SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८. तेहथी संख्यात प्रदेशिया, द्रव्य थी संखगुणा सुविचार के । तेहथी असंख प्रदेशिया, द्रव्य थी असंखगुणा अवधार के। ९९. अनंत प्रदेशिया खंध ते, सर्व थी थोड़ा प्रदेशपणेह के । तेहथी परमाणु पोग्गला. अप्रदेशट्ठयाए अनंतगुणा लेह के ।। वा... इहा प्रदेश अर्थपणां ना अधिकार विष पिण जे अप्रदेशार्थपणे करी इम कह्यो ते परमाणु नै अप्रदेशपणां थकी जाणवू । १००. तेहथी संख्यात प्रदेशिया, संखगुणा प्रदेश थी सोय के । तेहथी असंख प्रदेशिया, असंखगुणाज प्रदेश थी होय के ।। १०१. अनंतप्रदेशिया खंध ते, सर्व थी थोड़ा द्रव्यार्थपणेह के । तेहिज अनंतप्रदेशिया, अनंतगुणाज प्रदेश थी जेह के ।। १०२. तेहथी परमाणुपोग्गला, द्रव्य अर्थ भावे करि जाण के । फुन अप्रदेश थकी तिके, अनंतगुणा ए श्री जिन वाण के ।। वा० ....परमाणु पुद्गल द्रव्यार्थ अप्रदेशार्थपणे अनंतगुणा परमाणुआ द्रव्य विवक्षाये द्रव्य रूप अर्थ अनं प्रदेश विवक्षाये अविद्यमान प्रदेश अर्थ-इम करीने द्रव्यार्थ अप्रदेशार्थ ते कहिये । ९८. संखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा दब्वट्ठयाए असखेज्जगुणा । ९९. पदेसट्टयाए-सव्वत्थोवा अणंतपदेसिया खंधा पदेस? याए, परमाणुपोग्गला अपदेसट्टयाए अणंतगुणा, ___ वा.-इह प्रदेशार्थताऽधिकारेऽपि यदप्रदेशार्थ तयेत्युक्तं तत्परमाणूनामप्रदेशत्वात्, (वृ. प. ८८०) १००. संखेज्जपदेसिया खंधा पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा, असखेज्जपर्देसिया खधा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा । १०१. दन्वट्ठ-पदेसट्टयाए --सव्वत्थोवा अणंतपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए, ते चेव पदेसट्ठयाए अणंतगुणा, १०२. परमाणुपोग्गला दव्वट्ठपदेसट्ठयाए अणंतगुणा, १०३. तेहथी संख्यात प्रदेशिया, द्रव्य थी संखगुणा कहिवाय के। तेहिज संख्यात प्रदेशिया, संखगुणा प्रदेश थी थाय के । १०४. तेहथी असंख प्रदेशिया, द्रव्य थी असंखगुणा अवलोय के । तेहिज असंख प्रदेशिया, असंखगुणा प्रदेश थी जोय के ।। एक प्रदेशावगाही यावत असंख्य प्रवेशावगाही पुद्गल का अल्पबहुत्व १०५. प्रभु ! एक प्रदेश ओगाहिया, संखप्रदेश अवगाह्या सोय के। असंख प्रदेश ओगाहिया, पुद्गल द्रव्य थकी अवलोय के ।। वा. -'परमाणुपोग्गला दव्वट्ठअपएसट्टयाए' त्ति परमाणवो द्रव्यविवक्षायां द्रव्यरूपाः अर्था. प्रदेशविवक्षायां चाविद्यमानप्रदेशार्था इतिकृत्वा द्रव्यार्थाप्रदेशार्थास्ते उच्यन्ते। (व. प. ८८०) १०३, संखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्टयाए सखेज्जगुणा, ते चेव पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा, १०४. असंखेज्जपदेसिया खंधा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ते चेव पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा। (श. २५।१६३) १०५. एएसि णं भंते ! एगपदेसोगाढाणं, सखेज्जपदेसो गाढाणं, असंखेज्जपदेसोगाढाण य पोग्गलाणं दब्बटू याए, १०६. प्रदेश अर्थपणे वली, द्रव्य अनं प्रदेश थी फेर के। कुण-कुण थी जावत कह्या, विसेसाहिया अधिका हेर कै ? १०७. जिन कहै थोड़ा सर्व थो, एक प्रदेश ओगाह्या जेह के । दव्वट्ठयाए पोग्गला तेहनों न्याय सुणो चित देह के ।। वा० ---सर्व थी थोड़ा एक प्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्यार्थपणे-इहा क्षेत्र नां अधिकार थकी क्षेत्रनांज प्रधानपणां थकी परमाण द्विप्रदेशिक खंधादिक अनंतप्रदेशिक खंध पिण विशिष्ट एक क्षेत्र प्रदेश अवगाढा आधार आधेय नां अभेद उपचार थकी एकपण करी कहिये। एक आकाश प्रदेश तो आधार अन तेहनें विषे परमाणआदिक अनंत प्रदेशिया खंध रह्या ते आधेय । ए बिहुँ ना अभेद उपचार थकी एकपण करी कहिये तिवारै सर्व थी थोड़ा एकपएसोगाढा पोग्गला दवट्ठयाए - एतले लोकाकाश-प्रदेश प्रमाणे ईज हुवै ते कहै छै–जे भणी एहवो आकाश-प्रदेश कोई नथी जे एक प्रदेश अवगाहवाने परिणामे परिणम्या परमाण्वादिक नै अवकाश देवानै परिणाम करी परिणम्यो नथी। ते माटै एक प्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्याश्रयी लोकाकाश प्रदेश प्रमाणे हीज कह्या । १०८. तेहथी आकाश तणां जिके, संखप्रदेश ओगाह्या तेह के । दव्वट्ठयाए पोग्गला, संखगुणा कहियै छै जेह कै॥ ७२ भगवती जोड़ १०६. पदेसट्ठयाए, दबटु-पदेसट्टयाए कयरे कयरेहितो जाव (सं. पा.) विसेसाहिया वा ? १०७. गोयमा ! सव्वत्थोवा एगपदेसोगाढा पोग्गला दव्वट्ठयाए, वा०-सव्वत्थोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्ठयाए' त्ति इह क्षेत्राधिकारात्क्षेत्रस्यैव प्राधान्यात्परमाणुद्वयणुकाद्यनन्ताणुकस्कन्धा अपि विशिष्ट कक्षेत्रप्रदेशावगाढा आधाराधेययोरभेदोपचारादेकत्वेन व्यपदिश्यन्ते ततश्च 'सव्वत्थोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दबट्ठयाए' त्ति, लोकाकाशप्रदेशपरिमाणा एवेत्यर्थः, तथाहि न स कश्चिदेवभूत आकाशप्रदेशोऽस्ति य एकप्रदेशावगाहपरिणामपरिणतानां परमाण्वादीनामवकाशदानपरिणामेन न परिणत इति, (वृ. प. ८८०) १०८. संखेज्जपदेसोगाढा पोग्गला दब्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy