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६८. जिन कहै दोय प्रदेश नै ओगाह्या थी एक प्रदेश कै । अवगाह्या पुद्गलतिके, द्रव्य थकी विसेसाहिया कहेस के ||
सोरठा
६९. इक प्रदेश अनंत प्रदेशिक ताह, ७०. वे प्रदेश अवगाह,
आदि देइनं ताह, अनंत ७१. विसेसाहिया ताहि,
अनंत खंध || अधिकाज ते। पण दुगुणादिक नाहि, ए विसेसाहिया तणों ॥ ७२. *मण आलावे करो, तीन प्रदेश जोगाया भी पेय के दोय प्रदेश ओगाहिया, पुद्गल द्रव्य थी अधिक विशेख के ।। ७३. इन जावत दश प्रदेश में ओगाया पुद्गल थी पेख के नव प्रदेश ओगाहिया, पुद्गल द्रव्य थी अधिक विशेख के ।। ७४. हे प्रभु! दश प्रदेश नी, पूछा कीधां गोयम शीस के । संख प्रदेश ओगाहिया, पुद्गल थी भी गुजगीस के ।। ७५. जिन कहै दश प्रदेश नं ओगाह्या पुद्गल थी माण कै 1 संख प्रदेश ओगाहिया, मुद्गल द्रव्य यकी ७६. संख्या नभ प्रदेश में अवगाह्या पुद्गल असं प्रदेश ओगाहिया, पुद्गल द्रव्य थकी बहू ७७. पूछा सगर्ल स्थानके, भणवी सूत्रे आयो एम कै प्रदेश- अर्थपणे हिवै, गोयम प्रश्न करें धर प्रेम के ॥ ७८. प्रभु ! एक प्रदेश ओगाढ में दोय प्रदेश ओगाढा जेह के पुद्गल नंज प्रदेश थी कुणकुण भी विरोसाहिया तेह के ? ७९. जिन कहै एक प्रदेश नै ओगाह्या पुद्गल थी पेख कै ।
बहू जाग के ।। सोय के ।
थी
।
जोय के
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दोय प्रदेश ओगाहिया, प्रदेश थी विसेसाहिया देख के || ८०. इम जावत नव प्रदेश नं, अवगाह्या पुद्गल थी पेख कै ।
दश प्रदेश ओगाहिया, पुद्गल प्रदेश थी अधिक विशेख के || ८१. दश आकाश प्रदेश नं, अवगाह्या पुद्गल थी जो कै । संख प्रदेश ओगाहिया, पुद्गल प्रवेश थकी वह होय के ८२. संख्यात नभ प्रदेश नं, अवगाह्या पुद्गल थी ताय के । असंख प्रदेश ओगाहिया, पुद्गल प्रदेश थकी बहु थाय के || पुद्गल का अल्पबहुत्व काल की अपेक्षा से
८३. प्रभु ! एक समय स्थितिका अनं, दो समय स्थितिका छे बेह के । पुद्गल न द्रव्यार्थपणे, इत्यादिक प्रश्नोत्तर में ८४. जिम अवगाहणा ने विषे, वक्तव्यता आखी तिण स्थिति विषे पण जाणवी, काल अपेक्षा पुद्गल पुद्गल का अल्पबहुत्व भाव की अपेक्षा से ८५. इक गुण काला ने प्रभु ! वे गुण कृष्ण पोम्पल ने पेख के । वट्टयाए कुणकुण थकी, विसेसाहिया अधिक विशेख के ?
* लय हूं बलिहारी जादवां
भगवती जोड़
७०
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अवगाह,
परमाणु ने आदि दे ।
अनंता ए
हुवे
दोय
प्रदेशिक
प्रदेशिक
तेह थकी
अर्थ अर्थ
सहु ॥ खंध नैं ।
तेह कै ॥ रीत कै । शेत के
६८. गोयमा !
दुपदेसोगाढे हितो पोग्गलेहितो एगपदेसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए विसेसाहिया ।
६९. तत्रैकप्रदेशावगाढा: परमाण्वादयोऽनन्तप्रदेशिकस्कन्धान्ता भवन्ति, ( वृ. प. ८७९ ) ७०. प्रदेशाचादास्तु उपणुकादयोऽनन्तानुकान्ताः
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(बृ. प. ८७९) ७१. 'विसेसाहिय' त्ति समधिकाः न तु द्विगुणादय इति । (बृ. प. ८७९) पोग्गले तो
७२. एवं एएणं गमएणं तिपदेसोगाढे हितो दुपदेसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए विसेसाहिया ७२. जाव दसदेोगाहिती पोलेहितो नवपदेसोगाढा पोग्गला दबाए विसेसाहिया
७५. दसदेोगाहियो पोलेहिनो संखेज्जपदेोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए बहुया ।
७६. संखेज्जपदेसोगाढे हितो पोग्गलेहितो असंखेज्जपदेसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए बहुया ।
७७. पुच्छा सव्वत्थ भाणियव्वा ।
(श. २५/१५८ )
७८. एएसि णं भंते! एगपदेसोगाढाणं दुपदेसोगाढाण य पोग्लाग पाए कवरे कमरेहितो विसेसाहिया? ७९. गोमा ! एनपदेसोमाहिती योग्यलेहितो दुपदेसोगाढा पोग्गला पदेसयाए बिसेसाहिया ।
८०. एवं जाव नवपदेसोगाढे हितो पोग्गलेहितो दसपदेसोगाढा पोग्गला पदेसट्टयाए विसेसाहिया । १] पोम्यतेहितो जपदेोगादा पोग्गला पट्टयाए बहुया
८२. संखेज्जपदेसोगाढे हितो पोग्गलेहितो असंखेज्जपदेसोगाढा पोग्गला पट्टयाए बहुया । (श. २५।१५९)
२. एएस गं मंते एवसमयद्वितीयाणं दुसमयद्वितीयान यपोग्गलाणं दव्वट्टयाए
? ८४ जहा ओगाहणाए वत्तव्वया एवं ठितीए वि । (श. २५/१६० )
८५. एएसि णं भंते ! एगगुणकालगाणं दुगुणकालगाण य पोग्गलाणं दव्वट्टयाए ?
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