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१००. कडजुम्मसमयद्वितीए, नो तेयोगसमयट्टितीए, नो दावरजुम्मसमयद्वितीए, नो कलियोगसमयट्टितीए।
(श. २५॥१२९)
१०१,१०२. तत्रातीतानागतवर्तमानकालेषु जीवोऽस्तीति
सर्वाद्धाया अनन्तसमयात्मकत्वादवस्थितत्वाच्चासी कृतयुग्मसमयस्थितिक एव, (व. प. ८७५,८७६)
१००. कडजुम्म समय स्थितिक तिको रे...
शेष रूप नहि तीन। न्याय कहूं छू तेहनों रे, सुणजो चित लहलीन ।।
सोरठा १०१. भूत अनागत मांहि, वर्तमान अद्धा विषे ।
जीवईज छै ताहि, ते माटै इम जाणवू ।। १०२. सर्व काल नै हेर, अनंत समयात्मकपणां थकी।
अवस्थित थी फेर, कडजुम्म समय स्थितिक कह्य ।।
वा० - कृतयुग्म समय स्थितिक हुवै जे माट अतीत, अनागत, वर्तमान काल में विषे जीव छ ते माटे सर्व काल में अनंत समयात्मकपणा थकी शेष तीन नहीं, तेहिज कहै छै-नहीं त्योज, नहीं द्वापुरयुग्म, नहीं कल्योग समय स्थितिक । १०३. *इक वच स्यूं प्रभु ! नेरइयो रे,
कडजुम्म समय स्थितिवंत ? इत्यादि प्रश्न पूछयां थकां रे, तब भाखै भगवंत ।। १०४. कडजुम्म समय स्थितिक कदा रे, जाव कदा कलियोग।
एवं जाव वेमानिया रे, सिद्ध जीव जिम जोग ।।
१०३. नेरइए णं भंते !-पुच्छा ।
गोयमा !
१०४. सिय कडजुम्मसमयट्ठितीए जाव सिय कलियोग
समयट्ठितीए। एवं जाव वेमाणिए। सिद्धे जहा जीवे।
(श. २५।१३०)
१०५. नारकादिस्तु विचित्रसमयस्थिकत्वात्कदाचि
च्चतुरग्रः कदाचिदन्यत्रितयवर्तीति । (वृ. प. ८७६) १०६. जीवा णं भंते ! पुच्छा।
सोरठा १०५. नारक आदि संपेख, विचित्र समय स्थितिक थकी।
कदा च्यार रहै शेष, इम कदा तीन बे इक रहै ।। १०६. *स्यूं प्रभु ! बहु वच जीवड़ा रे,
__ कडजुम्म समय स्थितिवंत ? इत्यादि प्रश्न पूछिया रे, श्री गोतम गुणवंत ।। १०७. जिन कहै ओघ सामान्य थी रे, विधान थी पिण चीन।
कृतयुग्म समय स्थितिका रे, शेष रूप नहिं तीन ।
१०७. गोयमा ! ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि
कडजुम्मसमयट्ठितीया, नो तेयोगसमयट्टितीया, नो दावरजुम्मसमयद्वितीया, नो कलियोगसमयट्टितीया ।
(श २५॥१३१) १०८. बहुत्वे जीवा ओघतो विधानतश्च चतुरग्रसमयस्थितिका एव
(वृ. प. ८७६) १०९. अनाद्यनन्तत्वेनानन्तसमयस्थितिकत्वात्तेषां,
(वृ.प. ८७६) ११०. नेरइयाणं -- पुच्छा।
गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मसमयद्वितीया जाव सिय कलियोगसमय द्वितीया वि।
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सोरठा १०८. बहु वच जीवा जाण, ओघ विधान थकी वली।
च्यार शेष पहिछाण, समय स्थितिकाईज है ।। १०९. अनादि अनंतपणेह, अनंत समय स्थितिक थकी।
जीवां ने करि लेह, नहीं त्र्योज समयादि स्थिति ।। ११०. *बहु वच नारक पूछियां रे,
" ओघ सामान्य थी जोग । कदा कडजुम्म समय स्थितिका रे,
जाव कदा कलियोग ।
सोरठा १११. नारक आदि विचार, विचित्र समय स्थितिक थकी।
ते सर्व नारक नी धार, स्थिति समय मिलवा विषे॥ *लय : अनंत नाम जिन चवबमा रे
....
१११. नारकादयः पुनर्विचित्रसमयस्थितिकाः, तेषां च
सर्वेषां स्थितिसमयमीलने (बृ. प. ८७६)
श. २५, उ०४, ढा.४३९
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