________________
३०. सम संख्या जद होय, कडजुम्माज ह तदा ।
सह प्रदेश ने जोय, चिहं अपहरवे शेष चिहं ।। ३१. विषम संख्या जद होय, द्वापरयुग्मा व तदा ।
सहु प्रदेश में सोय, चिहुं अपहरवं शेष बे।।
वा० लोक नै विषे द्विप्रदेशिका खंध अनंता छ। ते सहु एकठा कीजै ते खंध सम संख्याते बेकी हुवे। तेहनां प्रदेश नै चिह-चिहं अपहरतां शेष च्यार प्रदेश रहै । तिण काले कडजुम्मा हुवै तिण कदाचि कडजुम्म कह्या। अनै सहु द्विप्रदेशिका खंध एकठा कीधां ते खंध विषम संख्या ते एकी हवै तेहना प्रदेश नं चिहुं-चिहुं अपहरतां शेष दोय प्रदेश रहै, तिण काले द्वापरजुम्मा हुवै। एतले शेष दोय खंध रहे तेहनां च्यार प्रदेश शेष रह्या माट कडजम्मा कह्या । अने शेष एक खंध रहै तेहनां दोय प्रदेश शेष रह्या माटै द्वापुरयुग्मा कह्या । ३२. *विधान ते भेदे करी रे, इक-इक गिणवे रे सोय ।
द्वापरयुग्माईज ह्व, त्रिण पद शेष न होय ।।
वा०-जे द्विप्रदेशिक खंध एक-एक चितवता थकां दोय प्रदेशपणां थकी प्रदेश-अर्थपणे करी द्वापरयुग्मा हुवं शेष तीन नों निषेध करिवो ।
३२. विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, दावरजुम्मा नो कलियोगा।
(श. २५२१७६) ___ वा.--'विहाणादेसेण' मित्यादि, ये द्विप्रदेशिकास्ते प्रदेशार्थतया एकैक शश्चिन्त्यमाना द्विप्रशत्वादेव द्वापरयुग्मा भवन्ति ।
(वृ. प. ८८३) ३३. तिषदेसिया णं-पुच्छा ।
गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा,
(व.प.५०
३४-३६. 'तिप्पएसिया ण' मित्यादि, समस्तत्रिप्रदेशिक
मीलने तत्प्रदेशानां च चतुष्कापहारे चतुरग्रादित्वं भजनया स्यादनवस्थितसंख्यत्वात्तेषां,
(वृ. प. ८८३)
वा.-यथा चतुर्णां तेषां मीलने द्वादश प्रदेशास्ते च चतुरग्राः पञ्चानां व्योजाः षण्णां द्वापरयुग्मा: सप्तानां कल्योजा इति, (वृ. प. ८८३)
३३. त्रिण प्रदेशिया नी पृच्छा रे, जिन कहै ओघ प्रयोग। कदाचि कडजुम्मा हुदै, जाव कदा कलियोग ।
सोरठा ३४. तीन प्रदेशिक खंध, सर्व प्रतै करि एकठा ।
तास प्रदेश प्रबंध, चिहं ने अपहरवै करी ।। ३५. कदा च्यार रहै शेख, कदाचित त्रिण शेष रहै।
कदा शेष बे देख, कदाचि शेष प्रदेश इक ।। ३६. भजना करि इम होय, अनवस्थित संख्या थकी। पिण च्यारूं पद जोय, समकाले नहि हकदा ।।
वा.... जिम च्यार त्रिप्रदेशिका खंध एकठा कीध तेहना बार प्रदेश, ते चिहुं अपहरवं शेष च्यार रहै ए कडजुम्मा कहिये । अन पंच त्रिप्रदेशिका खंध एकठा कीधे तेहना पनर प्रदेश, ते चिहुं अपहरवं शेष तीन रहै ए तेओगा कहिये। अनं छह त्रिप्रदेशिका खंध एकठा कीधै तेहनां अठारह प्रदेश ते चिहं अपहरवै शेष रहै दो, ए द्वापरयुग्मा कहिये । अनै सप्त त्रिप्रदेशिका खंध एकठा कीधे तेहनां इक्कीस प्रदेश ते चिहुं चिहुं अपहरवं शेष एक रहे. ए कलियोग कहिये । ३७. *विधान ते भेदे करी रे, इक-इक गिणवै सोय ।
तेओगाज हुवै तिके, त्रिण पद शेष न होय ॥
वा-विधानादेश ते एक-एक गिणव करी तेओगाईज, त्रिप्रदेशिक खंधपणां थकी। ३८. चिहं प्रदेशिया खंध तणी रे, बहवच पूछा कीध
जिन कहै ओघ सामान्य थी, विधान थी पिण लीध । ३९. कडजुम्माज हवै तिके रे, शेष तीन पद नांहि ।
अपहरवैज प्रदेश नं, शेष च्यार रहै ताहि ।। __*लय : सुण बाई सुवटी कहे ए कोई इचरज बात
३७ विहःणादेसेणं नो कडजुम्मा, तेयोगा, नो दावरजुम्मा, नो कलियोगा।
(श. २५।१७७) वा.--विधानादेशेन च त्योजा एव त्यणुकत्वात्स्कन्धानामिति ।
(वृ. प. ८८३ ३८. चउप्पदेसिया णं-पुच्छा।
गोयमा ! ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि ३९. कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, नो
कलियोगा। 'चउप्पएसिया ण' मित्यादि, चतुष्प्रदेशिकानामोघतो विधानतश्च प्रदेशाश्चतुरग्रा एव । (वृ. प. ८८३)
श० २५, उ०४, ढा०४१ ७७
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
sonal Use Only
www.jainelibrary.org