________________
(xi)
संघाडे-आत्मा अदृश्य है और शरीर दृश्य है आत्मा स्व है और शरीर पर है, पुद्गल है। चेतन पुद्गल के साथ जीए और उसके प्रति आसक्ति न बने यह कैसे सम्भव है। इस असम्भव को सम्भव बनाने के लिए धन सेठ और विजय तस्कर का दृष्टान्त बहुत प्रभावी है। अपने पुत्र का वध करने वाले को भोजन का विभाग देना यह कल्पना से परे की घटना है। पर अशक्यता की स्थिति में धन ने वैसा किया इस घटना में अशक्यता है आसक्ति नहीं।
शरीर को पोषण देना आवश्यक है। पोषण, स्वाद और आसक्ति के बीच बहुत सूक्ष्म रेखा है। खोड़े में बंधे हुए दो व्यक्तियों के दृष्टान्त से वह रेखा बहुत स्पष्ट हो जाती है। वृत्ति में उद्धृत गाथा में इस विषय का बहुत सुन्दर निरूपण किया गया है।
सिवसाहणेसु आहार-विरहिओ जं न वट्टए देहो।
तम्हा धणो व्व विजयं, साहू तं तेण पोसेज्जा॥ अंडे-श्रद्धा एक शक्ति है। घनीभूत इच्छा श्रद्धा बन जाती है। उसके द्वारा अध्यात्म की यात्रा में काफी सुविधा मिलती है। संशयालु व्यक्ति की अध्यात्म यात्रा निर्बाध नहीं होती। वन मयूरी के दो अंडों के दृष्टान्त से इस सचाई को उजागर किया गया है।
कुम्मे-अध्यात्म का प्रमुख सूत्र है गुप्ति । वे तीन हैं-मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति। अध्यात्म का विकास वही व्यक्ति कर सकता है जो गुप्ति की साधना करता है। उसकी साधना के बिना आध्यात्मिक विकास में बहुत सारी समस्याएं आती हैं। उन समस्याओं को दो कछुओं के दृष्टान्त के माध्यम से स्पष्ट किया गया है। कूर्म के दृष्टान्त का प्रयोग आगम साहित्य में भी मिलता
१. कुम्मोव्व अलीणपलीण गुत्तो। गीता में भी कछुए के दृष्टान्त का उल्लेख हुआ है। २. यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः।२ । ___ इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥
सेलगे-अध्यात्म की साधना का अनुत्तर सूत्र है अप्रमाद। प्रस्तुत अध्ययन राजर्षि शैलक की प्रमत्त और अप्रमत्त दोनों अवस्थाओं का समीचीन निदर्शन है।
इस अध्ययन में थावच्चा पुत्र के साथ शुक परिव्राजक का संवाद विनयमूलक धर्म और शौचमूलक धर्म की स्थिति पर बहुत प्रकाश डालता है।
___ तुम्बे-लेप अथवा आसक्ति नीचे ले जाती है। निर्लेप अथवा अनासक्ति की अवस्था ऊपर ले जाती है। तुम्बे के दृष्टान्त से इन दोनों अवस्थाओं का सम्यक् सम्बोध मिलता है।
रोहिणी-प्रस्तुत अध्ययन में चार वधुओं की मनोवृत्ति के माध्यम से मानवीय मनोदशा का सम्यक् निरूपण किया गया है। मल्ली-मल्ली के अध्ययन से दो निष्कर्ष निकलते हैं१. अध्यात्म की साधना करने वाले व्यक्ति को माया शल्य से बचना चाहिए। २. अशौच भावना के द्वारा वैराग्य का विकास किया जा सकता है।
मायंदी-इस अध्ययन का प्रतिपाद्य है इन्द्रिय विजय। इन्द्रिय लोलुपता के कारण जिनरक्षित ने अकाल मृत्यु को प्राप्त किया। इन्द्रिय विजय के कारण जिनपालित अपने घर पहुंच गया।
चन्दिमा-चन्द्रमा की कृष्ण पक्षीय और शुक्ल पक्षीय अवस्थाओं के द्वारा साधना के दो पक्षों का निर्देश किया गया है। शान्ति आदि दश धर्मों की आराधना करने वाला शुक्ल पक्ष की तरह उत्तरोत्तर प्रकाशमय बनता है। उनकी आराधना नहीं करने वाला कृष्ण पक्ष के चन्द्रमा की भांति उत्तरोत्तर हीन कला वाला हो जाता है।
१. दसवेआलियं ८/४० २ गीता 2/07
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org