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________________ ७८ प्रथम अध्ययन : टिप्पण ८१-८५ प्रश्रेणि---इसी के प्रभेद रूप। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में अठारह श्रेणियों का उल्लेख है। वे अठारह श्रेणियां इस प्रकार हैं-- नायाधम्मकहाओ दांतों को मजबूत करने के लिए जो मिश्री, गोंद आदि खाया जाए वह भी खाद्य है।१२ स्वाद्य--पिप्पली आदि ।१२ निशीथ भाष्य के अनुसार अशन में चावल आदि, पान में तक्र, क्षीर, उदक आदि, खाद्य में फल आदि तथा स्वाद्य में मधु, फाणित, तांबूल आदि आते हैं।" ताम्बूल, सुपारी, तुलसी आदि को भी स्वाद्य के अन्तर्गत माना गया है। १. कुम्हार २. रेशम बुनने वाला ३. सोनार ४. रसोइया ५. गायक ६. नाई ७. मालाकार ८. कच्छकार ९. तमोली १०. मोची ११. तेली १२. अंगोछे बेचने वाले १३. कपड़े छापने वाले १४. ठठेरे १५. दर्जी १६. ग्वाले १७. शिकारी १८. मछुए। बौद्ध साहित्य महावस्तु में अठारह श्रेणियों का उल्लेख तो आता है, पर उनके नाम नहीं आते। नायाधम्मकहा में चित्रकार श्रेणि और स्वर्णकार श्रेणि का उल्लेख है। ८४. ज्ञाति ....... और परिजनों को (नाइ ....... परियणेहिं) ज्ञाति--माता-पिता, भाई-बहिन आदि । निजक--अपने पुत्र, पुत्री आदि। स्वजन--चाचा आदि। सम्बन्धी--सास-ससुर, साला आदि। प्राचीन समय में समूह चेतना विकसित थी। छोटे-बड़े सभी परिवारों में महत्त्वपूर्ण अवसरों, भावी निर्णयों, उत्सवों आदि पर इन सबका मिलन, सहभोज और विचारों का आदान-प्रदान आवश्यक समझा जाता था। जैन आगम साहित्य में अनेकत्र इनकी उपस्थिति का वर्णन है। ८२. शुल्क और कर न लें (उस्सुकं उक्कर) शुल्क और कर--ये दोनों टेक्स' के ही वाचक हैं। शुल्क का अर्थ है--बिक्रीकर-सेलटेक्स' ।' कर का अर्थ है--सम्पत्तिकर 'इन्कम टेक्स' ।' सूत्र ८१ ८३. अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य (असणं-पाणं-खाइम-साइम) अशन--१. जिससे शीघ्र ही क्षुधा शान्त होती है, वह अशन २. क्षुधा को मिटाने के लिए जिस वस्तु का भोजन किया जाता है वह अशन है। जैसे--रोटी, चावल आदि । ३. अशन में सत्तू, मूंग आदि अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों का समावेश होता है। पान--आवश्यक नियुक्ति के अनुसार प्राणों का उपकारक पान कहलाता हैं। पान के लिए पान, पानक और पानीय शब्दों का प्रयोग होता है, पर वास्तव में इन तीनों का अर्थ भिन्न-भिन्न है। सुरा आदि पान, खजूर आदि मिश्रित जल पानक तथा साधारण जल के लिए पानीय शब्द का प्रयोग किया जाता था। अगस्त्य चूर्णि में मृद्विका के पानक का उल्लेख है।१० खाद्य--मोदक, खजूर आदि । भुने हुए गेहूं, चने आदि तथा ८५. (सूत्र ८१) प्राचीन ग्रन्थों में ऐसे अनुष्ठानों का प्रावधान है जो शिशु के जन्म से पहले ही प्रारम्भ होकर मरणोपरान्त तक भी सम्पादित किए जाते हैं। ऐसी १००८ क्रियाओं या अनुष्ठानों का विस्तृत वर्णन है। वे क्रियाएं जीवन को संस्कारी बनाने में योगभूत बनती हैं। अत: कारण में कार्य के उपचार से वे अनुष्ठान भी 'संस्कार' कहलाते हैं। प्रस्तुत सूत्र में ऐसे कुछेक संस्कारों का उल्लेख है जिनकी शृंखला शिशु के जन्म के साथ ही प्रारम्भ हो जाती है। १. पहले दिन--स्थितिपतित-कुल परम्परा के अनुरूप जन्मोत्सव। २. दूसरे दिन--जागरिका-रात्रि जागरण। ३. तीसरे दिन--चन्द्र-सूर्य दर्शन। ४. अशुचि जातकर्म का निवर्तन। ५. नामकरण संस्कार--यह बारहवें दिन होता था। ६. प्रजेमनक--अन्नप्राशन संस्कार। ७. प्रचंक्रमण संस्कार। ८. चोलोपनयन--शिखाधारण संस्कार। १. ज्ञातावृत्ति, पत्र-४४--श्रेणय:-कुम्भकारादि जातयः प्रश्रेणय:-तत्प्रभेदरूपाः। ९. प्रवचनसारोद्धार, गाथा २०८ २. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-३/४३ १०. दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि पृष्ठ ८६--मुद्दितापाणगाती पाणं । ३. ज्ञातावृत्ति, पत्र-४४ --शुल्कं तु विक्रेतव्यं भाण्डं प्रति राजदेयं द्रव्यम्।। ११. वही - मोदगादि खादिमं। ४. वही-करस्तु गवादीनां प्रति प्रतिवर्षं राजदेयं द्रव्यम् । १२. प्रवचनसारोद्धार, गाथा २०९ ५. (क) आवश्यक नियुक्ति गाथा १६०२ (ख) निशीथ भाष्य गाथा ३७८९ १३. दशवकालिक अगस्त्यचूर्णि पृष्ठ ८६--पिप्पलिमादि सादिमं । ६. दशवकालिक अगस्त्यचूर्णि पृष्ठ ८६--ओदणादि असणं । १४. निशीथ भाष्य, गाथा ३७८९ ७. प्रवचनसारोद्धार गाथा २०७ १५. प्रवचनसारोद्धार, गाथा २१० ८. आवश्यकनियुक्ति गाथा १६०२ (ख) निशीथ भाष्य गाथा ३७८९ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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