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________________ (xii) दावद्दव - प्रस्तुत अध्ययन में सहिष्णुता के आधार पर आराधना और विराधना के विकल्प बतलाए गए हैं। उदगे - प्रस्तुत अध्ययन में परिणामवाद अथवा पर्याय परिवर्तन के सिद्धान्त की स्थापना की गई है। मण्डुक्के - एक मनुष्य की दुर्गति और एक मेंढ़क की सुगति । एक ही जीव की दो अवस्थाएं इस अध्ययन का मुख्य प्रतिपाद्य है। तेयलिपुत्ते-वैराग्य के अनेक कारण हैं- अपमान तिरस्कारपूर्ण जीवन दशा भी वैराग्य का कारण बनती है । तेतली अध्ययन में इस सत्य को पढ़ा जा सकता है। नंदीफले- अनिष्ट परिणाम को जानकर भी आत्मनियंत्रण के अभाव में इन्द्रिय लोलुपता व्यक्ति को अनिष्ट की ओर ले जाती है। आत्म नियंत्रण की स्थिति में वह बच जाता है। प्रस्तुत अध्ययन में 'जहाकिंपागफलाणं'...इसकी घटनात्मक व्याख्या उपलब्ध है । अवरकंका - द्रौपदी की पूर्वकथा धर्मरुचि अणगार की अहिंसावृत्ति और वासुदेव कृष्ण का दृढ़संकल्प, प्रस्तुत अध्ययन के ये प्रमुख निष्कर्ष हैं। आइण्णे- अश्वों की दो प्रकार की मनोदशा के माध्यम से मुनि की दो प्रकार की मनोदशा का चित्रण किया गया है। प्रासंगिक रूप में नौका- यात्रा का बड़ी सूक्ष्मता से निरूपण किया गया है। सुसुमा- इस अध्ययन का मुख्य प्रतिपाद्य आहार की आवश्यकता और उसके प्रति होनेवाली आसक्ति के मध्य सूक्ष्म भेदरेखा खींचना है। पुंडरीए - जीवन का सन्ध्याकाल समग्र जीवन की कसौटी है । अन्तिम समय में पदार्थ के प्रति जितनी अनासक्ति उतनी ही सद्गति । इस अध्ययन का यह निष्कर्ष सन्ध्याकालीन साधना की ओर विशिष्ट ध्यान आकर्षित करता है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध प्रथम अध्ययन काली का जीवनवृत्त, आचार की शिथिलता परिणामतः असुरकुमार देव की स्थिति में उत्पत्ति । अग्रिम अध्ययनों में संक्षिप्त विवरण और काली की भांति जीवनवृत्त । कथा शास्त्रीय दृष्टिकोण ठाणं में चार प्रकार की कथा बतलाई गई है १. आक्षेपणी २. विक्षेपणी ३. संवेजनी ४. निर्वेदनी आक्षेपणी कथा के चार प्रकार हैं १. आचार आक्षेपणी में आचार का निरूपण होता है। २. व्यवहार आक्षेपणी में व्यवहार - प्रायश्चित्त का निरूपण होता है । ३. प्रज्ञप्ति आक्षेपणी में संशयग्रस्त श्रोता को समझाने के लिए निरूपण होता है। 1 ४. दृष्टिपात आक्षेपणी में श्रोता की योग्यता के अनुसार विविध नय दृष्टियों से तत्त्वनिरूपण होता है । विक्षेपणी कथा के चार प्रकार हैं १. अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन कर दूसरे के सिद्धान्त का कथन करना । २. दूसरों के सिद्धान्त का प्रतिपादन कर अपने सिद्धान्त की स्थापना करना । ३. सम्यकवाद का प्रतिपादन कर मिथ्यावाद का प्रतिपादन करना । ४. मिथ्यावाद का प्रतिपादन कर सम्यक्वाद की स्थापना करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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