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________________ ४०. एवं अवसेसा वि वण्णगंधरसफासा नेयव्वा जाव अणतगुणलुक्ख त्ति। (श २५।१५०) ४१. एएसि णं भंते ! परमाणु पोग्गलाणं दुपदेसियाण य खंधाणं दव्वट्ठयाए कयरे कयरेहितो बहुया ? ४२. गोयमा ! दुपदेसिएहितो खंधेहिंतो परमाणुपोग्गला दव्वट्ठयाए बहुया। (श. २५।१५१) ४३,४४, तत्र बहुवक्तव्यतायां द्वयणकेभ्यः परमाणवो बहवः सूक्ष्मत्वादेकत्वाच्च द्विप्रदेशकास्त्वणुभ्यः स्तोका: स्थूलत्वादिति वृद्धाः वस्तुस्वभावादिति चान्ये, (वृ प. ८७९) ४५. एवमुत्तरत्रापि पूर्व-पूर्वे बहवस्तदुत्तरे तु स्तोकाः । (वृ. प. ८७९) ४०. इम अवशेषज जाणवा, वर्ण गंध रस नै वलि फास के। ___ जाव अनंतगुण लुक्ख लगे, सर्व अनंता कहिवा तास के ।। पुद्गल का अल्पबहत्व द्रव्यार्थ की अपेक्षा से ४१. प्रभु ! ए परमाणुपुद्गल तणे, दुप्रदेशिया खंध नैं ताय कै । दव्वट्ठयाए कुण-कुण थकी, बहुला? तब भाखै जिनराय के ।। ४२. दोय प्रदेशिक खंध थकी, परमाणपुद्गल पहिछाण के। दव्वट्ठयाए बहुत छ, तास न्याय सुणजो सुविहाण के। सोरठा ४३. सूक्ष्मपणां थकीज, वलि ते एकपणां थकी। बहु परमाणु कहीज, दोय प्रदेशिक खंध थी॥ ४४. पूर्वे भाख्यो न्याय, तेह वडेरां नों कहिण । अन्य आचार्य ताय, वस्तु स्वभाव थकी कहै ।। ४५. इम आगल पिण न्याय, पूर्व बहु उत्तर अल्प । जिहां कह्यो छै ताय, तिहां न्याय ए जाणवू ।। वा० ... इहां तीजा पद में पूर्वे बहु अनैं उत्तर अल्प इम कह्यो तेहनों अर्थ कहै छ--इहां पूर्वे कह्यो दुप्रदेशिक खंध थी परमाणु घणां ते परमाणु पूर्व पद छ ते माटै घणां छ । अन दुप्रदेशिक खंध आगलो पद छ तेहन उत्तर पद कहिये ते माटै ए थोड़ा छै । इमहिज आगल कहिवो ते कहै छ ४६. “ए प्रभु ! खंध दुप्रदेशिया, तीन प्रदेशिक खंध – तेह के। दव्वट्ठयाए कुण-कुण थकी, बहुला? तब जिन उत्तर देह के ।। ४७. तीन प्रदेशिक खंध थकी, दोय प्रदेशिक खंध सूजोय के। द्रव्य थकी ते बहुत छै, एवं इण गमे करि आगल जोय के । वा०-इहां कह्यो त्रिप्रदेशिक खध थकी दुप्रदेशिक खंध घणां दुप्रदेशिक तो त्रिप्रदेशिकखंध नी अपेक्षाय प्रथम पद छ ते माट। त्रिप्रदेशिक खंध थकी दुप्रदेशिक खंध घणां छै । अने दुप्रदेशिक खंध नी अपेक्षाय त्रिप्रदेशिक खंध आगलो पद छ ते माट दुप्रदेशिक खंध थी त्रिप्रदेशि खंध थोड़ा छै। इम चिहुं प्रदेशिक खंध थी त्रिण प्रदेशिक घणां छ। अने त्रिण प्रदेशिक खंध थकी च्यार प्रदेशिक खंध थोड़ा छ। ४८. जावत दश प्रदेशिया, खंध थकी कहिय अवलोय के। नव प्रदेशिया खंध ते, द्रव्य अर्थ करि बहला होय कै ।। ४९. हे प्रभु ! दश प्रदेशिका, संख प्रदेशिक खंध फून ताम के । दव्वट्ठयाए कुण-कुण थकी, बहुला? तब भाखै जिन स्वाम के ।। ५०. जिन कहै दश प्रदेशिका, खंध थकी अधिका कहिबाय के । संख प्रदेशिया खंध ते, दव्वट्टयाए बहुला पाय के ।। ४६. एएसि णं भंते ! दुपदेसियाणं तिपदेसियाण य खंधाणं दबट्ठयाए कयरे कयरेहितो बहुया ? ४७. गोयमा ! तिपदेसिएहितो खंधेहितो दुपदेसिया खंधा दब्बट्ठयाए बहुया । एवं एएणं गमएणं ४८. जाब दसपदेसिएहितो खंधेहितो नवपदेसिया खंधा दव्वट्टयाए बहुया। (श. २५।१५२) ४९. एएसि णं भंते ! दसपदेसियाणं - पुच्छा। ५०. गोयमा ! दसपदेसिएहितो खंधेहितो संखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए बहुया । (श. २५।१५३) सोरठा ५१. दश प्रदेशिक थीज, संख प्रदेशिक खंध घणां। स्थानक बहुत्व थकीज, अदल न्याय अवलोकियै ।। ५१ दशप्रदेशिकेभ्यः पुनः सङ्खघातप्रदेशिका बहवः, सङ्ख्यातस्थानानां बहुत्वात्, (वृ. प. ८७९) *लय :हूं बलिहारी जाववां ६८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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