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________________ तृतीय अध्ययन सूत्र ९-१४ पाण- खाइम - साइमं धूव- पुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारं गहाय जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छह, उवागच्छिता नंदाए पोक्खरिणीए अदूरसामंते थूणामंडवं आहणह - - आसियसम्मज्जिजवलित्तं पंचवण्णसरससुरभि - मुक्क- पुप्फपुंजोवया रकलियं कालागरुपवरवुदुरुक्कतुरुक्क धूव-हज्यंत सुरभि मघमषेंत गंधुदुषाभिरामं सुगंधवरगंधगंधिव गंधवह्निभूयं करेह, करेता अम्हे पडिवालेमाणापडिवालेमाणा चिट्ठह जाव चिह्नति ।। - - १०. तए णं ते सत्थवाहदारगा दोच्चपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेंति, सदावेता एवं क्यासी खिष्यामेव (भो देवाणुपिया?) लहुकरणजुत्त- जोइयं समखुरवालिहाण - समलिहिय-तिक्खग्गसिंगए हिं रययामय- घंट- सुत्तरज्जु-पवरकंचण खचिय-नत्यपग्गहोग्गाहियएहिं नीलुप्पलकयामेतएहिं पवर-गोण जुवाणएहिं नाना- मणि- रयणकंचन घटियाजालपरिक्खित्तं पवरलक्लणोववेयं जुत्तामेव पवहणं उवणेह । ते वि तहेव उवणेंति ।। ११. तए णं ते सत्थवाहदारगा व्हाया कयबलिकम्मा कय- कोउयमंगल - पायच्छित्ता अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा पवहणं दुरुहंति, दुरुहित्ता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोव्हंति, पच्चरहिता देवदत्ताए गणियाए हिं अणुष्पविसंति ।। १२. तए णं सा देवदत्ता गणिया ते सत्यवाहदारए एज्जमाणे पासइ, पाखित्ता हट्टा आसणाओ अन्मुद्वेद, अन्मुद्वेता सत्तद्वपयाई अणुगच्छ, अणुगच्छिता ते सत्यवाहदारए एवं क्यासी संदिसंतु देवाप्पिया! किमिहागमणप्पओयणं ? १३. तए णं ते सत्यवाहदारगा देवदत्तं गणियं एवं क्यासी - इच्छामो देवाप्पिए! तुमे सद्धिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरिं पच्चणुभवमाणा विहिरित्तए । Jain Education International ११४ १४. तए णं सा देवदत्ता तेसिं सत्यवाहदारगाणं एयम परिसुनेछ, पडणेत्ता व्हाया कयबलिकम्मा जाव सिरी- समाणवेसा जेणेव सत्यवाहदारगा तेणेव उवागया ।। नायाधम्मकहाओ , देवानुप्रियो ! तुम विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करो । तैयार कर वह विपुल, अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तथा भूप, पुष्म, गन्धचूर्ण, वस्त्र, माल्य और अलंकार लेकर जहां सुभूमिभाग उद्यान है, जहां नन्दा पुष्पकरिणी है, वहां जाओ। वहां जाकर नन्दा पुष्पकरिणी के न दूर, न निकट एक स्थूणा मण्डप बनाओ। उसे जल का छिड़काव कर, बुहार- झाड़, गोबर से लीप, पंचरंगे सरस सुरभिमय पुष्प पुंज के उपचार से कलित, काली अगर, प्रवर कुंदुरु और लोबान की जलती हुई धूप की सुरभिमय महक से उठने वाली 7 अभिराम प्रवर सुरभिवाले गंधचूर्णो से सुगन्धित गन्धवर्तिका जैसा बनाओ। ऐसा कर हमारी प्रतीक्षा करते हुए वहीं ठहरो, यावत् वे वहीं रहरे। १०. सार्थवाह पुत्रों ने दूसरी बार भी कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा-- (देवानुप्रियो ?) शीघ्र गतिक्रिया की दक्षता से युक्त समान खुर और पूंछ वाले, समान रूप से उल्लिखित तीखे सींगों वाले, रजतमयी घंटा वाले, धागों की डोरी तथा प्रवर स्वर्णमयी नधिनी की डोरी से बंधे हुए नील उत्पल के सेहरे वाले प्रवर तरुण बैल जिसमें जोते गए हैं, जिस पर नाना मणिरत्न और घंटिका जाल वाली झूल हुई है, जो श्रेष्ठ काठ की जोत (जुए की बेल की गर्दन से वाली रस्सी) को रज्जुयुग्म से बंधे हुए और प्रवर लक्षणों से युक्त या को उपस्थित करो। उन्होंने भी वैसे ही उपस्थित किया। ११. सार्थवाह पुत्रों ने स्नान, बलिकर्म और कौतुक मंगलरूप प्रायश्चित्त किया । अल्पभार और बहुमूल्य वाले आभरणों से शरीर को अलंकृत किया । यान पर आरूढ़ हुए। आरूढ़ होकर जहां देवदत्ता गणिका का घर था, वहां आए। वहां आकर यान से उतरे। उतरकर देवदत्ता गणिका के घर में प्रवेश किया। १२. देवदता गणिका ने उन सार्थवाह पुत्रों को आते हुए देखा। देखकर हृष्ट-तुष्ट हो आसन से उठी। आसन से उठकर सात-आठ पांव आगे गई। आगे जाकर उन सार्थवाह पुत्रों से इस प्रकार कहा कहें देवानुप्रियो ! किस प्रयोजन से आगमन हुआ है ? १३. सार्थवाह पुत्रों ने देवदत्ता गणिका से इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय ! हम तुम्हारे साथ सुभूमिभाग उद्यान की उद्यानश्री का अनुभव करते हुए विहार करना चाहते हैं। १४. देवदत्ता ने उन सार्थवाह पुत्रों के इस अर्थ (प्रस्ताव ) को स्वीकार किया। स्वीकार कर स्नान और बलिकर्म कर यावत् श्री के समान परिधान पहन, जहां सार्थवाह पुत्र थे, वहां आयी। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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