्जीवनिकायों में (पंचमहव्वएसु छज्जीवनिकाएसु) भगवान महावीर ने मुनि के लिए जो आचार संहिता निर्धारित की पुरुषास्तैर्वोजित-यन्त्रपूपादिभिः सम्बन्धितं तत्तथा। ८. वही, पत्र- १०२ शकिमिदं निष्पत्स्यते न वेत्येवं विकल्पवान्। कङ्क्षितः तत्फलाकाङ्क्षायान् कदा निष्पत्स्यते इतो विवक्षितं फलमित्यौत्सुक्य वानित्यर्थः । विचिकित्सितः जातेऽपीतो मयूरपोतेऽतः किं मम कीड़ालक्षणं फलं भविष्यति न वेत्येवं फलं प्रति शङ्कावान् । भेदसमापन्नोमते-द्वेधा-भावं प्राप्तः, सद्भावासद्भाव-विषयविकल्प व्याकुलित इति भावः कलुष समापन्नो मतिमालिन्यमुपगतः । ९. वही--पोच्चडं त्ति असारं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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