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३८. विहाणादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा वि, तेयोगपदेसी
गाढा वि, नो दावरजुम्मपदेसोगाढा, कलियोगपदेसोगाढा वि।
३९. चउरंसा जहा बट्टा ।
(श. २५२६८)
३८. विधान एक-इक आश्री सोय,
कडजुम्म नभ अवगाहक होय । व्योज दावरजुम्म नभ अवगाही,
___ कल्योज नभ अवगाहक नाहीं।। ३९. बहुवच चउरसा संठाण,
जिम बहु वच वृत्त आख्यो जाण । तिणहिज विध कहिवो छै एह,
ओघ विधान आश्रयी जेह ॥ ४०. बहु वच आयत प्रश्न विचार,
जिन कहै ओघ सामान्य थी धार । कडजुम्म गगन प्रदेश ओगाही.
शेष तीन अवगाहणा नाही ।। ४१. विधान आश्री ए अवलोय,
कडजुम्म नभ अवगाढा होय । जाव कल्योज प्रदेश ओगाह,
वस्तु स्वभाव थकी कहिवाह । वा०-ए खेत्र थकी एकवचन, बहुवचन करि संस्थान चितव्या । हिवं काल थकी एकवचन, बहुवचन करिकै चितवतो थको कहै छै ४२. इक परिमंडल हे भगवंत !
स्यूं कडजुम्म समय स्थितिवंत ? योज द्वापर कल्योज विचार ?,
ए त्रिहुं समय स्थितिक अवधार ।। वा० हे भगवन ! परिमण्डल संस्थान एतलै परिमण्डले संस्थाने करी परिणत खंध केतलो काल रहिस्य ? स्यूं चतुष्क अपहारे करी ते काल ना समय च्यार शेष हुवै अथवा तीन शेष हुवै अथवा दोय शेष हुवै अथवा एक शेष रहै ? इति प्रश्न ।
४०. आयता णं भंते ! संठाणा-पुच्छा।
गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा, नो तेयोगपदेसोगाढा, नो दावरजुम्मपदेसोगाढा, नो
कलियोगपदेसोगाढा, ४१. विहाणादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा वि जाव
कलियोगपदेसोगाढा वि । (श. २०६९)
वा.-एवं तावत्क्षेत्रत एकत्वपृथक्त्वाभ्यां संस्थानानि चिन्तितानि, अथ ताभ्यामेव कालतो भावतश्च तानि चिन्तयन्नाह--
(वृ. प. ८६४) ४२. परिमंडले णं भंते ! संठाणे किं कडजम्मसमय
ठितीए? तेयोगसमयठितीए ? दावरजुम्मसमयठितीए ? कलियोगसमयठितीए ?
वा.-'परिमंडले ण' मित्यादि, अयमर्थःपरिमंडलेन संस्थानेन परिणताः स्कन्धाः कियन्तं कालं तिष्ठति ? कि चतुष्कापहारेण तत्कालस्य समयाश्चतुरग्रा भवन्ति त्रिद्वय काग्रा वा?
(व. प. ८६४) ४३. गोयमा ! सिय कडजुम्मसमयठितीए जाव सिय
कलियोगसमयठितीए । एवं जाव आयते ।
४४. परिमंडला णं भंते ! संठाणा किं कडजुम्मसमय
ठितीया पुच्छा।
४३. जिन कहै ओघ थकी अवधार,
कडजुम्म समय स्थितिक किणवार । जाव कदाचि समयज स्थित्त,
एवं जाव आयत लग वक्खित्त ।। ४४. बहु वच परिमंडल प्रभु ! कथिया,
स्यूं कडजुम्म समय नां स्थितिया। इत्यादिक पूछया अवधार, तसु उत्तर देवै जगतार ।। ४५. ओघ सामान्य थकी अवलोय,
कडजुम्म समय स्थितिक कद होय । जाव कदाचित ते कलियोग,
समय स्थितिका होवै प्रयोग । १. प्रस्तुत गाथा के सामने भगवती का जो पाठ उद्धृत किया गया है, उसकी जोड के साथ संवादिता नहीं है। मुद्रित और हस्तलिखित अनेक प्रतियों में ऐसा ही पाठ है। किन्तु जयाचार्य द्वारा लिखित 'हेम भगवती' में जो पाठ है, वह इस गाथा का संवादी है।
४५. गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मसमयठितीया
जाव सिय कलियोगसमयठितीया, (श. २०७०)
श० २५, उ०३, ढा०४३७ ३५
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