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________________ वण, गन्ध, रस स्पर्श की अपेक्षा से पुद्गल का अल्पबहुत्व ११८. इक गुण काला हे प्रभु ! पुद्गल संखगुणा फुन काल के । असंख्यातगुण कृष्ण वलि, अनंतगुण फुन कृष्ण निहाल कै ।। ११९. द्रव्य थकी ने प्रदेश थी, द्रव्य प्रदेश उभय नी तेम के। कह्यो अल्पबहुत्व परमाणुओ, अल्पबहुत्व एहनों पिण एम कै ।। ११८. एएसि णं भंते ! एगगुणकालगाणं, संखेज्जगुण कालगाणं, असंखेज्जगुणकालगाणं, अणंतगुणकालगाण य पोग्गलाणं ११९. दव्वट्ठयाए, पदेसट्ठयाए, दवट्ठ-पदेसट्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसहिया वा? एएसि जहा परमाणुपोग्गलाणं अप्पाबहुगं तहा एएसि पि अप्पाबहुगं । १२०. एवं सेसाण वि वण्ण-गंध-रसाणं । (श. २५।१६६) १२०. इम शेष वर्ण गंध रस तणों, अल्पबहुत्व तीन अवधार के । कृष्ण वर्ण नों आखियो, तिमहिज कहिवो सर्व विचार कै ।। १२१. इक गुण कर्कश ने प्रभु ! संखेजगुण कक्खड नै सोय के । असंख्यातगुण कक्खड नै, अनंतगुण कर्कश ने जोय कै ।। १२२. द्रव्य थकी ने प्रदेश थी, द्रव्य प्रदेश उभय थी देख के । कुण-कुण थी जावत कह्या, विसेसाहिया वा सुविशेष कै? १२१. एएसि णं भते ! एगगुणकक्खडाणं, संखेज्जगुण कक्खडाणं, असंखेज्जगुणकक्खडाणं, अणंतगुणकक्ख डाण य पोग्गलाणं १२२. दव्वट्ठयाए, पदेसट्टयाए, दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ? १२३. गोयमा ! सव्वथोवा एगगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए, १२४. संखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दवट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठया असंखेज्जगुणा, १२५. अणंतगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए अणंतगुणा । १२६. पदेसट्टयाए एवं चेव, नवरं-- १२३. जिन कहै थाड़ा सर्व थी, दवट्ठयाए द्रव्यार्थपणेह के । इक गुण कक्खडा पोग्गला, वारू न्याय विचारी लेह के ।। १२४. तेहथी संखगुण कक्खडा, द्रव्य थी संखगुणाज समाज के । तेहथी असखगुण कक्खडा, दव्वट्टयाए असंखगुणाज के ।। १२५. तेहथी अनंतगुण कक्खडा, पुद्गल द्रव्य थकी पहिछाण के। तेह द्रव्यार्थपणे करी, अनंतगुणा आख्या जगभाण के ।। १२६. प्रदेश-अर्थपणे करी, एवं चेव कह्यो जगतार कै । णवरं इतरो विशेष छै, सांभलजो भवियण ! धर प्यार के ।। १२७. संख्यातगुण कक्खडा तिके, प्रदेश-अर्थपणे करि जेह के । असंख्यातगुणा जाणवा, शेष तिमज कहिवू सहु तेह के ।। १२८. सर्व थी थोड़ा पोग्गला, इक गुण कक्खडा जे कहिवाय के । द्रव्य थकी ने प्रदेश थी, वारू ए जिन वच वर न्याय के ।। १२९. तेहथी संखेज्जगुण कक्खडा, द्रव्य थकी संख्यातगुणाज के। तेहथी तेहिज प्रदेश थी, संखगुणा आख्या जिनराज के । १३०. तेहथी असंखगुण कक्खडा, असंख्यातगुणा द्रव्य थकीज के। तेहथी तेहिज प्रदेश थी, असंख्यातगुणा तास कहीज के ।। १३१. तेहथी अनंतगुण कक्खडा, दव्वट्ठयाए अनंतगुणा होय के। तेहथी तेहिज प्रदेश थी, अनंतगुणा कहिये अवलोय कै॥ १३२. एवं मृदु गुरु नै लघु, अल्पबहुत्व तीन नी ताय कै। शीत उष्ण निद्ध लुक्ष तणों, वर्ण नों आख्यु तिम कहिवाय के । १३३. पणवीसम तुर्य देश ए, च्यारसौ नै चालीसमी ढाल के। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' आनंद हरष विशाल कै॥ १२७. संखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला पदेसट्टयाए असंखेज्ज गुणा । सेसं तं चेव । १२८. दब्वट्ठ-पदेसट्ठयाए-सव्वत्थोवा एगगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए । १२९. संखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, ते चेव पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा । १३०. असंखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए असंखेज्ज गुणा, ते चेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा । १३१. अणंतगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए अणंतगुणा, ते चेव पदेसट्टयाए अणंतगुणा । १३२. एवं मउय-गरुय-लहुयाण वि अप्पाबहुयं । सीयउसिण-निद्ध-लुक्खाणं तहा वण्णाणं तहेव । (श. २५।१६७) -७४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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