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________________ सूत्र ७८ नायाधम्मकहाओ ७७ प्रथम अध्ययन : टिप्पण ७९-८१ माल्य और दाम--ये दोनों स्वतन्त्र शब्द हैं। माल्य का अर्थ सामान्य माला प्रसंग से लगता है इसका अर्थ कथाकार होना चाहिए। है और 'दाम' शब्द विशेष प्रकार की माला के अर्थ में प्रयुक्त होता है। ११. लख-ऊँचे बांस पर खेल करने वाले। 'दाम' शब्द के अनेक अर्थ उपलब्ध होते हैं। जैसे-- १२. मंख--चित्रफलक दिखाकर आजीविका चलाने वाले।२ 0 सिर पर लटकने वाली माला। १३. तूणइल्ल--तूण (मशक के आकार का वाद्य) वादक ।१३ ० सिर पर आभूषण रूप में लगाई जाने वाली माला। १४. तुंबवीणिय--तम्बूरावादक। 0 बालों को सुव्यवस्थित रखने के लिए पहनी जाने वाली माला। ० खुले मैदान के अन्त में चारों ओर वंदनवार के रूप में बांधी जाने वाली माला। ८१. श्रेणियों और उपश्रेणियों (सेणि-प्पसेणीओ) ० मस्तक पर पहनी जाने वाली माला, जो पत्तों, फूलों और राजा के विशेष निर्देश को प्रसारित और क्रियान्वित करने के जवाहरात से बनी हुई हो। लिए अन्य प्रसंगों में कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाने का उल्लेख मिलता है। गृहसूत्र के अनुसार दाम का अर्थ 'चन्दन की माला' होता है। प्रस्तुत प्रसंग में अठारह प्रकार की श्रेणियां और प्रश्रेणियां आमंत्रित हैं। ८०. नटों.............. तम्बूरा वादकों (नड ............. तुबवीणिय) श्रेणि और प्रश्रेणि ये दो शब्द विशेष ज्ञातव्य हैं। १. नट--नाटक करने वाला। श्रेणि नाम पंक्ति का है। इस शब्द का प्रयोग अनेक २. नर्तक--नृत्य करने वाला। प्रकरणों में हुआ है, जैसे आकाश प्रदेशों की श्रेणि, राजसेना की १८ ३.जल्ल--रस्सी पर चढकर खेल करने वाले तथा राजा के स्तोत्र श्रेणिया, नरक व स्वर्ग के श्रेणिबद्ध विमान एवं बिल. शक्ल ध्यान गत पाठक। साधु की उपशम और क्षपक श्रेणि तथा विभिन्न जातियां और ४. मल्ल--पहलवान। उपजातियां। ५. मौष्टिक--मुक्केबाज, मुष्टियुद्ध करने वाला। तिलोयपण्णति में राजसेना की १८ श्रेणियों का उल्लेख है, ६. विडम्बक--विदूषक। जैसे--हस्ति, अश्व, रथ--इनके अधिपति, सेनापति, पदाति, श्रेष्ठी, ७. कहकहक--कथा करने वाला। दण्डपति, शूद्र, क्षत्रिय, वेश्य, महत्तर, प्रवर अर्थात् ब्राह्मण, गणराज, ८. प्लवक--छलांग भरने वाला। मंत्री, तलवर, पुरोहित, अमात्य और महामात्य तथा बहुत प्रकार के ९. लासक--रास रचाने वाला। प्रकीर्णक । लास एक अलग नृत्य परम्परा रही है। 'रासो' राजस्थानी प्रबन्ध धवला में कुछ परिवर्तन के साथ इनका उल्लेख है जैसे--घोड़ा, चरितों की एक आकर्षक विधा है। यह विविध राग-रागनियों में गुम्फित हाथी, रथ--इनके अधिपति, सेनापति, मंत्री, श्रेष्ठी, दण्डपति, शूद्र, क्षत्रिय, होता है। उस रास' का मंचन करने वाले 'रासक' हो सकते हैं। 'र' को ब्राह्मण, वैश्य, महत्तर, गणराज, अमात्य, तलवर, पुरोहित, स्वाभिमानी, 'ल' होने से लासक हो जाता है। 'लास्यक' का प्रवृत्तिलभ्य अर्थ होता महामात्य और पैदल सेना इस तरह सब मिलकर अठारह श्रेणियां होती है--रास रचाने वाले। वृत्तिकार ने इसका वैकल्पिक अर्थ राजा की है।१५ जयकार करने वाला भाण्ड भी किया है। प्रस्तुत सूत्र में श्रेणि और प्रश्रेणि शब्द का प्रयोग जातियों और १०. आख्यायक--वृत्ति के अनुसार आख्यायक का अर्थ होता है उपजातियों के अर्थ में हुआ है। शुभ-अशुभ फलादेश बताने वाला, भविष्य वक्ता । किन्तु खेलकूद प्रधान श्रेणि--कुम्भकारादि जातियां । १. आप्टे १२. वही ४४--मखा--चित्रफलकहस्ता भिक्षाटाः । २. A Concise Etymological Samskrit Dictionary II P. ३४ १३. वही - तूणइल्ला: - तूणाभिधानवाद्यविशेषवन्तः । ३. ज्ञातावृत्ति, पत्र-४४--नटा: - नाटकानां नाटयितारः। १४. तिलोयपण्णत्ति १/४३,४४ ४. वही - नर्तका ये नृत्यन्ति, अंकिला इत्येके। करितुरयरहाहिवई सेणावई - पदत्तिं सेटि दंडवई। ५. वही - जल्ला-वरनखेलका, राज्ञः स्तोत्रपाठका: इत्यन्ये। सुद्दक्खत्तिय वइसा, हवंति तह महयरा पवरा।। ४३ ।। ६. वही - मौष्टिका-मल्ला एव ये मुष्टिभिः प्रहरन्ति। गणरायमंति तलवर पुरोहियामत्तया महामत्ता। ७. वही - विडम्बकाः - विदूषकाः। बहुविह पइण्णया य अट्ठारस होति सेणीओ।। ४४ ।। ८. वही - प्लवका - ये उत्पल्वन्ते नद्यादिकं वा तरन्ति । १५. धवला १, गाथा ३७, ३८ ९. वही - लासका - ये रासकान् गायन्ति, जयशब्दप्रयोक्तारो वा भाण्डा हयहत्थिरहाणहिवा सेणावइ - मंति सेट्ठि दंडवई। इत्यर्थः । सुद्दक्खत्तिय - बम्हण वइसा तह महयरा चेव ।। ३७ ।। १०. वही - आख्यायका - ये शुभाशुभमाख्यन्ति । गणरायमच्च तलवर पुरोहिया दप्पिया महामत्ता। ११. वही - लखा - वंशखेलकाः । अट्ठारह सेणीयो, पयाइणामेलिया होति ।। ३८ । । Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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