SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३. गुण विण भेख में चारित सुध नहीं पाल्यां विरहो पड़े ४. नामगो सेठ रो रहे पुत्र नहीं रे, रे लाल, सूं रे, चारित हुवै पाल्यां रूड़ी रीत रे । आ जिण मारग नीं रीत रे ॥ दास सूं नामगो मत देख रे 1 ज्यू सुध साधां तूं विरहो मत जाणजो रे लाल, असाधां सूं विरहो विशेष रे ।। ५. उतकष्टो विरहो अठारे कोड़ाको सागर तणों, ए छेदोपस्थापन नों संभाल रे । छह आरा बिचला लीया रे लाल, उतकृष्टो परिहारविसुध इम भाल रे ।। ६. जवन परिहार चौरासी सहंस वर्ष रो रे, सुखम० जघन समो उतकष्टो छ मास रे । पण जीव आधी कह्यो आंतरो रे लाल, ए तीसमो दुवार विमास रे || ७. समुद्घात छह समायक छेदोप० में रे, वेदनी कषाय मारणंती परिहार रे । सुखमसंपराय समुद्घात को नहीं रे लाल, जथाख्यात केवल श्रीकार रे ।। ८. च्यार संजया लोक नें असंख्यात में भाग छै रे, प्यार फर्णे लोक नों भाग असंख्यातमों रे लाल, जथाख्यात एवं तथा सर्व लोक फर्शो सोय रे ॥ ९. च्यार संयम में क्षय उपसम भाव छे रे, जथाख्यात उपसम तथा क्षायक भाव रे । सुनो पॅतीसमों द्वार पित चावरे ॥ सिय अस्थि सिय नत्वि सोय रे । हो तो एक दो तीन जघन थी रे लाल, उतकष्टा न्यारा-न्यारा होय रे ॥ ११. प्रतक सहंस सामायक में छेदोपनी रे, एक समे प्रतक सौ परिहार रे ० जथाख्यात एक सौ बासठ कह्या रे लाल, सुखम० उपसम श्रेणि चोपन खपक एक सौ आठ सार रे ।। १२. पूर्व प्रज्या आश्री समायक तणां रे, जघन उतकष्टा प्रतक सहंस कोड़ रे । जथाख्यात प्रतक कोड़ जाणजो रे लाल, हि वर्तमान पूर्व प्रज्या आसरो रे लाल, १०. पांच पारित प्रतमान प्रज्या आसरी रे जथाख्यात असंख्यात में तथा सर्व लोय रे । और तीन चारित सिय अस्थि सिय नत्थी जोड़ रे || १३. छेदोप जघन उतकष्ट प्रतक सौ कोड़ छे रे, o ० परिहार जपन उत्कष्ट प्रतक हजार रे । सुखमसंपराय प्रतक सौ जाणजो रे लाल, सुणो छतीसमो अल्पाबहुत दुबार रे ॥ १४. सर्व थोड़ा सुखमसंपराय न रे, परिहारविसुध संसेजगुणां जान रे । संजगुण जाख्यात संखेजगुणां छेदोप० नां रे लाल, त्या सूं संखेजगुणां सामायक रा बखाण रे ।। भाद्रवा बिद इग्यारस मंगलवार रे। लाल, मुरधर देश में शहर पीपाड़ रे ।। ॥ इति संजया नीं जोड़ ॥ १५. संवत अठारे गुण्यासीये रे, जोड़ कीधी संजया तभी रे Jain Education International For Private & Personal Use Only संजया नीं जोड़, ढा० ३ ४७७ www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy