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________________ प्रकाशकीय "भगवई" अंग आगम साहित्य में सबसे विशाल ग्रन्थ है। विषयों की दृष्टि से यह एक महान् उदधि है। श्री मज्जाचार्य ने इस ग्रन्थ का राजस्थानी भाषा में गीतिकाबद्ध पद्यानुवाद किया। यह राजस्थानी भाषा का सबसे बड़ा ग्रन्थ माना गया है। इसमें मूल के साथ टीका ग्रन्थों का भी अनुवाद है और वार्तिक के रूप में अपने मन्तव्यों को बड़ी स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया गया है। इसमें विभिन्न लय ग्रथित ५०१ ढालें तथा कुछ अन्तर ढालें हैं। ४१ ढालें केवल दोहों में है। ग्रन्थ में ३२९ रागनियां प्रयुक्त है। इसमें ४९९३ दोहे, २२२५४ गाथायें, ६५५२ सोरठे, ४३१ छन्द, १८४८ प्राकृत संस्कृत पद्य तथा ७४४९ पद्य-परिमाण, ११९० गीतिकाएं, ९३२९ पद्य-परिमाण, ४०४ यंत्रचित्र आदि हैं । इसका अनुष्टुप् पद्य-परिमाण ग्रन्थान ६०९०६ है। "भगवती जोड़" का प्रथम खण्ड सन् १९८१ में प्रकाशित हुआ था। उसका द्वितीय खण्ड सन् १९८६ में प्रकाशित हुआ, तृतीय खण्ड सन् १९९० में, चतुर्थ खण्ड सन् १९९४ में, पंचम खण्ड सन् १९९५ में तथा षष्टम् खण्ड सन् १९९६ में प्रकाशित हुआ। अब उसी ग्रन्थ का सप्तम खण्ड प्रकाशित कर पाठकों के हाथ में सौंपते हुए अति हर्ष का अनुभव हो रहा है। प्रथम खण्ड में उक्त ग्रन्थ के चार शतक समाहित हैं। द्वितीय खण्ड में पांचवें से लेकर आठवें शतक, तृतीय खण्ड में नौवें से लेकर ग्यारहवें तक, चतुर्थ खण्ड में बारहवें से पन्द्रहवें तक चार शतक एवं एक परिशिष्ट "गौशाला की चौपाई" संग्रहीत है। पांचवें खण्ड में सोलहवें से तेइसवें शतक तक की सामग्री है । छठे खंड में केवल चौबीसवां शतक एवं परिशिष्ट में वही शतक यंत्रों के रूप में संग्रहीत है। अब उसी ग्रन्थ के इस सातवें खंड में २५वें शतक से ४१वें शतक तक की सामग्री है। प्रस्तुत खण्ड के प्रकाशन के साथ ही भगवती जोड़ का सात खण्डों में प्रकाशन कार्य एक तरह से पूर्ण हो जाता है लेकिन आचार्यवर के निर्देशानुसार इस शृंखला में एक खण्ड और तैयार किए जाने की योजना है। उस खण्ड में अनेक परिशिष्टों के साथ भगवती जोड़ का समीक्षात्मक अध्ययन भी रहेगा। इस ग्रन्थ का कार्य स्वर्गीय गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के तत्वावधान में हुआ है और महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने उसका पूरा-पूरा हाथ बंटाया है। उनका श्रम इस ग्रन्थ के प्रत्यक पृष्ठ पर अनुभूत होता है। ताराचन्द रामपुरिया जैन विश्व भारती, लाडनूं २४ सितम्बर, १९९७ मंत्री Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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