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________________ नायाधम्मकहाओ ८३ ८. आकर सोने आदि का उत्पत्तिस्थान, तोह आदि की -- उत्पत्ति-भूमि । ९. आश्रम - तापस आश्रम से उपलक्षित स्थान । तीर्थ स्थान अथवा मुनस्था १०. सन्निवेश -- सार्थ, कटक आदि का वास । यात्रा आदि के लिए समागत व्यक्तियों का आवास । सन्निवेश सार्थ और सेना का होता है। । १९. निगम जहां बहुत से व्यापारियों का निवास हो जिसके निगमन के लिए चार से अधिक मार्ग हो। निगम वणिग्ग्राम | १२. राजधानी -- जहां राजा रहता हो । -- १३. संवाह-- किसान समभूमि में खेती कर सुरक्षा के लिए दुर्ग भूमि आदि में धान को वहन कर ले जाते हैं, वह संवाह (संबाध) कहलाता है जहां चारों ही वर्णों के लोग बड़ी संख्या में रहते हों। (द्रष्टव्य ठाणं २/३९० का टिप्पण, पृष्ठ १४२-१४४) सूत्र १२१ १०८. कुत्रिकापण से (कुत्तियावणाओ ) -- कुत्रिकापण वह दुकान या स्टोर, जहां विश्व भर की प्रत्येक वस्तु उपलब्ध होती हो । प्राचीन मान्यता के अनुसार देवाधिष्ठित होने के कारण स्वर्ग, मर्त्य और पाताल रूप तीन लोक में उपलब्ध होने वाली प्रत्येक वस्तु जहां उपलब्ध होती हों, वे आपण दुकानें कुत्रिकापण कहलाती थीं। सूत्र १२५ १०९ वस्त्र से पोसीए) पोत्तिय वस्त्र के अर्थ में देशी शब्द है। संस्कृत के प्रोत और हिन्दी के 'पोत' इसके ही प्रतिरूप हैं। सूत्र १२७ हंस लक्षण पटशाटक वाला विशाल वस्त्र । ११०. हंस लक्षण पटशाटक में ( हंसलक्खणेण पडसाइएण ) हंस जैसी शुक्लता अथवा हंस के छापे सूत्र १२७ १११. अभ्युदय, उत्सव और पर्वणी (पूर्णिमा आदि) तिथियों में (अन्दर य उत्सवेषु य ........ पव्वणीसु य ) १. अभ्युदय राज्य लक्ष्मी आदि की प्राप्ति होना। २. उत्सव -- प्रिय समागम के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला उत्सव । -- - ******** Jain Education International १. ज्ञातावृत्ति, पत्र - ६१ -- कुत्तियावणाउ त्ति देवताधिष्ठितत्वेन स्वर्गमर्त्यपाताललक्षण मूत्रितयसम्भविवस्तुसम्पादक आपगो हट्टः कुत्रिकापणः । २. वही - पोत्तियाइत्ति वस्त्रेण । ३. वही--हंसस्येव लक्षणं स्वरूपं शुक्लता हंसा वा लक्षणं चिह्नं यस्य स तेन शाटको वस्त्रमात्रं स च पृथुल: पटोऽभिधीयते इति पटशाटकः । प्रथम अध्ययन : टिप्पण १०७-११२ २/११ की वृत्ति में इन्द्रोत्सव आदि को उत्सव में परिगणित किया गया है। ३. प्रसव-- पुत्र जन्म । ४. तिथि - मदन त्रयोदशी आदि के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला उत्सव भी 'तिथि' कहा जाने लगा । ५. क्षण--इन्द्रोत्सव आदि । २ / ११ की वृत्ति में बहुत जनों के सम्मिलित भोज आदि को क्षण माना गया है। लगता है २ / ११ की वृत्ति में उत्सव और क्षण की व्याख्या में व्यत्यय हुआ ६. यज्ञ -- नाग पूजा आदि । है । ७. पर्वणि--कार्तिकी महोत्सव, कौमुदी महोत्सव आदि । सूत्र १२८ ११२. (सूत्र १२८ ) प्रस्तुत सूत्र में पुरुष के पहनने योग्य सतरह प्रकार के आभरणों तथा चार प्रकार की मालाओं का उल्लेख है । १. हार - एक सौ आठ लड़ी वाली मोती की माला । २. अर्द्धहार-- चौसठ लड़ी वाली मोती की माला । ३. एकावलि - एक लड़ी की मोती की माला । ४. मुक्तावलि --मोती की माला । ५. कनकावलि -- सोने की माला । ६. रत्नावलि -- रत्नों की माला । ७. प्रालम्ब -- मोती की माला । ८. पाद- प्रालम्ब -- पैरों तक लटकता गले का स्वर्णाभूषण । ९. कटक - कंकण । १०. त्रुटित -- बाहुरक्षक आभूषण । ११. केयूर बाजूबन्द | -- १२. अंगद बाजूबन्द | १३. दसमुद्रिकानंतक मुद्रिका दशक (दस मुद्रिकाओं वाला हथफूल) १४. कटिसूत्र--करघनी १५. कुंडल १६. चूड़ामणि १७. मुकुट चार प्रकार की मालाएं - १. ग्रन्थित २ वेष्टित ३. पूरित ४. संघात्य । -- त्रुटित, केयूर और अंगद ये तीनों ही भुजा के आभरण है, फिर भी तीनों में भेद है त्रुटित दृष्टिदोष के निवारणार्थ पहने जाते थे। केयूर और अंगद में आकारगत भेद है । ४. वही - - अभ्युदयेषु राज्यलाभादिषु। उत्सवेषु-प्रियसमागमादिमहेषु । प्रसवेषुपुत्रजन्मसु । तिथिषु - मदनत्रयोदशीप्रभृतिषु । क्षणेषु इन्द्रमहादिषु । यज्ञेषुनागादिपूजासु । पर्वणीषु च - कार्त्तिक्यादिषु । 1 (ख) वही ८७--अभ्युदयेषु राज्यलक्ष्म्यादिलाभेषु । उत्सवे-इन्द्रोत्सवादिषु । प्रसवेषु - पुत्रादिजन्मसु । तिथिषु मदनत्रयोदश्यादिषु । क्षणेषु - बहुलोक भोजनादानादिरूपेषु यज्ञेषु नागादिपूजासु पर्वणीषु कौमुदीप्रभृतिषु । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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